आदिवासी महोत्सव में देशभर के कलाकारों ने दी शानदार प्रस्तुति,झूमने को मजबूर हुए दर्शक

रांची: बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में आयोजित दो दिवसीय झारखंड आदिवासी दिवस के दूसरे दिन शनिवार को देशभर के कलाकारों ने अपनी शानदार कला का प्रदर्शन किया। गीत और नृत्य का दर्शकों ने खूब आनंद लिया।दो दिवसीय महोत्सव के समापन समारोह में नृत्य, गीत और झांकी के जरिए कलाकारों ने समां बांध दिया। पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख, ज्योति साहू, विवेक नायक समेत अन्य कलाकारों की जीवंत प्रस्तुति पर दर्शक झूम उठे।
इस भव्य समारोह में पद्मश्री मधु मंसूरी की शानदार प्रस्तुति पर लोग झूम उठे।
द सजनीग्रुप नागपुरी बैंड द्वारा आधुनिक नागपुरी और कुड़ुख गीत की प्रस्तुति दी गयी. गायक विवेक नायक ने दिलकश आवाज से दर्शकों का मनोरंजन किया.
वहीं विभिन्न राज्यों से आए चित्रकला और पेंटिंग के कलाकारों ने आदिवासी जीवन दर्शन कराने का अनूठा प्रयास किया।
इस अवसर पर संताल-परगना की पारंपरिक लोक चित्रकला जादो पटिया देखने को मिला। जो कि जादो समाज के इतिहास, उनके रहन-सहन और खान-पान को दर्शाता है। आदिवासी चित्रकला कार्यशाला सह प्रदर्शनी में संताल-परगना की जादो पटिया पेंटिंग से जुड़े आठ कलाकारों ने भाग ले रहें हैं। इनमें नेशनल फेलोशिप अवार्डी नीलम नीरद, अर्पित राज नीरद, निताई चित्रकार, गणपति चित्रकार, दशरथ चित्रकार, दयानंद चित्रकार, जीयाराम चित्रकार आदि शामिल हैं। कलाकारों को जादो पटिया पेंटिंग के खोजकर्ता डॉ. आर.के.नीरद ने जादो पटिया और पटकर पेंटिंग की जानकारी दी है।
झारखंडी संस्कृति में सोहराई कला का विशेष महत्व रहा है। प्रकृति से मनुष्य को जोड़े रखने में सोहराई कला का विशेष योगदान रहा है। हजारीबाग जिले के बादम से सोहराई कला की उत्पत्ति मानी जाती है। जिसे ब्रांड के रूप में बुल्लू इमाम और उनके परिवार के सदस्यों ने स्थापित करने का काम किया है। अल्का इमाम ने सोहराई कला को महत्व देते हुए अलग-अलग प्रयोग किए और इस कला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में लगीं हैं। हजारीबाग से आयी अल्का इमाम, बेलनगिनी रोबर्ट मरियम, उषा पन्ना एवं‌ प्रमीला किरण लकड़ा सोहराई कला के माध्यम से मानव समाज को प्रकृति से जुड़े रहने का संदेश दे रहीं हैं। वे कहती हैं प्रकृति रहेगी, तो जीवन रहेगा। राज्य में मनाए जाने वाले सोहराई पर्व में देसज दुधि माटी से सजे घरों की दीवारों पर महिलाओं के हाथों का हुनर खासकर देखने को मिलता है।
वहीं शांति निकेतन से आए मादी लिंडा अपनी अद्भुत कला की प्रदर्शनी कर रहें हैं। जिसे “जनी शिकार” के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ “जिस शिकार में महिलाएं शामिल हों।” झारखंड राज्य में हर बारह वर्षों में “जनी-शिकार” के आयोजन की परंपरा रही है। यह परंपरा उरांव‌ जनजाति के गौरवशाली इतिहास को दर्शाता है। जो कि झारखंड में नारी शक्ति के उत्थान का द्योतक भी माना जाता है। महिलाएं इस चित्र को काफी पसंद कर रहीं हैं और इसकी सराहना कर रहीं हैं।
झारखंड आदिवासी महोत्सव के इस प्रदर्शनी में फाइन आर्ट से संबंधित करीब 55 कलाकारों ने हिस्सा लिया है। जो कि देश के अलग-अलग आदिवासी बहुल क्षेत्रों से आते हैं। जिनमें मुख्य रूप से झारखंड की राजधानी राँची समेत अन्य जिलों से आए कलाकार, वाराणसी से आए कलाकार, छत्तीसगढ़ समेत क‌ई राज्यों के कलाकार शामिल हैं। झारखंड की कलाओं में मुख्य रूप से सोहराय, कोहबर, जादो पटिया, उरांव पेंटिंग, मॉर्डन आर्ट, समकालीन चित्रकारी समेत अन्य शामिल हैं।

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