संसार के सुयोग्य शिल्पकार,भगवान विश्वकर्मा हैं
पटना:शिल्प-विद्या के प्रवर्तक होने के कारण भगवान विश्वकर्मा को निर्माण व सृजन का आराध्य माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा ने ही शिल्प और कला के जरिये सृष्टि को खूबसूरती दी। किसी अनगढ़ वस्तु को आकर्षक बनाने का काम शिल्पकार करता है। इस तरह के कार्यों में प्रत्यक्षतः हाथों का प्रयोग होता है। देखा जाए तो हाथ वैसा ही काम करता है! जैसा मस्तिष्क निर्देश देता है। मनुष्य शरीर में सर्वाधिक महत्व मस्तिष्क का ही है। इसीलिए विद्वानों ने साहित्य, संगीत और कला से अनभिज्ञ व्यक्ति को पशु के समान कहा है। जो भी व्यक्ति इस बात की महत्ता को समझता है!वह जीवन में मस्तिष्क को सशक्त बनाने के लिए प्रयत्न करता है।मनुष्य की प्रखरता का प्रारंभ मां के गर्भ से शुरू हो जाता है। महाभारत युद्ध के नायक अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की भी कथा है कि चक्रव्यूह भेदन की विद्या उन्हें मां के गर्भ में ही मिल गई थी। चूंकि मां सुभद्रा को नींद आ गई! इसलिए चक्रव्यूह के अंतिम द्वार को तोड़ने का ज्ञान उन्हें नहीं हो सका। इस कथा का निहितार्थ यही है कि शिल्पकार को पूरी आकृति देने के पहले आलस्य नहीं करना चाहिए। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मनुष्य शरीर की संपूर्ण तंत्रिका प्रणाली का शिल्पकार मस्तिष्क है! जहां से बारह नसें निकलती हैं। इन्हीं नसों के जरिये मनुष्य देखने, सुनने, समझने और बोलने आदि की क्षमता प्राप्त करता है। इनमें संतुलन बनाने से वह शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी सक्षम होता है।भौतिक दृष्टि से समृद्ध व्यक्ति का सम्मान उसके अपने ही क्षेत्र में होता है। जबकि मस्तिष्क से समृद्ध व्यक्ति का सम्मान सर्वत्र होता है। विद्वान और राजा की तुलना नहीं की जा सकती है। विद्वान उस सुगंधयुक्त पुष्प के समान होता है, जो जहां जाता है ज्ञान का सुगंध बिखेरता है। ऐसी स्थिति में जीवन में आकर्षक शिल्प और कला के लिए भगवान विश्वकर्मा से प्रेरणा लेनी चाहिए।