मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 1.36 लाख करोड़ के बकाये के भुगतान को लेकर नीति आयोग और कोयला मंत्रालय को लिखा पत्र, ट्वीट कर कहा- बार-बार आग्रह करने पर भी नहीं मिल रहा झारखंड का पैसा
रांचीः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नीति आयोग और कोयला मंत्रालय को ट्वीट कर कहा है कि जल्द राज्य के 1.36 लाख करोड़ के बकाये का भुगतान किया जाये. उन्होंने कहा है कि बार-बार कोयला मंत्रालय को पत्र लिखने के बाद भी भुगतान को लेकर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. उन्होंने ट्वीट में दो मार्च को केंद्रीय कोयला मंत्री को लिखे पत्र को भी संलग्न किया है. पत्र का मजमून इस प्रकार है. उन्होंने कहा है कि झारखंड एक खनिज संसाधनों का अमीर राज्य है. जहां 80 प्रतिशत खनिज उत्पादन का उपयोग देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहा है. कोल इंडिया और उसकी सहयोगी इकाईयां झारखंड से कोयले का उत्खनन तो कर रही हैं. पर राज्य सरकार के हिस्से का राजस्व नहीं दे रही हैं.
कोल वाशरियों से झारखंड को 29 सौ करोड़ रुपये की रायल्टी मिलनी है.
झारखंड में अवस्थित कोल वाशरियों से झारखंड को 29 सौ करोड़ रुपये की रायल्टी मिलनी है. माइंस एंड मिनरल्स डेवलपमेंट रेग्यूलेशन (एमएमडीआर) एक्ट के धारा 21 (5) के तहत कॉमन काउज के अंतर्गत झारखंड को 32 हजार करोड़ रुपये मिलने हैं. वहीं जिन कोलयरियों में माइनिंग हो रही है. उस जगह में माइनिंग क्षेत्र की जमीन का मुआवजा एक लाख एक करोड़ से अधिक का बकाया है. यानी कुल बकाये की राशि जो झारखंड को मिलना है वह 136, 042 लाख करोड़ रुपये है. झारखंड इसकी वजह से भयंकर आर्थिक संकट से जुझ रहा है. इसकी वजह से राज्य के सामाजिक आर्थिक विकास से जुड़ी कई योजनाएं सरकार पूरा नहीं कर पा रही हैं.
नोटिस जारी करने पर भी भुगतान नहीं हो रहा है
कोयला कंपनियों की वाशरियों से धूले हुए कोयले की रॉयल्टी मिलती है राज्य सरकारों को झारखंड में रन ऑफ माइन कोल के तहत रॉयल्टी का भुगतान नहीं किया जा रहा है. संबंधित जिलों के जिला खनन पदाधिकारियों की तरफ से कोल इंडिया की अनुषंगी इकाईयों को लगातार रायल्टी के भुगतान को लेकर पत्र लिखा जा रहा है. पर नोटिस जारी करने पर भी भुगतान नहीं हो रहा है. राज्य में कोल इंडिया के सीसीएल और बीसीसीएल की वाशरियां रजरप्पा, पिपरवार, कथारा, स्वांग, करगली, मुनीडीह औऱ् महुधा मेंहैं. हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में टाटा स्टील लिमिटेड औऱ् बीसीसीएल के कई मामले विचाराधीन हैं.
टाटा स्टील ने होईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर रखा है. इसमें धुले हुए कोयले की डिफरेंशियल रॉयल्टी, मिडलिंग्स, टेलिंग्स, रिजेक्ट कॉल पर राजस्व वसूली के सरकार के नोटिस को चुनौती दी गयी है. पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद टाटा स्टील ने 2015 से इन कोयलों पर रायल्टी का भुगतान शुरू कर दिया है. बीसीसीएल ने मुनीडीह कोलियरी को लेकर ट्रांसपोर्ट चालान और धुले हुए कोयले की रायल्टी का भुगतान का मामला लंबित था. पर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद धुले हुए कोयले की रायल्टी का भुगतान शुरू कर दिया गया है. कोल इंडिया की अन्य कंपनियों द्वारा रायल्टी का भुगतान नहीं हो रहा है.
नन पेमेंट ऑफ लैंड कंपेंनसेसन के तहत 101,142 करोड़ रुपये कोल कंपनियों की देनदारी है
कोल इंडिया की कंपनियां झारखंड में कई वर्षों से 32 हजार 802 एकड़ से अधिक गैर मजरूआ भूमि और छह हजार 655 एकड़ से अधिक गैर मजरुआ जंगल झाड़ी की जमीन पर माइनिंग कर कोयले का उत्खनन कर रही हैं. सीसीएल, बीसीसीएल, इस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड की तरफ से इस बाबत 41, 142 करोड़ का डेड रेंट और अन्य जमीन का भुगतान नहीं किया जा रहा है. इसमें इंटरेस्ट जोड़ दिया जाये, तो यह 60 हजार करोड़ सिर्फ ब्याज की राशि है. ऐसे में नन पेमेंट ऑफ लैंड कंपेंनसेसन के तहत 101,142 करोड़ रुपये कोल कंपनियों की देनदारी है. इसके अलावा कोल इंडिया की कंपनियों की तरफ से कोयले पर रायल्टी 14 फीसदी की दर से नहीं दिया जा रहा है. इसमें कोयले की कीमत में एड वैलोरेम टैक्स, इन्वायस, लेवी और अन्य चार्जेज शामिल हैं.