सरला बिरला विश्वविद्यालय सभागार में आध्यात्मिक जीवन शैली कोविड-19 के परिपेक्ष में एक्सपर्ट टॉक का आयोजन

रांची : सरला बिरला विश्वविद्यालय के सभागार में आध्यात्मिक जीवन शैली: कोविड-19 के परिपेक्ष में शीर्षक पर एक्सपर्ट टॉक का आयोजन किया गया है जिसमें बतौर मुख्य अतिथि सह वक्ता महंत सिद्ध पीठ, हनुमंत निवास श्रीअयोध्या धाम, उत्तर प्रदेश के आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण जी महाराज ने अपने आध्यात्मिक एवं प्रेरक विचारों से ना केवल ज्ञानवर्धन किया बल्कि विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों एवं कर्मचारियों को जीवन मूल्यों, उद्देश्यों, दैनिक व्यवहार एवं आचरण से संबंधित विभिन्न बिंदुओं पर सकारात्मक एवं उपयोगी विचारो द्वारा आध्यात्मिकता से परिचित कराया।
अध्यात्मिकता की व्यापक भूमिका के बारे में विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि अध्यात्म जीवन प्रबंधन की अवधारणा है। आत्म तत्व को पहचान कर उसके सम्मुख जीवन जीने की विधि अध्यात्म है। उन्होंने मानव जीवन के लिए निर्धारित धर्म के दस लक्षणों की विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि निर्माण सदैव प्रतिकूलता में होती है, अनुकूलता में तो केवल विकास होती है। धर्म, योग, अध्यात्म, सत्संग, विवेक व कल्याण आदि की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि आज धर्म उपेक्षा और अरुचि का विषय बन गया है। जीवन में धर्म की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार धर्म है। जो हमें धारण करे वह धर्म है। हमारे आचार, व्यवहार से धर्म परिलक्षित होता है।
धर्म एवं अध्यात्म का परस्पर संबंध है। धर्म किसी उपासना का नहीं अपितु मनुष्य बनाने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। उन्होंने जीवात्मा एवं परमात्मा के अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि असुरक्षा बोध एवं मृत्यु का डर ही हिंसा का कारक है। उन्होंने भय एवं आशंकाओं से रहित होकर कर्तव्य पथ पर चेतनायुक्त भाव से लगे रहने की सलाह दी।
छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में मुश्किलों को चुनने वाले हैं महान बन पाते हैं। राम ने सारी सुविधाओं को परित्याग कर दंडकवन को स्वीकार किया था तो ही वे श्रीराम बन पाए।
मनुष्य होने के लिए श्रीराम को आदर्श मानकर उनके विचारों को जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है। आगे उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक होने का अर्थ देशकाल एवं परिस्थिति के अनुकूल व्यवहार करना है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रोफ़ेसर गोपाल पाठक ने रामचरितमानस के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि परहित से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने से बड़ा कोई पाप नहीं है। उन्होंने छात्रों एवम प्राध्यापकों से आध्यात्म मार्गों को अपनाने की प्रेरणा प्रदान करते हुए रामचरितमानस एवं भगवद्गीता को अध्ययन करने की सलाह दी।
कार्यक्रम में स्वागत अभिभाषण प्रस्तुत करते हुए मानविकी की डीन प्रोफेसर नीलिमा पाठक ने अध्यात्म के अर्थ की चर्चा करते हुए कहा कि मन को सार्थक रूप देना तथा उसे उदात्तता तक पहुंचाना जीवन का उद्देश्य है। हम जीवन में धैर्य, करुणा, सत्य, ईमानदारी को विकसित कर ही आध्यात्मिक बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि मैं की सीमा से बाहर निकल कर हम की सीमा में प्रवेश ही आध्यात्मिक होना है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ नम्रता चौहान एवं डॉ नीतू सिंघी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन की औपचारिकता डॉ अशोक कुमार अस्थाना द्वारा प्रस्तुत की गई।
कार्यक्रम में कुलसचिव प्रो विजय कुमार सिंह, उप कुलसचिव प्रो अमित गुप्ता, डॉ संदीप कुमार, डॉ सुबानी बाड़ा, श्री आशुतोष द्विवेदी, डॉ रिया मुखर्जी, श्री अजय कुमार , श्री प्रवीण कुमार, डॉ संजीव कुमार सिन्हा, डॉ राधा माधव झा, डॉ पूजा मिश्रा, डॉ भारद्वाज शुक्ल, डॉ मनोज पांडे, डॉ कुणाल सिन्हा, प्रो एलजी हनी सिंह, डॉ पिंटू दास , अमरेंद्र दत्त द्विवेदी, डॉ अभिषेक चौहान, रविंद्र तिवारी, डॉ अरविंद भंडारी सहित छात्र-छात्राएं, प्राध्यापक, पदाधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।

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