बिहार में भी हो रहा है अफसरों को बचाने का खेल, एक और अफसर के ठिकानों पर होती है छापेमारी, फिर कर दी जाती है पोस्टिंग

पटना। झारखंड और बिहार के ब्यूरोक्रेट्स की कामकाज की शैली कमोबेश एक ही जैसी है। बिहार में भी अफसरों को बचाने का खेल हो रहा है। जिस अफसर के ठिकाने पर छापेमारी की जाती है। बाद में कुछ ही दिन बाद उस अफसर की पोस्टिंग भी हो जाती है। ताजा मामला बिहार उत्पाद अधीक्षक अविनाश प्रकाश को लेकर है। इस मामले में सरकार के दो विभाग आमने-सामने हैं। एक तरफ विशेष निगरानी इकाई की टीम भ्रष्टाचार के मामले में उनके ठिकानों पर छापेमारी करती है, तो दूसरी ओर मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग छापे के 28 दिन बाद ही उनकी फिर से पोस्टिंग कर देता है। यह स्थिति तब है, जब एसवीयू आरोपित उत्पाद अधीक्षक के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय में केस करने की तैयारी कर रहा है। दूसरी तरफ उत्पाद विभाग के अधिकारी इस मामले में कुछ भी स्पष्ट बोलने से बच रहे हैं। पोस्टिंग देने के पीछे वरीय अधिकारियों का तर्क है कि छापेमारी में नकद की बरामदगी नहीं हुई थी। इसके अलावा जो भी जमीन-जायदाद मिली है, उसमें बड़ा हिस्सा पैतृक संपत्ति का है।
मोतिहारी के तत्कालीन उत्पाद अधीक्षक अविनाश प्रकाश पर शराब माफियाओं के साथ मिलीभगत कर अवैध संपत्ति अर्जित करने का आरोप है। इस मामले में एसवीयू ने पटना, मोतिहारी और खगडिय़ा के तीन ठिकानों पर पिछले साल आठ दिसंबर को छापेमारी की थी। इस दौरान नोट गिनने वाली मशीन, तीन फ्लैट, 20 प्लाट के कागजात, फुलवारीशरीफ में फार्म हाउस, डेयरी फार्म में दस गाय के अलावा करीब एक करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति पाई गई थी।

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