झारखंड आंदोलन के संघर्षशील सिपाही आलोक कुमार दूबे को मिला आंदोलनकारी का दर्जा, युवाओं के लिए बने प्रेरणा स्रोत

रांची :झारखंड के अलग राज्य निर्माण आंदोलन की चिंगारी को मशाल में बदलने वाले जुझारू नेता, प्रदेश कांग्रेस कमिटी के महासचिव आलोक कुमार दूबे को झारखंड सरकार द्वारा “चिन्हित झारखंड आंदोलनकारी” का गौरवपूर्ण दर्जा प्रदान किया गया है। यह केवल एक औपचारिक मान्यता नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक संघर्ष का सम्मान है जिसमें आलोक कुमार दूबे ने तन-मन-धन से अपनी भूमिका निभाई थी।

जब झारखंड के सपने को साकार करने के लिए आंदोलन सड़कों पर था, तब एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में आलोक कुमार दूबे सबसे आगे खड़े नजर आते थे। कई बार लाठियां खाईं, गिरफ्तारी झेली, लेकिन हौसला नहीं टूटा। उनकी अगुवाई में छात्र-युवाओं का हुजूम आंदोलन की रीढ़ बना।
एनएसयूआई के प्रयास से अलग राज्य निर्माण हेतु गठित “सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति” में झारखंड हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस लाल पिंगला नाथ शाहदेव को सर्वसम्मति से संयोजक बनाया गया था, जबकि एनएसयूआई अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे को प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई। जस्टिस शाहदेव और आलोक दूबे की जोड़ी ने झारखंड के कोने-कोने में आंदोलन की लौ को जलाए रखा और सभी राजनीतिक दलों, संगठनों को एक मंच पर लाकर जनजागरण का विराट अभियान खड़ा किया।

21 सितंबर 1998 का दिन झारखंड आंदोलन के इतिहास में उतना ही निर्णायक बन गया, जितना 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ था। जिस प्रकार 1942 में यह तय हो गया था कि भारत अब आजाद होकर रहेगा, उसी तरह 21 सितंबर 1998 को झारखंड की धरती पर यह तय हो गया था कि 2000 में झारखंड एक अलग राज्य बनेगा।

इस दिन की ऐतिहासिकता को बढ़ाया था एक बड़े राजनीतिक बयान ने, जब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा – “झारखंड अलग राज्य मेरी लाश पर बनेगा” — और झारखंड की जनता के बीच एक भूचाल सा आ गया। विरोध के स्वर और तेज हो गए। 21 सितम्बर 1998 की झारखंड बंदी ऐतिहासिक रही।
इसी दिन सुबह एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और अन्य प्रमुख स्थानों पर बंदी कराने के बाद जब जस्टिस शाहदेव और आलोक कुमार दूबे सैनिक मार्केट से जुलूस निकाल रहे थे, तब उन्हें गिरफ्तार कर कोतवाली थाना लाया गया। देर शाम एफआईआर दर्ज कर निजी मुचलके पर छोड़ा गया। इस गिरफ्तारी का उल्लेख स्वयं जस्टिस शाहदेव ने अपने लेखों में कई बार किया है। यह दिन आंदोलन की निर्णायक परिणति का प्रतीक बन गया।
हर जिले, हर पंचायत तक आंदोलन का संदेश लेकर जाने वाले इस जुझारू नेता ने अलग झारखंड के लिए हर राजनीतिक दल, हर सामाजिक संस्था को एक मंच पर लाने का कार्य किया। एनएसयूआई कार्यालय उस समय समिति की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया था, जहां से रणनीति बनती और आंदोलन का संचालन होता।
जस्टिस शाहदेव स्वयं आलोक कुमार दूबे को हमेशा अपने साथ रखते थे, चाहे वह प्रेस कॉन्फ्रेंस हो या सड़कों पर उतरने की रणनीति। यह विश्वास आलोक की ईमानदारी, समर्पण और आंदोलन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

एनएसयूआई की राष्ट्रीय कार्यसमिति और संसद एनेक्सी में आयोजित कई बैठकों में झारखंड अलग राज्य के मुद्दे को रखने का मौका भी आलोक कुमार दूबे को मिला। इन बैठकों में तत्कालीन एनएसयूआई राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा, मीनाक्षी नटराजन, मानिक टैगोर, नदीम जावेद, अशोक तंवर, अवन्तिका लाल माकन,एनएसयूआई प्रभारी मुकुल वासनिक जैसे साथियों का सहयोग मिला। विशेष रूप से तत्कालीन कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष भी आलोक कुमार दूबे को झारखंड अलग राज्य की बात रखने का अवसर प्राप्त हुआ। एक बार तो माननीय स्वर्गीय अहमद पटेल संसद एनेक्सी में इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने कहा –
“बेटा, तुम जब भी दिल्ली आओगे, मुझसे मिलकर जाना; तुम्हारे लिए दरवाजा खुला रहेगा।”

प्रदेश में उस समय क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बंदी उरांव भी सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति से जुड़कर आंदोलन में शामिल हुए और संघर्ष को मजबूत किया।

आज जब आलोक कुमार दूबे को “चिन्हित झारखंड आंदोलनकारी” के रूप में सम्मानित किया गया है, तो यह उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने समाज और राज्य के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा रखते हैं।
संघर्ष की राह पर जिसने कांटों से दोस्ती की,
इतिहास ने उसे ही क्रांति का वाहक बनाया।”
यही पहचान है आलोक कुमार दूबे की।
साथ ही लाल किशोर नाथ शाहदेव एवं राजेश गुप्ता को भी झारखंड सरकार द्वारा चिन्हित आंदोलनकारी का दर्जा प्रदान किया गया है, जो इस ऐतिहासिक आंदोलन में उनके योगदान की सच्ची मान्यता है।

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