श्री कृष्ण को पांचजन्य शंख कैसे मिला? जानिए रोचक कथा

भगवान श्री कृष्ण का पांचजन्य शंख बड़ा ही विशिष्ट शंख है, यह दुर्लभ है। कहते हैं इस शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी। समुद्र मंथन में उत्पन्न रत्नों में छठा रत्न यही शंख था और उसके पश्चात भगवान विष्णु के पास माता लक्ष्मी तथा यह शंख सुशोभित हुए। किन्तु महाभारत में भी इस शंख की उपस्थिति का वर्णन है। ​
पौराणिक कथा के अनुसार, कृष्ण और बलराम शिक्षा ग्रहण करने के लिए महर्षि सांदीपनि के आश्रम में रहे थे। जहाँ उन्होंने वेद-पुराण तथा उपनिषद आदि का ज्ञान प्राप्त किया और जब शिक्षा पूर्ण हुई तब उन्होंने गुरुदेव से दक्षिणा मांगने के लिए प्रार्थना की।
महर्षि सांदीपनि को ज्ञात था कि कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं, इसलिए उन्होंने अपने पुत्र पुनर्दत्त, जिसकी समुद्र में डूब जाने के कारण मृत्यु हो चुकी थी; को लौटाने की दक्षिणा मांगी। गुरु की आज्ञा लेकर श्री कृष्ण बलराम सहित समुद्र तट पर पहुंचे और समुद्र देवता से गुरु पुत्र को लौटने की प्रार्थना की। किन्तु समुद्र देव से कोई उत्तर नहीं मिला।
इससे श्री कृष्ण ने क्रोधित होकर सम्पूर्ण समुद्र को सुखाने की चेतावनी दी और इस भय से सागर देवता प्रकट हुए। उन्होंने कृष्ण के आगे हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया और बताया कि महर्षि का पुत्र सागर में नहीं है। किन्तु साथ ही उन्होंने आशंका उत्पन्न की कि सागर तल में एक असुर, जिसका नाम पंचजन था रहता है। पंचजन शंखासुर नाम से प्रसिद्ध था और वह मनुष्य को अपना भोजन बनाकर खा लेता था। सागर देव ने कहा हो सकता है कि उसी ने गुरु पुत्र को अपना निवाला बना लिया हो। यह सुन कृष्ण और बलराम सागर के तल में उतर गए और शंखासुर की खोज की।
श्री कृष्ण ने उससे गुरुपुत्र के विषय में पूछा, किन्तु उसने बताने से मना कर दिया और कृष्ण को भी मारने के लिए आगे बढ़ा। किन्तु श्री कृष्ण ने उसका वध कर दिया। उसके मरने पर उन्होंने उसका पेट चीर दिया, किन्तु उन्हें वहां कोई बालक नहीं मिला। वहां पर उन्हें एक शंख मिला, जिसे कृष्ण ने ले लिया और यमलोक की तरफ प्रस्थान किया। यमलोक पहुंच कर यमदूतों द्वारा उन्हें रोका गया तो कृष्ण ने शंखनाद किया। वह शंखनाद इतना भयानक था कि सम्पूर्ण यमलोक कम्पित हो गया। तब यमराज उनके सामने उपस्थित हुए और प्रभु की आज्ञा मान कर उन्होंने गुरुपुत्र को वापस कर दिया। ​
गुरु को दक्षिणा में शंख भेंट की
गुरुपुत्र पुनर्दत्त तथा उस शंख को लेकर श्री कृष्ण गुरु सांदीपनि के आश्रम पहुंचे और उन्हें भेंट दी। अपने पुत्र को पाकर गुरु अत्यंत प्रसन्न हुए, उन्होंने उस शंख को देखकर कहा ये पवित्र पांचजन्य शंख है और उसे श्री कृष्ण को ही भेंट कर दिया। इस प्रकार श्री कृष्ण को उनका शंख ‘पांचजन्य’ प्राप्त हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *