नेताओं-अफसरों के निशाने पर क्यों हैं पत्रकार !

सविंद्र
गया/पटना: केवल चौथे स्तंभ से ही भेदभाव और नाराजगी क्यों। विधायिका,कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया को लोकतंत्र का चार स्तंभ कहा जाता है। किंतु हाल के दिनों में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चौथा स्तंभ अर्थात मीडिया एक अलिखित किंतु सोची समझी साजिश का शिकार होता जा रहा है। यह दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। कार्यपालिका को सभी प्रकार की सेवा के एवज में वेतन मिलती है। पद और पदनाम का रौब अलग से। देश में न्यायपालिका को जितना सम्मान है उतनी ही सुविधाएं भी। विधायिका के तो कहने ही क्या हैं। इन्हें सबकुछ के अलावे शोहरत तो ब्याज के रूप में आजीवन मिलती रहती है। मालूम हो कि लोकतंत्र के इन तीनों पायों को सभी सुख सुविधाएं नियमानुसार मिलती है। जो लिखित भी है और अनिवार्य भी। किन्तु चौथा स्तंभ कहने को तो बाकी तीनों के समान ही है। लेकिन उसे सुविधा प्राप्त नहीं होती। इस चौथे के जीवन में बस संघर्ष के अतिरिक्त कुछ नहीं है। गर्मी बारिश और ठंढ ही इनका बसंत ऋतु है। समाचार संकलन के लिए सुदूर गांव की पगडंडी ही इनकी दिनचर्या है। बिना कोई समय सारिणी के ही घर से बाहर रहना इनकी ड्यूटी होती है। क्षेत्रगत दौरों के समय सस्ते ढाबों की दाल रोटी और झोपड़ियों की चाय ही इनके परिश्रम का फल है। हां आम जनमानस की सहानुभूति जरूर इनके साथ है। ऐसे में मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग केवल बिना किसी सुविधा सहयोग और सहानुभूति के ही दिन रात अपने उस कठिन पथ पर अग्रसर है, जिसे उन्होंने खुद ही चुना है। कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि तमाम बाधाओं के बावजूद मीडिया केवल अपने जूनून और जज्बे के कारण ही जीवित है। जिसने आज हर स्तर पर केवल संघर्ष को ही अपना एकमात्र साथी तो बना लिया है। लेकिन कर्तव्य पथ पर समझौता करना नहीं सीखा। हलांकि हर क्षेत्र के भांति इसमें भी अपवाद हैं किंतु नाम मात्र के। आज चाहे गोपालगंज के सदर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पत्रकारों के प्रवेश पर लगी रोक की नोटिस हो या गया जिले में प्रखंड कृषि पदाधिकारी के कार्यालय में पत्रकारों को पीसी के लिए बकायदा बुला कर डीलरों के द्वारा कराए गए जानलेवा हमले की जघन्य घटना। एक जिले के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी द्वारा प्रखंड सरकारी स्कूल में मीडियाकर्मियों को बाईट न देने व तस्वीरे न लेने देने संबंधी आदेश निर्गत करने का मामला हो या मंत्री का दर्जा प्राप्त नेताओं के द्वारा घंटों इंतजार करते पत्रकारों के किसी भी सवाल का जवाब दिए बिना मौन होकर निकल जाने की घटना। ऐसी घटनाओं की फेहरिस्त लंबी है।

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