त्रिकुट पहाड़ पर रोपवे की देख रेख करती है कोलकाता की कंपनी दामोदर रोपवेज एंड इंफ्रा लिमिटेड
यही कंपनी वैष्णो देवी,हीराकुंड और चित्रकूट में रोपवे का कर रही है संचालन
त्रिकुट पर्वत रोप वे से झारखंड सरकार को 80 लाख रुपये से अधिक आता है सालाना राजस्व
देवघरः झारखंड सरकार ने 2006 में रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस को देवघर में रोप वे बनाने का जिम्मा दिया था। झारखंड स्टेट टूरिज्म डेवलपमेंट निगम के अनुसार राइट्स के पास तकनीकी सपोर्ट है। 2007 में राइट्स ने निविदा कर दामोदर रोप वे रिसोर्ट कंपनी को काम सौंपा था। 2009 में रोपवे बनकर तैयार हुआ। पहले झारखंड राज्य पर्यटन विकास निगम ने संचालन किया। 2012 में दामोदर रोप वे रिसोर्ट कंपनी को इसके संचालन का जिम्मा दे दिया गया था। वर्तमान में दामोदर रोप वे इंफ्रा लिमिटेड कंपनी देवघर के त्रिकुट पर्वत पर रोप-वे का संचालन कर रही थी। त्रिकुट पर्वत रोप वे से झारखंड सरकार को 80 लाख रुपये से अधिक सालाना राजस्व आता है।
हर साल लेना होगा है मेंटेनेंस का प्रमाण पत्र
रोप-वे संचालित करने वाली एजेंसी को हर साल सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च से मेंटेनेंस का प्रमाण पत्र लेना होता है। इस साल भी इसे फिटनेस प्रमाण पत्र मिला हुआ है। इसके अलावा रोप वे के संचालन से पहले प्रतिदिन एजेंसी को मेंटेनेंस लाग बुक भरना होता है। रोप-वे चालू करने से पहले सुबह सात से करीब आठ बजे एक-एक पहिए, हर एक केबिन को चेक करना होता है। जेएसटीडीसी के मैनेजर भी हर सुबह लॉग बुक चेक करते हैं।
5 से 10 मिनट में पूरा किया जाता है 760 मीटर का सफर
त्रिकुट पर्वत का रोप वे झारखंड का इकलौता रोपवे सिस्टम है. जमीन से पहाड़ी पर जाने के लिए 760 मीटर का सफर रोपवे के जरिए महज 5 से 10 मिनट में पूरा किया जाता है. कुल 24 ट्रालिया हैं. एक ट्रॉली में ज्यादा से ज्यादा 4 लोग बैठ सकते हैं. एक सीट के लिए 150रु देने पड़ते हैं और एक केबिन बुक करने पर 500 रु लगता है. इसकी देखरेख दामोदर रोपवेज एंड इंफ्रा लिमिटेड, कोलकाता की कंपनी करती है. यही कंपनी फिलहाल वैष्णो देवी,हीराकुंड और चित्रकूट में रोपवे का संचालन कर रही है.
जानिए क्या है त्रिकूट पर्वत से जुड़ी मान्यता
झारखंड के देवघर जिला को दो वजहों से जाना जाता है. एक है रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग और दूसरा त्रिकूट पर्वत पर बना रोपवे सिस्टम. इस पर्वत से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि रामायण काल में रावण भी इस जगह पर रुका करते थे. इसी पर्वत पर बैठकर रावण रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग को आरती दिखाया करते थे. इस पर्वत पर शंकर भगवान का मंदिर भी है. जहां नियमित रूप से पूजा भी की जाती है. इस रोपवे सिस्टम की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की रोजी-रोटी चल रही है.