पिजमुर्दा ए गम फसले बहारॉ से अलग था: तन्हाई में था महफिल ए यारां से अलग था

पटना – बज़्म मोईन के तत्वाधान में लखनऊ से आये मशहूर शायर सैयद अफ़ीफ़ सिराज रिज़वी, मुग़ल सराय से आये मशहूर शायर ज़िया अहसनी एवं सहरसा के शायर साबिर सहरसावी के सम्मान में एक बेहतरीन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता नाशाद औरंगाबादी व निजामत अतहर फरीदी ने की। काव्य गोष्ठी में प्रो जलालुद्दीन बीएन कॉलेज पटना, सोहेल फारूकी, सलाहुद्दीन अनवर, काजिम रजा, सैयद बाबर इमाम, गुलाम रब्बानी अदील, हैदर इमाम हैदर, सलमान साहिल और मोईन गिरिडीहवी शामिल थे। काव्य गोष्ठी में नाशाद औरंगाबादी ने अपनी रचना “सब की किस्मत में नही शायर ए दोंरा होना, सख्त मुश्किल है यहां शाद का शादां होना! लखनऊ के सैयद अफीफ सिराज रिजवी ने “पिजमुर्दा ए गम फसले बहारॉ से अलग था: तन्हाई में था महफिल ए यारां से अलग था!
जिया अहसानी मुगल सराय ने “जिक्र ए शिकस्त भी हो जिया, जिक्र फतह में, मंजर के साथ हो पसे मंजर का तजकिरा पढ़ खूब वाहवाही बटोरी। वहीं
साबिर सहरसावी सहरसा ने
“सनद उनको देता हूं जन्नत की साबिर, जो दर ए मुस्तफा की जियारत करे है ! असर फरीदी ने “कश्ती ए जिस्त का पतवार नही हो सकता, वह मेरा यार है गमख्वार नही हो सकता!
काजिम रजा “तेरी खिलवत में कोई आया है, उसका सदका उतार तन्हाई! सोहेल फारूकी
“खुदा जाने कहां है मेरा बचपन,
खिलौना टूट कर बिखर हुआ है पढ़ मंत्रमुग्ध कर दिया।
सैयद बाबर इमाम ने “गर उसे पिन्हा में रहना है तो फिर यूं ही सही, दीदा ए नाकाम में क्यों उजर ए बिनाई रखा! सलाह उद्दीन अनवर ने “जालिमों ने ओढ़ ली चादर शरीफों की सलाह, और जो मजलूम थे मुजरिम कहलवाये गये! मोईन गिरिदिहवी ने “दिखाए जो राहें पसीने बहा कर,
यहां कोई ऐसा भी रहबर नहीं है!
हैदर इमाम हैदर ने “खोला है कल को किसने अरमान की मुहुर्त, अमाल कुछ तो कर लें महशर की जमीं का! गुलाम रब्बानी अदील ने “उनके वादे की कुछ नही परवा, वह ईधर आये या ऊधर जाये! सलमान साहिल ने “दिल भी उस शख्श पे धड़का है कि जिसको मेरा, लाख कोशिश हो मगर फिर भी नही होना है, रचना को लोगों ने खूब सराहा।
इस मौके पर बीएन कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. जलालुद्दीन ने इस शानदार और सफल सत्र के लिए प्रसन्नता प्रकट की और बज्म मोइन की सराहना की और बधाई दी!

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