लीज माइंस मामले पर झामुमो ने दी सफाई,कहा- हेमंत सोरेन को अपनी बातों को रखने का इलेक्शन कमीशन को मौका देना चाहिए

रांची : सीएम हेमंत सोरेन के माइंस लीज मामले पर झामुमो ने सफ़ाई दिया है।कहा चुनाव आयोग को एक पक्षीय फैसला लेना नहीं चाहिए। सीएम को भी अपनी सफाई देने का मौका मिलना चाहिए। संवैधानिक भ्रम की स्थिति हो तो उसपर सुप्रीम कोर्ट भ्रम की स्थिति को दूर करता है। उसी तरह 9ए पर भाजपा भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर रही है। हमलोगों के पास कुछ दस्तावेज उपलब्ध है। जिससे सेक्सन 9ए को डिफाइन करता है। शुक्रवार को प्रदेश झामुमो कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता को झामुमो विधायक सुदीप्त कुमार सोनू ने कही। उन्होंने कहा कि विगत दिनों से भाजपा के नेताओं ने एक कॉन्स्प्रेसी के तहत सीएम हेमंत सोरेन द्वारा ली गई माइंस लीज के सवाल को 9ए के तहत दंडनीय और दोषी अपराध के तौर पर निरोपित किया है। उन्होंने कहा कि भारत के सांसद में 1951में जब इस कानून को पारित किया था तब इसमें छह बिंदुओं को समाहित किया गया था।
1951 में जब इस नियम को पारित किया था तो इसमें 6 बंधुओं को इंगित किया था। इस बीच इस तरीके के कई मामले 1964 से 2006तक न्यायालय में आते रहे ।उन न्यायालय में इन विषयों की समीक्षा में सेक्शन 9 का मामला किसी भी कॉन्ट्रैक्ट को टच नहीं करता है। लीज को टच नहीं करता है। यह मामला विशुद्ध रूप से सरकार से कोई कांटेक्ट लेने या सरकार को किसी गुड्स की सप्लाई का या तो सड़कें बनाने का या अस्पताल बनाने का या तो सड़कें बनाने का,या बांध बनाने का, सिंचाई परियोजना का या किसी बिल्डिंग बनाने के मामले को ही इसे कॉन्ट्रैक्ट की श्रेणी में माना गया है। उन्होंने कहा कि मेरे पास कुछ रिफ्रेंस हैं। जिसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि सीएम के मामले 1964 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि खनन पट्टा कोई व्यवसाय नहीं है , न ही माल आपूर्ति का कोई कॉन्ट्रैक्ट है। सेक्शन 9 ए में कहा गया है कि एक व्यक्ति को तब अयोग्य घोषित किया जा सकता है जब वह किसी के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किया हो। या सप्लाई के लिए सरकार के साथ व्यापार किया। खनन पट्टा सप्लाई का व्यवसाय का मामला नहीं है यह सरकार के द्वारा किए गए कार्यों का निष्पादन के अंतर्गत नहीं आता है। 2001 में सुप्रीम कोर्ट के करतार सिंह बढ़ाना बनाम हरी सिंह नलवा, अन्य के मामले में तीन बेंच में कहा था कि खनन लीज सरकार के द्वारा किए गए कार्यक्रम निष्पादन के अंतर्गत नहीं आता है तो यह विभिन्न सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा इसकी व्याख्या के दरमियान यह कहा गया है बिल्कुल स्पष्ट है कि९ ए के तहत माइनिंग लीज का मामला नहीं आता है. हम एक बात और स्पष्ट करना चाहते हैं कि जब मसलों को कंसील्स, छुपाया जाता है तब उसने कुछ बीचलन या अपराध की संभावना बनती है। जब इलेक्शन कमीशन के दिए गए एफिडिफिट में जिक्र है की हेमंत सोरेन के पास माइंस का लीज है । तब यह स्पष्ट रूप से यह डिस्क्लोजर का मामला नहीं बनता है ।उन्होंने कहा कि इलेक्शन कमिशन के लोगों ने भी स्कूटनी के समय 9ए पर कोई विचार नहीं किया। उन्होंने कहा कि मेरा स्पष्ट रूप से यह मानना है कि भाजपा इसे नैरेटिव ढंग से पेश कर रही है ताकि हेमंत सोरेन की सरकार राज्य की जनता की नजरों में बदनाम हो जाए। भाजपा यह भ्रम फैला रही है खनन लीज का मामला एक दंडनीय अपराध है ,जिससे हेमंत सोरेन की सरकार गिर जाएगी ।उन्होंने इलेक्शन कमिशन इंडिया के हवाले से एक डॉक्यूमेंट जारी करते हुए बताया इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में एक जजमेंट दिया था ।दिल्ली हाईकोर्ट यह कहता है कि हर हालत में पेटीशनर को सुना जाना चाहिए। ओरली हर्ट किया जाना चाहिए। कैलाश गहलोत बनाम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया 2018। दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला था की हर परिस्थिति में मसलों को सुना जाना चाहिए। तो हम इस बात के लिए इत्मीनान हैं कि हेमंत सोरेन के मामले में उनको अपना पक्ष रखने का मौका दिया जायेगा। इसमें एक महत्वपूर्ण चीजें और भी है की 80 डिसमिल की माइंस में 1 एकड़ से कम जो कि उपायुक्त के अस्तर से इसका निष्पादन होता है । तो फिर यह भ्रम जो फैलाया जा रहा है खनन मंत्री रहते हेमंत सोरेन ने खुद साइन किया है, ऐसा नहीं है ।यह मामला मात्र 80 डिसमिल का है ।इसलिए रांची के स्तर से इसका डिस्पोजल जरूरत था। दूसरी बात यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस माइंस से एक छटाक का भी उत्पादन नहीं हुआ है ।इस माइंस में बिजली का कनेक्शन नहीं है, इस माइंस में जीएसटी नहीं लिया गया है ,उससे भी ऊपर की बात इस माइन ऑपरेट भी नहीं हुआ है। स्थिति में कहीं भी कोई भी लाभ लेने वाला इस माइंस के द्वारा नहीं हुआ है।
और हालिया दिनों की घटना के बाद मुख्यमंत्री पद की नैतिक मर्यादा को रखते हुए इस लीज को सरेंडर कर दिया था। इस मामले में बड़ा-बड़ा स्पष्ट मानना है कि विभिन्न सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यह स्पष्ट होता है की 9 ए किस में लागू होता है और किस में लागू नहीं होता है। और साथ ही हमने यह स्पष्ट देखा, किसी का भी बगैर पक्ष सुने हुए नैसर्गिक न्याय का अनुपालन नहीं किया जा सकता है ।इसलिए निश्चित रूप से इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को इस मामले को सुनना होगा और तमाम बातें सर्वोच्च न्यायालय और हमारे न्यायालय इस देश में कानून की व्याख्या करने के लिए बनाए गए और यदि सरकारों को संवैधानिक संस्थाओं को कानून के समझने में कोई परेशानी आती है तो वैसी स्थिति में उसकी व्याख्या के लिए न्यायालय मौजूद है ।हमें पूरा भरोसा है की इस्मामले में जरूर न्याय होगा। प्रेस वार्ता में केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य भी मौजूद थे।

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