झारखंड में बढ़ रहा है प्रदूषण का स्तर, 655 करोड़ रुपए का बना था प्रदूषण को रोकने के लिए एक्शन प्लान, नहीं हुआ काम
झारखंड में हर दिन 500 से अधिक मिल रहे हैं अस्थमा के मरीज
रांची। कोरोना काल के बाद झारखंड में एक बार फिर से प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता ही जा रहा है इस कारण झारखंड में हर दिन 500 से अधिक अस्थमा के मरीज मिल रहे हैं। अस्थमा का प्रमुख कारण प्रदूषण ही है। बताते चलें कि झारखंड में प्रदूषण को रोकने के लिए 655 करोड़ का एक्शन प्लान बना था इसके तहत इको ट्रांसपोर्टेशन टाउन प्लैनिंग और स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट के प्रावधान किए जाने थे वहीं ग्रामीण इलाकों की सड़कों में खनिज परिवहन से होने वाले प्रदूषण को भी रोकने की योजना बनाई गई थी लेकिन सभी योजना धरी की धरी रह गई खनन क्षेत्र में प्रदूषण को रोकने के लिए 326 करोड़ और शहरी क्षेत्र में प्रदूषण को रोकने के लिए 329 करोड़ रुपए के एक्शन प्लान को स्वीकृति दी गई थी लेकिन अब तक झारखंड में इको फ्रेंडली वातावरण नहीं बन पाया है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में बेंजीन सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा में काफी वृद्धि हुई है कोयलांचल में कार्बन मोनो डाइऑक्साइड की मात्रा 2000 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गई है वहीं धूल कन्या अन्य धातु खतरे के निशान से 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर अधिक हो गया है ओजोन की मात्रा 6.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की गई है यह स्थिति काफी चिंताजनक है अगर ओजोन की मात्रा बढ़ी तो ऑक्सीजन में कमी आ जाएगी। चाईबासा रामगढ़ धनबाद और सरायकेला में प्रदूषण की सबसे गंभीर स्थिति बनी हुई है इन जिलों में क्रशर और खनन के कारण प्रदूषण का इंडेक्स 70 डेसीबल पार कर गया है धनबाद में या इंडेक्स 79 डेसीबल तक पहुंच गया है लेकिन राहत की बात यह है कि शेष जिलों में प्रदूषण का इंडेक्स 60 से कम है.
एक्शन प्लान के मुताबिक खनन क्षेत्र में ओपन और अंडरग्राउंड माइनिंग से होने वाले प्रदूषण पर अंकुश के लिए 5.5 करोड़ की योजना बनी थी ग्रीन ग्रोथ प्लानिंग के तहत 6.5 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। ग्रामीण सड़कों से खनिजो का होने वाले परिवहन से प्रदूषण को कम करने के लिए 300 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था लेकिन इस पर भी काम नहीं हो पाया ट्रांसपोर्टेशन से प्रदूषण कम करने के लिए तीन करोड़ खदानों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए 12 करोड़ और खनिजों को धोने और बाउंड्री निर्माण के लिए दो करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था लेकिन सारी योजना धरी की धरी रह गई। शहरों में प्रदूषण पर अंकुश पाने के लिए शहरी ट्रांसपोर्ट मैनेजमेंट के लिए 55.75 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था इको फ्रेंडली वातावरण के लिए 14 करोड़ कार्बन की मात्रा कम करने के लिए 40.25 करोड़ और रेन वाटर मैनेजमेंट के लिए 182 करोड़ रुपए के प्रावधान किए गए थे इस पर भी 1 इंच भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाई। जिसका नतीजा यह है कि प्रदूषण का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है।