सदन में राज्यपालों के निर्वाचन का सुझाव देने वाले विधेयक का जदयू सांसद खीरू महतो ने समर्थन किया

रांची: जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सह राजसभा सासंद खीरु महतो ने इस सुधार बिल का समर्थन करते हुए झारखंड में राज्यपाल के द्वारा हेमंत सरकार द्वारा प्रस्तावित स्थानीय नीति विधेयक को पुनः लौटाने और हेमंत सरकार से पुनर्विचार के लिए कहे जाने के मुद्दे को भी सदन में रखा ।
उन्होंने सदन को अवगत कराया कि पिछले साल 11 नवंबर को विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाकर इस विधेयक को पारित किया गया था
। इसे मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया, लेकिन जनवरी 2023 में तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने इस विधेयक को यह कह कर लौटा दिया था। अब राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने भी इसे पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया है।
साथ ही उन्होंने ,राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने OBC आरक्षण विधेयक वापिस किये जाने जैसे मसले को उठाते वक्त कहा कि झारखंड में हेमंत सरकार ने आरक्षण को बढ़ाकर 77 फीसदी करने वाला विधेयक पारित कर दिया था।जिसके बाद से प्रदेश में अनुसूचित जनजाति (ST) को 26 से बढ़ाकर 28 फीसदी, पिछड़ा वर्ग (OBC) को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी और अनुसूचित जाति (SC) के लिए 10 से बढ़ाकर 12 फीसदी आरक्षण कर दिया गया था। इस संदर्भ में उन्होंने उपरोक्त बिल के समर्थन में कहा कि संविधान के प्रथम अनुच्छेद में कहा गया है कि “भारत राज्यों का संघ” होगा . अगर जनता द्वारा लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के विधायी कार्यों में राज्यपाल के रूप में केंद्र सरकार द्वारा दुर्भावना से ग्रसित होकर हस्ताक्षेप करेगा तो ये भारत के संघीय प्रणाली का अपमान है। विधेयक में प्रस्तावित वर्तमान अनुच्छेद 155 की जगह संशोधित अनुच्छेद 155 जो राज्यपाल के निर्वाचन से सम्बंधित है. उसकी प्रतिस्थापना का समर्थन करते हुए सांसद महोदय ने कहा कि जिस प्रकार भारतीय संसद राष्ट्रपति, लोकसभा और रज्यासभा से बनता है उसी प्रकार राज्यों के विधानमंडल राज्यपाल, विधानसभा और विधानपरिषद से बनते हैं। अतः जिस प्रकार राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सांसदों और विधायकों के द्वारा किया जाता है उसी प्रकार राज्यपाल का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में निर्वाचित विधानसभा सदस्यों, ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं और निगमों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए। राज्यपाल/उपराज्यपाल की सेवा अवधि राष्ट्रपति के मर्जी पर निर्भर है। राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार राज्यपाल का स्थानांतरण किसी अन्य राज्य में कर सकता है या पदमुक्त कर सकता है। राज्यपाल की सेवा की कोई संवैधानिक सुरक्षा नहीं है। इसलिए राज्यपाल केंद्र सरकार के हाथों कठपुतली बनकर रह जाता है और स्वयं विवेक पे कार्य नहीं कर पाता।

  1. उन्होंने सदन में इसके समर्थन में कई समितियों मसलन एस आर बोम्मई बनाम भारत सरकार, सरकारिया आयोग, राजमन्नार समिति के सुझावों को उदृत करते हुए उन्होंने कहा कि ” संविधान के समय मसौदा समिति ने राज्यपालों की नियुक्ति या चुनाव का मामला संविधान
    सभा के निर्णय के लिए छोड़ दिया था। आज़ादी के 75 वर्ष के बाद अमृत काल में देश मजबूती से आगे बढ़ा है और भारत की एकता अखंडता और संप्रभूता को कोई खतरा नहीं है। इसलिए लोकतंत्र के संघीय ढांचे को और मजबूत बनाने के लिए और राज्यपाल के शक्तियों का केंद्र सरकार द्वारा दुरुपयोग रोकने के लिए मैं राज्यपालों के निर्वाचन का सुझाव देने वाले विधेयक का समर्थन करता हूँ।

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