श्रीमद् भागवत कथा में गूंजी कृष्ण जन्म की दिव्य वाणी, महाराज जी ने सुनाए अद्भुत प्रसंग
रांची। श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन टाटीसिलवे के ईईएफ मैदान में भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिला। कथा व्यास पुज्य इंद्रेश जी उपाध्याय ने श्रीकृष्ण लीला के अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों का वर्णन किया, जिससे श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए। कथा का मुख्य आकर्षण भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग रहा, जिसे सुनते ही पूरा वातावरण “नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की” के जयकारों से गूंज उठा। महाराज जी ने बताया कि जब-जब धरती पर अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब भगवान स्वयं अवतरित होते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ, जहां उनके माता-पिता वसुदेव और देवकी कैद में थे। जन्म के समय चारों ओर अंधकार था, लेकिन जैसे ही बाल गोपाल प्रकट हुए, पूरा कारागार प्रकाश से जगमगा उठा। यह प्रसंग इस सत्य को दर्शाता है कि जब जीवन में कठिनाइयों का अंधकार बढ़ता है, तो भगवान का प्रकाश हमें राह दिखाने आता है।
ईश्वर की कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है
श्रीकृष्ण जन्म के साथ ही जेल के ताले स्वतः खुल गए, पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए और वसुदेव जी ने अपने पुत्र को टोकरी में रखकर यमुना पार कर गोकुल पहुंचाया। इस दौरान यमुना जी ने श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श के लिए जलस्तर बढ़ाया, लेकिन जैसे ही वसुदेव जी ने प्रभु के चरण यमुना में डाले, जल शांत हो गया। यह प्रसंग दर्शाता है कि ईश्वर की कृपा से असंभव भी संभव हो जाता है।
माखन चोरी लीला: भक्ति और प्रेम का प्रतीक
इंद्रेश जी उपाध्याय ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी लीला केवल एक बाल लीला नहीं, बल्कि गहरा आध्यात्मिक संदेश देती है। जिस प्रकार ग्वालबाल और गोपियां श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं, उसी तरह हमें भी अपने हृदय में भक्ति को स्थान देना चाहिए।
कथा में ऋण और कर्तव्यों का संदेश
कथा व्यास पुज्य इंद्रेश जी उपाध्याय ने बताया कि प्रत्येक मनुष्य को जीवन में चार ऋण चुकाने होते हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण और मानव ऋण। उन्होंने सभी ऋण का उल्लेख किया। बताया देव ऋण यानी देवताओं की कृपा से हमें जीवनदायिनी शक्तियां प्राप्त होती हैं, इसलिए हमें ईश्वर और प्रकृति के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए। ऋषि ऋण यानी संत-महात्माओं और गुरुओं से प्राप्त ज्ञान का आदर करना और उनके दिखाए मार्ग पर चलना आवश्यक है। पितृ ऋण यानी माता-पिता और पूर्वजों के दिए गए संस्कारों का पालन कर उन्हें सम्मान देना चाहिए। मानव ऋण यानी समाज और मानवता की सेवा करना हमारा कर्तव्य है।
मांसाहार का त्याग…
महाराज जी ने मांसाहार के विषय में कहा कि यह मनुष्य के क्रोध और अहंकार को बढ़ाता है। सात्त्विक भोजन से मन और आत्मा शुद्ध होती है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है।
पति को परमेश्वर मानने की सीख…
इंद्रेश जी उपाध्याय ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पत्नी को पति का सम्मान करना सिखाया गया है। पति-पत्नी का संबंध प्रेम, विश्वास और समर्पण पर आधारित होता है। पति को परमेश्वर मानने का अर्थ है कि उसमें ईश्वर का अंश देखना और पारिवारिक जीवन को प्रेममय बनाना।
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