करगिल के शहीदों को नमन, झारखंड के जवानों ने अपने लहू से लिखी वीरता की अमिट कहानी

गणादेश डेस्कः आज यानि 26 जुलाई को करगिल दिवस है। आज से ठीक 23 साल पहले करगिल युद्ध हुआ था, जिसमें देश के जवानों ने अदमय साहस और वीरता का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। जबांज जवानों ने देश सुरक्षित रहे, इसके लिए जवान अपने प्राणों की आहुति देने में लगे थे. उनकी वीरता और साहस के किस्से हर जगह सुनाई दे रहे थे. वैसे तो साल 1999 में हुए युद्ध में देश के लिए जान की कुर्बानी देने वाले जवानों की फेहरिस्त लंबी है. इस युद्ध में अपने जान की बाजी लगाने वाला हर जवान देश का हीरो है. जिन पर पूरा देश गौरवान्वित है.यही नहीं वीरों की भूमि झारखंड से भी कारगिल युद्ध के दौरान जवानों ने अपना शौर्य दिखाते हुए दुश्मनों को नाको चने चबवाए. इस दौरान कई जवान शहीद हुए. यहां की धरती ने सदियों से जन्म ले रहे सपूतों के दिलों में देशभक्ति की भावना को प्रवाहित किया है. झारखंड के लाल शहीद वीर नागेश्वर महतो की अमर गाथा आज तक लोगों की जुबां पर है. हर युवा उनके जज्बे को सलाम करते हुए देश की सेवा में खुद को न्योछावर करने के लिए समर्पित है. झारखंड की मिट्टी के लाल शहीद नागेश्वर महतो 13 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान हमेशा-हमेशा के लिए भारत माता की गोद में समा गए. चाहे उनका पैतृक गांव हो या फिर समूचा झारखंड उनकी वीरगाथा कि हर तरफ कसमें खाई जाती हैं. वहीं करगिल युद्ध में गुमला जिले के तीन लाल ने अपने लहू से वीरता की अमिट कहानी लिखी. शहीद जॉन अगस्तुस एक्का, शहीद बिरसा उरांव और शहीद विश्राम मुंडा के नाम आज भी जिले में सम्मान के साथ लिये जाते हैं. गुमला के इन तीनों बेटों को देश कभी भूला नहीं सकता. इनके शौर्य को नमन है. शहीद हवलदार बिरसा उरांव फर्स्ट बटालियन बिहार यूनिट के जवान थे. उन्हें उनकी वीरता के लिए कई सम्मान मिले. नागालैंड सम्मान सेवा, सैनिक सुरक्षा मेडल, संयुक्त राष्ट्र संघ से ओवरसीज मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल से वह सम्मानित हुए.

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