बिहार बीजेपीः लोग आते गए कारवां बनता गया, 21से बढ़कर हो गईं 77 सीटें

पटनाः बिहार में बीजेपी की साख साल दर साल बढ़ती ही गई। लोग आते गए और कारवां बनता गया। आज बिहार में बीजेपी नंबर वन पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है। शून्‍य से आरंभ होकर सबको पीछे छोड़ने तक का यह सफर चार दशकों का है। इस दौरान प्रदेश में बीजेपी की कमान कैलाशपति मिश्रा , इंदरसिंह नामधारी और ताराकांत झा से लेकर संजय जायसवाल जैसे सरखे नेताओं ने पार्टी को मंजिल की ओर बढाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
1980 में 21 विधायक बीजेपी के थे
बीजेपी ने बिहार में सबसे पहला विधानसभा चुनाव 1980 में लड़ा था। इसी वर्ष छह अप्रैल को बीजेपी की स्थापना भी हुई थी। संयुक्त बिहार की 324 सीटों में से 246 सीटों पर लड़ते हुए पार्टी ने कुल 8.41 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे एवं उसके 21 विधायक जीतकर आए थे। 1990 से फिर रफ्तार पकड़ी। तब इंदर सिंह नामधारी प्रदेश अध्यक्ष थे। पार्टी ने 337 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और विधायकों की संख्या 39 तक पहुंच गई। बिहार में बीजेपी को पहली बार उल्लेखनीय सफलता 1995 में तब मिली, जब कैलाशपति मिश्र के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव हुए। पार्टी के 315 प्रत्याशियों में 41 जीतकर आए और मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ गई। यशवंत सिन्हा को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।
2000 में भी बीजेपी ने नंबर दो की कुर्सी बरकरार रखी
2000 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने नंबर दो की कुर्सी बरकरार रखी। समता के साथ गठबंधन के तहत उसने 168 सीटों पर चुनाव लड़कर 67 जीते। चुनाव के तुरंत बाद अलग झारखंड राज्य का गठन हुआ और बिहार विधानसभा की सीटें 243 रह गईं। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 74 सीटों पर जीत मिली। हालांकि, विधानसभा चुनाव में राष्‍ट्रीय जनता दल को मिली 75 सीटों के बाद वह नंबर दो पर ही रही। लेकिन मार्च 2022 के नाटकीय घटनाक्रम में एनडीए में शामिल मुकेश सहनी की पार्टी के सभी तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद अब बीजेपी बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।

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