हजारीबाग के कई नर्सिंग होम में ऐसे चल रहा कमीशनखोरी का गोरखधंधा

हजारीबाग के कई नर्सिंग होम में वर्षों से कमीशनखोरी का गोरखधंधा चल रहा है। यह गोरखधंधा एक ऐसी परंपरा बन चुकी है, जहां मानवीय संवेदनाओं का कोई मोल नहीं रह गया है। पैसे के आगे इंसानियत तार-तार हो चुकी है।

पहले इलाज में कम पैसे लगते थे, अब चार गुना ज्यादा फीस लिया जाने लगा है। सभी नर्सिंग होम में ऑपरेशन, डॉक्टर एवं मेडिसिन खर्च का अपना-अपना मेन्यू बनाकर रखा गया है।

यहां तक कि कई नर्सिंग होम के संचालकों ने शहर के आसपास गांवों में सहिया दीदी को एजेंट बनारखा है, जिनका कमीशन 3500 से लेकर 5000 रुपए तक है।

वह पैसा कोई डॉक्टर या नर्सिंग होम संचालक नहीं देते, बल्कि वह खर्च मरीज के परिजनों पर ही जोड़ा जाता है।

ऐसा ही कुछ मामला पिछले मंगलवार को देखा गया। गोविंदपुर निवासी पूनम कुमारी गांव के एजेंट के कहने पर डिलीवरी करवाने पैगोडा चौक स्थित एक नर्सिंग होम आयी थी। उसके बाद डिलीवरी हुई, तो बच्चा कमजोर बताया गया।

डॉक्टरों की सलाह के अनुसार उस नर्सिंग होम में ही बच्चे को भर्ती कर दिया गया। तीन दिन तक बच्चे के इलाज के बाद फीस 28,000 रुपए लिया गया। इसके अलावा 25,000 का मेडिसिन भी लग गया

हालांकि बच्चा ठीक नहीं हुआ, तब परिजनों ने डॉक्टर से गुहार लगाते हुए कहा कि उनकी बच्ची को किसी बड़े अस्पताल या कहीं दूसरी जगह रेफर कर दें। लेकिन डॉक्टर और संचालक ने महिला के परिजनों की एक न सुनी।

उनसे कहा गया कि बच्चेकी स्थिति ठीक नहीं है, तो दो-तीन दिन और भर्ती रहेगा। इसका अच्छी तरह से इलाज कर देंगे और ठीक हो जाएगा। अगर आप जाने की जिद करेंगे, तो करीबन 10,000 रुपए जमा करा दें।
महिला के परिजन काफी परेशान थे। घंटों गुहार लगाते रहे पर उन्हें कहा गया कि घर चले जाएं और पैसे लाकर दें, तभी बच्चे को छोड़ेंगे।

पीड़ित महिला ने इस बात की जानकारी एक पत्रकार को दी और फूट-फूटकर रोते हुए रेफर कराने की बात कह पूरी आपबीती बताई। फिर बच्चे की जान बचाने की गुहार लगाने लगी।

जब नर्सिंग होम के डॉक्टर एवं संचालक से फोन के माध्यम से जानकारी ली गई, तो उन्होंने बताया कि बच्ची की स्थिति में सुधार है।

वह दो-तीन दिन और रहेगी तो स्वस्थ हो जाएगी। मरीज से अब तक मात्र 28,000 रुपए लिए हैं और वह मेडिसिन खर्च के लिए है। अभी कुछ पैसे बकाया है। जब तक नहीं देगी, छुट्टी नहीं दिया जाएगा।

यहां तक की पत्रकार को भी मैनेज करने के लिए नर्सिंग होम एक एजेंट को छोड़ दिया गया, जो पत्रकार हो फोन के माध्यम से नर्सिंग होम की खबर नहीं लिखने का आग्रह करने लगा। उसके बाद अपना रिश्ता-नाता भी जोड़ने लगा।

बात नहीं बनी तो मौके पर लोहसिंगना थाना प्रभारी अरविंद कुमार ने मामले को संज्ञान में लेते हुए नर्सिंग होम के संचालक से बातचीत कर बच्ची को छोड़ देने की बात कही।

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मानदंड भी पूरा नहीं करते नर्सिंग होम, अवैध तरीके से कर रखा है संचालित

कई नर्सिंग होम 10 गुना 10 के कमरे एवं बिना सुविधा के मनमाना रेट रखते हुए संचालित कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि जैसे कोरोना काल में कोविड मरीजों के इलाज के लिए फीस फिक्स था, वैसे ही इन नर्सिंग होम में भी किसी भी इलाज के लिए रेट फिक्स हो। तभी संचालक और डॉक्टरों के मनमाने फीस वसूली पर रोक लग पाएगी।
मामले को गंभीरता से लेते हुए सिविल सर्जन को भी ऐसे नर्सिंग होमों की जांच करते हुए कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। उनके रजिस्ट्रेशन की भी जांच होनी चाहिए।

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