बिना चुनाव परिणाम के ही भूतपूर्व हो गए बिहार के 12_सांसद

पटना। पूरे देश में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है प्रथम चरण का चुनाव प्रचार भी जोड़ पड़ चुका है पर इस बीच आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बिहार के 40 मौजूदा सांसदों में 12 सांसद बिना चुनाव परिणाम आए ही भूतपूर्व हो गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में से 39 सीटों पर एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी चुनाव जीते थे जबकि एक सीट किशनगंज पर कांग्रेस की जीत हुई थी एनडीए के 39 मौजूदा सांसदों में 12 सांसद इस बार चुनावी लड़ाई से बाहर हो गए हैं यानी उन्हें उनके दल ने टिकट कर दिया है।। वे टिकट होने वाले सांसदों में जेडीयू के सुनील कुमार पिंटू सीतामढ़ी से कविता सिंह सिवान से तथा महाबली सिंह को काराकाट से विजय कुमार को गया से बेटीकट किया गया है। गया और काराकाट सीट जदयू ने एनडीए के सहयोगी दल के उम्मीदवार जितना माझी और उपेंद्र कुशवाहा के लिए छोड़ी है बदले में भाजपा ने अपनी सीट शिवहर जादू को दी है तथा पिछली बार कि लोजपा की सीट नवादा भाजपा ने अपने खेमे में रखा है। भाजपा से बेटीकट होने वाले सांसदों में बक्सर से अश्वनी कुमार चौबे, सासाराम से छेदी पासवान, मुजफ्फरपुर से अजय निषाद तथा शिवहर से रामादेवी का नाम शामिल है। पिछली बार लोजपा ने कुल 6 सीट बिहार में जीती थी बाद में लोजपा में दो गुट बन गए थे चिराग पासवान अपने गुटके अकेले सांसद थे जबकि उनके चाचा पशुपति पारस के पास पांच सांसद थे इस बार एनडीए में चिराग पासवान को ही 5 सीट मिली है। चाचा पशुपति कुमार पारस हाजीपुर से प्रिंस पासवान समस्तीपुर से चंदन कुमार सिंह नवादा से महबूब अली कैसर खगड़िया से बिना चुनाव लड़े ही भूतपूर्व हो गए हैं। जिन सांसदों का टिकट काटा गया है उनमें से रामादेवी शिवहर से राजद का अजय निषाद मुजफ्फरपुर से कांग्रेस का छेदी पासवान सासाराम से कांग्रेस का टिकट पाने की जुगाड़ में है छेदी पासवान और अजय निषाद ने कांग्रेस की सदस्यता भी ग्रहण कर ली है। महाबली सिंह के बारे में भी खबर है कि वह भी महागठबंधन के उम्मीदवार बनने की तैयारी में लगे हैं। तमाम समीकरणों के बावजूद बिहार में एनडीए के मुकाबले महागठबंधन काफी बिखरा बिखरा सा नजर आ रहा है कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं है। जबकि दूसरी तरफ एनडीए गठबंधन के तमाम उम्मीदवारों को मोदी लहर का भरोसा है। बिहार में इस बार कोई चौंकाने वाला परिणाम नहीं आने वाला है स्थिति जस की तस है कुछ सीटों पर कमजोर उम्मीदवार और जातीय समीकरण को दरकिनार करने का खामियां जाए इंडिया को उठाना पड़ सकता है जिसकी संभावना भी इस बार काम ही नजर आ रही है। महागठबंधन बिहार में पूरी तरह से तेजस्वी के भरोसे है तेजस्वी लोकसभा चुनाव के बहाने 2025 में बिहार में खुद के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी को मजबूत करने में लगे हुए हैं।

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