चीख चीखकर रही पुकार… बचाओ मुझे, मैं हूं सीताधार..

रुपेश कुमार मिश्र
बथनाहा (अररिया):सीताधार जो कि कभी फारबिसगंज की लाइफ लाइन थी। जो कभी वेग से दौड़ती थी। अपने शीतल जल से सींचती थी। एक माता के सामान अपने पुत्र फारबिसगंज की गंदगी भी ढोती थी। कभी इसके किनारे भी छठ पर्व हुआ करता था। कभी यह भी आस्था का केंद्र थी। इसकी बर्बादी का इतिहास दशकों पुराना है। भले ही भू माफिया आज इसे महज एक नाला करार दिलाने में तुला हो, किन्तु कभी यह बथनाहा ओपी क्षेत्र से होते हुए फारबिसगंज शहर के बीचोबीच गुजरती निर्बाध रूप से बहती थी।
जानकारों की मानें तो सीताधार की वजूद की कहानी अंग्रेजों के समय हुए भू सर्वे के 1903 के सीएस खतियान(केस्ट्रोल सर्वे खतियान) में छिपी है।जो कि आज लाख प्रयास के बावजूद उपलब्ध नहीं हो पा रही है। आजादी के बाद 1954 से 1970 के बीच केवल ग्रामीण क्षेत्रों हेतु रिविजनल सर्वे हुआ था। शहरी क्षेत्रों को छोड़ दिया गया था। पुनः 1980 में शहरी क्षेत्रों में हुए सर्वे में सीताधार का 11.53 एकड़ जमीन प्रयाग पेडीवाल एवं हनुमान पेडीवाल के नाम से खतियानी हो गया जो कि अबतक एक अबूझ पहेली है।भू माफियाओं का इतिहास रहा है कि ये इतिहास के साथ छेड़छाड़ करते हैं।तो सरकारी दस्तावेज नष्ट करने में कितना समय लगेगा। कोई एक या दो दिनों की साजिश नहीं है ये। अब तो भू माफिया कहते हैं कि सीताधार कभी थी ही नहीं । यह तो महज एक नाला भर है। सीएस खतियान की खोज जारी है।2021 में भी सुरेंद्र कुमार अलबेला के द्वारा गठित एक टीम ने सीताधार का सर्वे किया था। तत्कालीन डीसीएलआर ने सीताधार की स्थिति यथावत रखने की बात कही थी। निर्माण कार्य पर रोक लगा दिया गया था किंतु आज भी भूमि टुकड़े टुकड़े में बिक रही है और धन कुबेर के साथ साथ भ्रष्ट नेताओं एवं पदाधिकारी भी इस जमीन को खरीद रहे हैं। नदी,जंगल, पर्वत को बचाने की बात करने वाले मुंह देख रहे हैं।
वर्तमान स्थानीय विधायक विद्यासागर केसरी ने भी 4 मार्च 2022 को यह मामला बिहार विधानसभा में उठाया था किंतु उन्हें लिखित जवाब में कहा गया कि जांच टीम के अनुसार यह धार बरसाती है। जलधारा मंद है, बहुत कम जल श्राव होता है। विधायक ने संबंधित मंत्री से मिलकर फारबिसगंज की जल जमाव समस्या से अवगत करा पुनः जांच कराने की मांग भी की थी। किंतु सीएस खतियान के गायब होने के कारण समस्या विकट हो गई है और भू माफिया की चांदी ही चांदी है।
यदि सीताधार को गाद और अतिक्रमण मुक्त कर सुंदर घाटों का निर्माण कराया जाता। जल बहाव बाधा को दूर किया जाता तो यह फारबिसगंज वासियों के लिए न केवल जल जमाव की समस्या से छुटकारा दिलाता अपितु नाव संचालन, घाट भ्रमण एवं पर्यटन विकास से एक वरदान भी साबित होता।

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बथनाहा ओपी क्षेत्र के सहवाजपुर पंचायत के भद्रेश्वर ग्राम के बहारदार टोला और फारबिसगंज रेलवे लाइन के बीच से होकर बहती हुई सीताधार फारबिसगंज से होकर गुजरती है। भद्रेश्वर ग्राम निवासी 80 वर्षीय नरेश मिश्र का कहना है कि किदवंती है कि सीताधार का संबंध रामायण काल से ही है। जब राजा जनक द्वारा भूमि जुताई करते समय हल के सींक से सीताजी का जन्म हुआ तो वहीं से जल धारा भी बह निकली और हल के सींक से बने कटाव से होकर बहती हुई नदी का रुप ले लिया। कालांतर में कोसी नदी के जगह परिवर्तन के कारण सीतामढ़ी से फारबिसगंज की ओर बहने वाली सीताधार कोसी में समा कई जगह कट गई। किंतु आज भी कोसी छाड़न के रुप में बहती है।
वहीं बहरदार टोला निवासी 70 वर्षीय लक्ष्मण दास का कहना है कि नदी में जनवरी माह में भी इतना पानी रहता था कि वह अपने दादा के कंधे पर बैठकर नदी पार कर ऐतिहासिक फारबिसगंज मेला देखने जाते थे। उस समय कमर भर पानी रहता था। ऐसे अनेक लोगों की राय है कि सीताधार अभी भले ही मृतप्राय है किन्तु कभी निर्बाध बहती थी।

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