वृक्षों के प्रति कृतज्ञता का पर्व है हरियाली अमावस्या, जानें व्रत कथा
अमावस्या के दिन व्यक्ति अपने पितरों को याद करते हैं और श्रद्धा भाव से उनका श्राद्ध भी करते हैं। अपने पितरों की शांति के लिए हवन आदि कराते हैं। ब्राह्मण को भोजन कराते हैं और साथ ही दान-दक्षिणा भी देते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि के स्वामी पितृदेव हैं। पितरों की तृप्ति के लिए इस तिथि का अत्यधिक महत्व है। अमावस्या में श्रावण मास की अमावस्या का अपना अलग ही महत्व है। इसे हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। हरियाली अमावस्या पर पीपल के वृक्ष की पूजा एवं फेरे किये जाते है तथा मालपूए का भोग बनाकर चढ़ाये जाने की परम्परा है। इस दिन वृक्षारोपण का अधिक महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। पेड़ लगाने के सुख बहुत होते है और पुण्य उससे भी अधिक। क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित होते है। वृक्ष सदा उपकार की खातिर जीते है। इसलिये हम वृक्षों के कृतज्ञ है। वृक्षों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतु परिवार के प्रति व्यक्ति को हरियाली अमावस्या पर एक-एक पौधारोपण करना चाहिये।
हरियाली अमावस्या का महत्व
हमारी धर्म संस्कृति में वृक्षों को देवता स्वरूप माना गया है। मनु-स्मृति के अनुसार वृक्ष योनि पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप मानी गयी है। परमात्मा द्वारा वृक्षों का सर्जन परोपकार एवं जनकल्याण के लिए किया गया है।
पीपल- हिन्दू धर्म में पीपल के वृक्ष को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि पीपल के वृक्ष में अनेकों देवताओं का वास माना गया है। पीपल के मूल भाग में जल, दूध चढ़ाने से पितृ तृप्त होते है तथा शनि शान्ति के लिये भी शाम के समय सरसों के तेल का दिया लगाने का विधान है।
केला- केला, विष्णुपूजन के लिये उत्तम माना गया है। गुरूवार को बृहस्पति पूजन में केला का पूजन अनिवार्य हैं। हल्दी या पीला चन्दन, चने की दाल, गुड़ से पूजा करने पर विद्यार्थियों को विद्या तथा कुँवारी कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन केले का पौधा जरुर लगायें|
बड़- बड़ वृक्ष की पूजा सौभाग्य प्राप्ति के लिये की जाती है। जिस प्रकार सावित्री ने बड़ की पूजा कर यमराज से अपनी पति के जीवित होने का वरदान मांगा था। उसी प्रकार सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लम्बी उम्र की कामना हेतु यह व्रत करके बड़ वृक्ष की पूजा एवं सेवा करती है।
तुलसी- तुलसी एक बहुश्रुत, उपयोगी वनस्पति है। स्कन्दपुराण एवं पद्मपुराण के उत्तर खण्ड में आता है कि जिस घर में तुलसी होती है वह घर तीर्थ के समान होता है। समस्त वनस्पतियों में सर्वाधिक धार्मिक, आरोग्यदायिनी एवं शोभायुक्त तुलसी भगवान नारायण को अतिप्रिय है। विशेष कामना सिद्धि हेतु यह वृक्ष लगाये-
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र का वृक्ष लगाये। इसके अलावा आरोग्य प्राप्ति के लिए ब्राह्मी, पलाश, अर्जुन, आँवला, सूरजमुखी, तुलसी लगाये।
यदि सौभाग्य की प्राप्ति चाहते हैं तो अशोक, अर्जुन, नारियल, बड़ (वट) का वृक्ष लगाये। अगर संतान प्राप्ति चाहते हैं तो पीपल, नीम, बिल्व, नागकेशर, गुड़हल, अश्वगन्धा को लगाये।
सुख प्राप्ति के लिए नीम, कदम्ब, धनी छायादार वृक्ष लगाये। वहीँ, आनन्द प्राप्ति के लिए- हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा, गुलाब लगाये।
व्रत कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार अपने बेटे और बहू के साथ रहता था। एक दिन साहूकार की बहू ने मिठाई चुराकर खाली और कहा कि चूहों ने मिठाई खा ली है। यह सुनकर चूहों को काफी क्रोध आया। जिन्होंने मन में धारण कर लिया कर एक दिन वह साहूकार की बहू को अवश्य मजा चखाएंगे। एक दिन साहूकार के घर में कुछ मेहमान आए हुए थे जिनके सोने की व्यवस्था एक कमरे में की गई थी।
चूहों ने साहूकार की बहू के कपड़े मेहमानों के पलंग पर रखिए और सुबह जब नौकर कमरे की साफ सफाई करने आए तो उन्होंने बहू के कपड़े वहां पर देखकर आपस में कानाफूसी करनी शुरू कर दी। जिसकी खबर साहूकार को भी हो गई और उसने अपनी बहू को चरित्रहीन समझकर उसे घर से बाहर निकाल दिया। साहूकार की बहू पीपल के पेड़ के नीचे रोज दिया जलाया करती थी, एक दिन साहूकार जब थक हार कर पीपल के पेड़ के नीचे बैठा तो वहां पर साहूकार की बहू द्वारा दीपक रखा गया था और वहीं पर एक और दिया पड़ा था।
दोनों दीपक आपस में बातें करने लगे। एक दीपक ने दूसरे से पूछा कि तुम किस घर के दिए हो? तो उसने कहा कि मैं इस नगरी के साहूकार के घर का दिया हूं और साहूकार की बहू रोज पीपल के पेड़ के नीचे मुझे रख कर जाती है। इस के बाद वह दूसरे दीपक को बताने लगा कि साहूकार की बहू को मिठाई का बहुत शौक था और एक दिन उसने मिठाई खाने के पश्चात यह कह दिया के चूहों ने मिठाई खा ली। यह बात सुनने के बाद चूहों ने क्रोध में आकर साहूकार के घर में आए हुए मेहमानों के पलंग पर बहू के कपड़े रख दिए।
यह बात जब सारी नगरी में फैल गई तो साहूकार ने अपनी बहू को चरित्रहीन समझकर उसे घर से बाहर निकाल दिया जबकि वह बहुत ही भली औरत थी। पूजा करके प्रसाद भी सब में बांट देती थी। घर से निकलने के बाद भी वह पीपल के पेड़ की पूजा करती है। पहले जहां वह हरियाली की अमावस्या पर सवा सेर प्रसाद चढ़ाती थी, पर अब सवा पाव का प्रसाद चढ़ाती है। यह बातें कहने के बाद दीपक ने कहा कि वह चाहे ससुराल में रहे, चाहे अपने मायके में रहे; सब जगह उसको पीपल के पेड़ का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
यह बात सुनने के बाद सरकार ने घर आकर अपनी पत्नी को सारी बात बताई। इसके बाद वह दोनों बहू को मान सम्मान के साथ अपने घर ले आए। अगले साल हरियाली अमावस्या आने पर साहूकार एवं साहूकार के सारे परिवार ने सवा सेर प्रसाद चढ़ाया और सभी से कामना की कि श्रावण अमावस्या पर अपनी इच्छा अनुसार पूजा पाठ अवश्य करें।