हजारीबाग की विरासत पर आधारित एक दिवसीय सेमिनार का हुआ आयोजन
हजारीबाग (गणादेश) : जिला जनसंपर्क कार्यालय के द्वारा शुक्रवार को मौलाना अबुल कलाम आजाद इनडोर स्टेडियम हजारीबाग में हजारीबाग की विरासत थीम पर आधारित एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस सेमिनार में हजारीबाग के सभी पत्रकार एवं प्रबुद्धजन शामिल हुए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में उपायुक्त नैंसी सहाय शामिल हुई। सेमिनार कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत उपायुक्त व अन्य ने प्रज्वलित कर किया। मुख्य अतिथि उपायुक्त नैंसी सहाय ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि आज के इस हजारीबाग लिगेसी पर आधारित कार्यक्रम के माध्यम से हजारीबाग की पुरानी ऐतिहासिक विरासत को करीब से समझने का अवसर मिला है।
हजारीबाग की विरासत और संस्कृति के अनछुए पहलुओं को हमारे बीच उपस्थित वक्ताओं के द्वारा सुनने और समझने का भी अवसर मिला है। पत्रकार साथियों से भी यह अपेक्षा है कि आज के इस कार्यक्रम के माध्यम से जितनी भी जानकारियां हजारीबाग की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी साझा की जाएगी उन्हें प्रमुखता से आम आवाम को सुलभ हो सके इसके प्रयास जरूर करे। जिला प्रशासन भी हमेशा इस प्रकार के आयोजन कर वृहत जानकारी और सकारात्मक पहल को लेकर प्रयासरत रहेगा। जनसंपर्क उपनिदेशक श्री आनंद ने सेमिनार का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि हजारीबाग में मानव सभ्यता के प्रारंभ से लेकर आधुनिक काल तक के मानक संदर्भ इस प्रकार से सुलभ है जिससे सभ्यता के विकास की व्याख्या हो सकती है। इस्को गुफा चित्र के अंकन की बारीकियां स्थानीय कोहबर एवं सोहराय चित्रकला में उपस्थित है, जो सभ्यता के विकास की निरंतरता को दर्शाती है। पद्मश्री बुलू इमाम ने हजारीबाग क्षेत्र के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों यथा दैहर, बहोरनपुर, इचाक, इटखोरी से प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि हजारीबाग का इलाका बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध केंद्र रहा है। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध के चरण भी यहां पड़े हैं। जैन धर्म की भी ऐतिहासिकता इस क्षेत्र में उपलब्ध रही है। उन्होंने कहा कि प्रागैतिहासिक काल से होकर बाद के समय में मानव सभ्यता के विकास के चिन्ह भी इस धरती पर मौजूद है। अंतः उन्होंने इन धरोहर के संरक्षण एवं संवर्धन पर बल दिया। मेगालिथ पर अपने किए गए विभिन्न शोधों का हवाला देते हुए शुभाषीश दास ने कहा कि पूरी दुनिया में मेगालिथों को लेकर लोग अत्यंत संवेदनशील है। कई देशों में वहां के मेगालिथ साइटों को विशेष धरोहर की सूची में शामिल किया जा चुका है। परंतु भारत में खास करके झारखंड में मेगालिथों को लेकर स्थानीय स्तर पर लोगों को जानकारी नहीं है। जिसका नतीजा है कि झारखंड के दुर्लभ मेगालिथ साइटों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में प्रयास नगण्य हैं। उन्होंने सबों से अपनी धरोहर के संरक्षण के लिए आगे आने की अपील की। संत कोलंबस कॉलेज के प्राध्यापक डॉ शत्रुघ्न कुमार पांडेय ने स्वतंत्रता आंदोलन में हजारीबाग के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भी हजारीबाग जेल में नजर बंद किए जाने की योजना थी। उन्होंने संबंधित अभिलेखों का संदर्भ देते हुए कहा कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को यह भय था कि नेता जी को हजारीबाग जेल में नजर बंद किए जाने के बाद भयानक रूप से विद्रोह हो सकता है और हजारीबाग जेल में उस समय बंद क्रांतिकारियों को लोग छुड़ा लेंगे। जिसके कारण यह योजना स्थगित करनी पड़ी। उन्होंने अपने वक्तव्य में हजारीबाग जेल में बंद किए गए देश के विभिन्न प्रांतो के क्रांतिकारी के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा की। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक विवरण में हजारीबाग को निर्वासित भूमि एवं जंगल-कला पानी की संज्ञा दी गई है। जहां वर्मा, थाईलैंड, सिंगापुर, पंजाब, राजस्थान, मणिपुर, मेघालय सहित कई राज्यों के कैदियों को बंदी बनाकर रखा गया है। सभा में अतिथियों के वक्तव्यों के बाद ओपन सेशन आयोजित किया गया जिसमें पत्रकार बंधुओं ने अपने वक्तव्य को सबों के समक्ष साझा किया। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए जिला जनसंपर्क अधिकारी रोहित कुमार ने कहा कि आज के इस सेमिनार में प्रस्तुत वक्ताओं के अभिभाषण को पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।