महालेखाकार की रिपोर्ट में खुलासा,रामगढ़ में बच्चों को हेपेटाइटिस बी की 410 खुराक एक्सपायरी इंजेक्शन दिया गया

रांची। झारखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं महालेखाकार द्वारा पेश किए गए रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं जिसमें कहा गया है कि रामगढ़ में बच्चों को हेपेटाइटिस बी की 410 खुराक एक्सपायरी इंजेक्शन दिया गया है। वैक्सीन की डेट अक्टूबर 2018 में खत्म हो गई। इसके बाद नवंबर 2018 से जनवरी 2019 के बीच इनका इस्तेमाल किया गया। इसके साथ ही कई दवाएं लैब की जांच में नकली पाई गई है।
राज्य के कई अस्पतालों में आईसीयू नहीं
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राज्य के कई अस्पतालों में आईसीयू नहीं है। पलामू में आईसीयू है लेकिन काम नहीं करता है। लैब तकनीशियन की कमी है। जिसकी वजह से जरूरी जांच भी नहीं हो पाती है। सीटी स्कैन मशीन की भारी कमी है। एक्सरे की मशीनें हाई फ्रीक्वेंसी की हैं। जिसकी वजह से मानव शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

मेडाल और एसआरएल पैथोलॉजी जांच के निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करते
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मेडाल और एसआरएल पैथोलॉजी जांच के निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करते हैं। सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या डेढ़ गुना बढ़ गई है लेकिन उसके अनुपात में चिकित्सकों की संख्या नहीं बढ़ी है। जिसकी वजह से मरीजों को देखने के समय में बहुत कमी आई है। इसके चलते मरीज चिकित्सकों से संतुष्ट नहीं है।

राज्य सरकार ने राज्य में चिकित्सकों की नियुक्ति की कोशिश की थी। डेढ़ सौ चिकित्सक नियुक्त भी हुए थे लेकिन कईयों ने नौकरी छोड़ दिया। महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने कहा कि रिपोर्ट में उठाए गए बिंदुओं पर राज्य सरकार अध्ययन करें। जहां कमियां हैं। उन्हें दूर करने का प्रयास हो। साथ ही इसके लिए जिम्मेवार अधिकारियों को चिन्हित किया जाए।
महालेखाकार की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि झारखंड के सदर अस्पतालों के ओपीडी में आनेवाले मरीजों की संख्या में 57 प्रतिशत की वृद्धि हो गई। दूसरी तरफ, प्रत्येक ओपीडी महज एक डाक्टर की ही उपलब्धता रही। ओपीडी पर मरीजों का बोझ बढ़ता गया, जिसके कारण डाक्टर मरीजों को पर्याप्त परामर्श नहीं दे सके। जनरल मेडिसिन के ओपीडी में 79 से 325 मरीजों, गायनोकोलाजी में 30 से 149 तथा पीडियाट्रिक ओपीडी में 20 से 118 मरीजों को प्रत्येक दिन एक डाक्टर द्वारा परामर्श दिया गया। इस वजह से मरीजों को मिलने वाले पांच मिनट से कम समय मिल सका।
रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2014 में झारखंड के सभी जिलों के सदर अस्पतालों में दस-दस बेड की बर्न यूनिट प्रत्येक 1.35 करोड़ की लागत से स्वीकृत हुई थी। इनमें से चार जिलों की योजना बाद में रद्द कर दी गई। 20 जिलों में 12.40 करोड़ रुपये खर्च कर यूनिट की स्थापना तो की गई, लेकिन उपकरण नहीं खरीदे जाने के कारण 7 साल में भी ये चालू नहीं हो सकीं।

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