ऐसे ही नहीं आया झारखंड में सियासी भूचाल, साल दर साल झामुमो और भाजपा में बढ़ी रार, अब सिर्फ वार पर वार

रांचीः झारखंड में सियासी भूचाल यूं ही नहीं आया। इसकी पटकथा झामुमो की सरकार के बनने के कुछ ही दिनों बाद लिखी गई थी। झामुमो की सरकार बनने के साथ ही भाजपा के साथ साल दर साल रार बढ़ता गया। जिसका नतीजा अब सीधे वार पर आ गया है। राजनीति के इस बैटल फील्ड में कौन जीतेगा और कौन हारेगा यह आने वाले सप्ताह में ही इसका फैसला हो जाएगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शनिवार को भाजपा पर बड़ा हमला बोलते हुए कह दिया था कि सत्ता हाथ से जाने के बाद भाजपा को तकलीफ तो होगी है। हम केंद्र से अफना हक और अधिकार तो मांगेंगे ही। झामुमो की अगुआई में सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी जेवीएम का विलय भाजपा में कर दिया। भाजपा ने बाबूलाल को विधायक दल का नेता भी बना दिया। लेकिन विधानसभा में अब तक बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिल पाया है। यह भाजपा को पच नहीं रहा। रार की शुरूआत यही से हुई। दूसरा रार जब हुआ जब हेमंत सोरेन केंद्र से टकरा गए। मामला डीवीसी की बकाया राशि का था। इस वक्त रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बिना बताए झारखंड सरकार के खाते से 1417.50 करोड़ रुपए काट लिए। इस पर सीएम ने तुरंत एक्शन लेते हुए केंद्र को भी धमकी दे डाली, कहा, कोयले की ढुलाई रोक दी जाएगी। टीएसी के लिए लिया गया निर्णय भी आग में घी का काम किया। टीएसी के सदस्यों के मनोनय में गर्वनर के अधिकार को छिन लिया गया और सीएम को पदेन अध्यक्ष का पावर दे दिया गया। सबसे ज्यादा भाजपा को सीएम हेमंत का वह निर्णय पिंच किया, जिसमें सीएम ने मेनहर्ट घोटाले की जांच एसीबी को सौंप दी। यह मामला पूर्व सीएम रघुवर दास से जुड़ा हुआ है। सरयू राय भी इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। सीएम के इस निर्णय से बीजेपी में खलबली मच गई। इसके बाद मौका देख पूर्व सीएम रघुवर दास ने भी सीएम हेमंत सोरेन पर गंभीर आरोप जड़ दिया। अब राजनीति के बैटल फील्ड में आर या पार की लड़ाई चल रही है।

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