टकराव जोरदार…एक तरफ राजभवन,दूसरी ओर सरकार
गणादेश ब्यूरो
रांचीः झारखंड में लगातार राजनीतिक टकराव की स्थिति बन रही है। यूं कहें कि राज्य में राजनीतिक टकराव की पटकथा लिखा जा रही है। सत्ता पक्ष बीजेपी से फरियाने की तैयारी कर रहा है। पर राजभवन की चुप्पी ने सत्ता पक्ष की टेंशन और बढ़ा दी है। मुख्यमंत्री की सदस्यता को लेकर 25 अगस्त को चुनाव आयोग ने अपना मंतव्य राजभवन को भेजा। जिसमें जो बात सामने आ रही है, उसमें कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री की सदस्यता निरस्त कर दी गई है। लेकिन अब तक इसका कोई आदेश जारी नहीं हुआ है। वहीं राजभवन ने भी स्वीकार किया है कि चुनाव आयोग का मंतव्य मिला है। लेकिन खत का मजमून सामने नहीं आने से अनिश्चितता की स्थिति है। इस बीच सत्तापक्ष के विधायकों को एकजुट रखने की कवायद में रांची से रायपुर तक की दौड़ लगी। वहीं माइनिंग लीज से जुड़े मामले में फंसे दुमका विधायक बसंत सोरेन के मामले में भी चुनाव आयोग का मंतव्य राजभवन को मिल जाने की सूचना है. हालांकि इसको लेकर अभी राजभवन पुष्टि नहीं कर पा रहा है.
टकराव टलने के आसार भी नहीं दिख रहे…
झारखंड में राजनीतिक टकराव टलने का आसार भी नहीं दिख रहा है। यह टकराव आगे बढ़े और केंद्र सरकार के साथ तनातनी को भी राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए। इसे लेकर सीएम मानसिक तौर पर तैयार भी हैं। प्रतिकूल परिस्थिति आने पर वे कड़ा फैसला ले सकते हैं।अगर उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगी तो बात आगे बढ़ सकती है। सदन में विश्वास मत हासिल कर यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि उनके पास बहुमत होने के बावजूद सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है। हाल के दिनों में राज्य में ईडी की सक्रियता पर भी उन्होंने सवाल किए हैं। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में टकराव टलने के आसार तो नहीं दिखते।
राजनीतिक टकराव हुआ तो कई आएंगे लपेटे में…
झारखंड में राजनीतिक टकराव हुआ तो कई विधायक लपेटे में आ जाएंगे। सत्ता के गलियारों में चर्चा इस बात की हो रही है कि बाबूलाल मरांडी को भाजपा ने विधायक दल का नेता तो बनाया, लेकिन विधानसभा में अभी तक उन्हें बतौर नेता प्रतिपक्ष मान्यता नहीं मिली। उनकी विधायकी भी खतरे में है। सत्ता के गलियारों में चर्चा यह भी है कि बाबूलाल सत्तापक्ष के तकनीकी पेंच के कारण विधानसभा के भीतर वे ज्यादा मुखर नहीं हो पाते हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दलों के विधायकों की संख्या भी उतनी नहीं है कि सामान्य स्थिति में वह सत्तापक्ष को मुसीबत में डाल सके। ऐसे में राजभवन पर अब सबकी निगाहें टिकी हैं। राजभवन द्वारा हेमंत सोरेन की सदस्यता को लेकर स्थिति स्पष्ट होने के बाद ही अनिश्चतता के बादल छंट सकेंगे।
सत्तापक्ष पूरे प्रकरण में राजभवन के प्रति आक्रामक दिख रहा है। पहले प्रतिनिधिमंडल में गए नेताओं ने दबाव बनाया। उसके बाद सदन में विश्वास मत के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल पर आरोप लगाया कि वे पिछले दरवाजे से दिल्ली निकल गए। राज्यपाल की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठाए गए। हालांकि राजभवन की तरफ से कहा गया कि फिलहाल वे विधि विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं, लेकिन सत्तापक्ष इसे मुद्दा बनाकर आगे की राजनीतिक राह आसान करने में लगा है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपना दावा पुख्ता करने के लिए विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया, जो प्रचंड बहुमत के साथ उनके पक्ष में रहा। विरोधी दल भाजपा और उसके सहयोगी आजसू पार्टी ने प्रस्ताव पर मतदान के दौरान सदन का बहिष्कार किया। इस रस्साकशी के बीच राजभवन और सरकार के बीच टकराव की पृष्ठभूमि तैयार हो गई है। यूपीए के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात कर आग्रह किया है कि चुनाव आयोग के पत्र के संदर्भ में स्थिति स्पष्ट की जाए। प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं के मुताबिक राज्यपाल ने दो-तीन दिन का इंतजार करने को कहा, लेकिन उस आश्वासन के भी अब एक सप्ताह बीत चुके हैं।