मां दुर्गा पूजन उत्सव पर खास: मां दुर्गा की परंपरागत वार्षिक पूजा आज से; यहां सोलह दिनों तक होती है मां दुर्गा की आराधना…

सरायकेला। कला, संस्कृति एवं संस्कारों को अपने में संजोए सोलह कलाओं की नगरी कही जाने वाली सरायकेला के पूजा संस्कार भी अलौकिक रहे हैं। जहां शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के सोलह दिनों की पूजा का विधान रहा है। इसके तहत जिउतिया अष्टमी से लेकर आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की महाष्टमी तिथि तक सोलह दिनों के लिए क्षेत्र के इष्ट देवी मां पाउड़ी की आराधना शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के रूप में की जाती है। सोलह पूजा के नाम से विख्यात सोलह दिवसीय मां दुर्गा के वार्षिक पूजन उत्सव का शुभारंभ रविवार की शाम से सरायकेला के राजमहल स्थित माता पाउड़ी के मंदिर में परंपरा अनुसार शुरू हुआ। जिसमें सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव एवं रानी अरुणिमा सिंहदेव ने मां दुर्गा के शक्ति स्वरूप में मां पाउड़ी की पूजा अर्चना करते हुए क्षेत्र के सुख, शांति एवं समृद्धि की प्रार्थना किये। इस अवसर पर माता की प्रसन्नता के लिए बलि भी अर्पण किया गया। बताते चलें कि शक्ति स्वरूपा मां पाउड़ी के राजमहल स्थित मंदिर में परंपरा अनुसार सिर्फ राजमाता, राजा, रानी, युवराज एवं देहुरी यानी माता के पुजारी को ही प्रवेश की अनुमति होती है।
सोलह दिनों तक आयोजित होने वाली उक्त पूजन उत्सव के अवसर पर प्रतिदिन प्रसाद चढ़ावे का विधान है। जिसका सेवन राज परिवार के सदस्यों द्वारा राजमहल परिसर के भीतर ही किया जाता है। पूजा के समापन दिवस महाष्टमी पर चढ़ाए गए महाप्रसाद का वितरण राज परिवार सहित समस्त भक्तों के बीच किया जाता है। परंपरागत पूजा विधान के अनुसार ढोल, नगाड़ा, चेड़चेड़ी एवं मोहरी वाद्य यंत्रों की गूंज के बीच जागरण करते हुए मां पाउड़ी की पूजा अर्चना की जाती है। साथ ही भव्य संध्या आरती की जाती है। जिसमें महासप्तमी के दिन राज परिवार द्वारा खेड़़, तलवार, बंदूक और तोप की पूजा की जाती है। जबकि महानवमी के दिन नूआखिया मनाते हुए खेतों से लाए गए नए अनाज का पहला भोग माता को चढ़ाते हुए प्रसाद स्वरूप सभी भक्तों के बीच वितरण किया जाता है। प्राचीन काल से चली आ रही उक्त पूजा परंपराएं आज भी अपने मूल स्वरूप में कायम है। राजपरिवार के बॉबी सिंहदेव बताते हैं कि क्षेत्र में शक्ति एवं ऊर्जा के संचार के लिए मां पाउड़ी की शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के रूप में सोलह दिनों की वार्षिक आराधना की जाती है।

विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य कला के संगीत एवं धुनों का सृजन है माता की वार्षिक पूजा:-
विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य को मंच से निहारते हुए दर्शक और कला प्रेमी देश सहित विदेशों में भी भरपूर सराहना करते हैं। नृतक छऊ नृत्य के विशेष परंपरागत धुनों पर कदम ताल मिलाते हुए नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। जानकार बताते हैं कि विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य कला के धुनों का सृजन माता के सोलह दिनी पूजा से हुआ है। जहां माता की आराधना और जागरण के दौरान सोलह दिनों तक परंपरागत वाद्य यंत्रों से अलग अलग धुन बजाए जाते हैं। जिसको संजोते हुए छऊ नृत्य कला के विशिष्ट धुनों को तैयार किया गया था। जो आज भी छऊ नृत्य के कला प्रेमियों के दिलों को देश और विदेश में भी झकझोर रहा है।

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