श्रीमद् भागवत कथा में पांचवे दिन कथा व्यास से श्रोतागण पुज्य इंद्रेश जी उपाध्याय के मुखारविंद से लोगों ने सुने अद्भुत प्रसंग
रांची। श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन टाटीसिलवे के ईईएफ मैदान में भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत संगम उमड़ पड़ा है। कथा व्यास पुज्य इंद्रेश जी उपाध्याय ने श्रीकृष्ण लीला के अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन किया, जिससे श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए। कथा का मुख्य आकर्षण भगवान श्रीकृष्ण के बाल लीला को सुनाई। जिसमें भक्त के भक्ति को मुख्य रूप से रेखांकित किया। जहां श्री ठाकुर जी की भक्ति तथा ठाकुर जी के भक्तों की पर भी विशेष बल दिया। आप सामान्य तौर पर चलते फिरते परिधानों से भी लोगों के साकारात्मक खींचे चले जाते हैं जो विशेष गुण हैं। इंद्रेश जी ने कहा कि आज के समय में लोगों में दिखावा की भक्ति ज्यादा हो रही है जो कहीं ना कहीं आपके और ईश्वर के प्रति बीच में रुकावट पैदा करता है, आप सबों को आवश्यकता है कि आज के दैनिक दिनचर्या में वैष्णो भक्ति पर विशेष रूप से कार्य करने की आवश्यकता है। विनम्रता से ही विनय की प्राप्ति होती है ईश्वर प्राप्ति के लिए आप निरंतर सत्संग का लाभ लें और अपने आप को सकारात्मक रखने के लिए कार्य करें। ईश्वर ने आपको असीम ऊर्जा प्रदान की है ठाकुर जी के कृपा से आप हर कुछ बेहतर ढंग से सोच सकते हैं। अपने कार्यों का संपादन कर सकते हैं तो इन शरीर को नकारात्मक तौर पर कार्य क्यों कराना।
महाराज जी ने कथा के दौरान कहा कि सांसारिक लोगों को रिझाने से बेहतर है कि आप श्री जी और ठाकुर जी को रिझाने के प्रति अपनी भक्ति समर्पित करें क्योंकि सांसारिक लोग क्षणिक समय के बाद आपसे रूठने लगते हैं। लेकिन यदि ईश्वर ठाकुर जी आपसे एक बार जुड़ जाए तो आपके जीवन के नैया को पर लगाने में एकमात्र सहारा होंगे।
माखन चोरी लीला… जब गोपियों के प्रिय बने कान्हा
कथा के दौरान महाराज जी ने बताया कि गोकुल में श्रीकृष्ण के माखन चोरी की चर्चा हर ओर थी। गोपियां शिकायत करने माता यशोदा के पास जातीं, लेकिन जब वे कृष्ण को डांटतीं, तो नटखट कान्हा अपनी भोली सूरत से सबका मन मोह लेते। यह लीला केवल नटखटपन नहीं, बल्कि यह संदेश देती है कि भगवान केवल भोग से नहीं, बल्कि भक्तों के प्रेम से बंधे होते हैं।
भगवान के अवतारों का वर्णन
इंद्रेश जी महाराज ने भगवान के अवतारों का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे भगवान ने अपने अवतारों के माध्यम से धरती पर आकर मानवता की रक्षा की है और उन्हें सही रास्ता दिखाया है। इसके साथ ही इंद्रेश जी ने कथा के माध्यम से भगवान की भक्ति और उनके प्रति समर्पण के महत्व को समझाना होता है। उन्होंने बताया होता है कि कैसे भगवान की भक्ति और समर्पण से हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
इंद्रेश जी ने मंच से रक्तदान का महत्व बताया, 40 लोगों ने किया रक्तदान
श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन पुज्य इंद्रेश जी उपाध्याय ने रक्तदान के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह सबसे बड़ा दान है, जो जीवन बचा सकता है। उन्होंने श्रद्धालुओं से रक्तदान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि वे भी अब हर तीसरे माह के अंतराल में आयोजित कथा के दौरान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के दिन नियमित रूप से रक्तदान करें। इंद्रेश जी ने कथा आयोजन समिति की इस कार्य के लिए खूब प्रशंसा की। जिसके बाद 40 से अधिक लोगों ने स्वेच्छा से रक्तदान किया। कथा स्थल पर विशेष रूप से थैलेसीमिया और जरूरतमंद मरीजों के लिए रक्तदान शिविर लगाया गया है। महाराज जी ने कहा कि जिस प्रकार दान-पुण्य आत्मिक शुद्धि देता है, उसी प्रकार रक्तदान जीवनदान देने का पवित्र कार्य है।
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