केंद्रीय मंत्री बघेल का विवादित बयान, देश में गिने-चुने मुसलमान ही सहिष्णु
नई दिल्ली : केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह बघेल के एक नए बयान ने विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि देश में गिने-चुने मुसलमान ही सहिष्णु हैं। यहां तक कि जो सहिष्णु दिखते भी हैं वो सार्वजनिक जीवन में बने रहने और राज्यपाल, उपराष्ट्रपति या फिर कुलपति जैसे पद हासिल करने के लिए इसे एक मुखौटा के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन समुदाय के ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों का असली चेहरा उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद सामने आता है।
आगरा से भाजपा सांसद एसपी बघेल ने सोमवार को देव ऋषि नारद पत्रकार सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की। पत्रकारों को पुरस्कार देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के मीडिया विंग इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र ने नई दिल्ली के ‘महाराष्ट्र सदन’ में यह कार्यक्रम आयोजित किया था।
बघेल ने कहा कि सहिष्णु मुसलमानों को उंगलियों पर गिना जा सकता है। मुझे लगता है कि उनकी संख्या हजारों में भी नहीं है। और वह भी सार्वजनिक जीवन में मुखौटा पहनकर जीने की रणनीति है, क्योंकि यह मार्ग उन्हें उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या कुलपति पद की ओर ले जाता है, लेकिन जब वे कुर्सी छोड़ते हैं तो वे ऐसा बयान देते हैं जो उनकी वास्तविकता को दर्शाता है।
मंत्री ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के एक तबके को लगता है कि चूंकि वे इतने लंबे समय तक शासक रहे, तो वे प्रजा कैसे बन सकते हैं। सारी लड़ाई इसी को लेकर है। इसका कारण खराब गुणवत्ता की शिक्षा है। अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने में ही समस्या का समाधान निहित है।
बघेल ने कहा कि अगर वे मदरसों में उर्दू, अरबी और फारसी सीखेंगे तो इस तरह की पढ़ाई से इमाम बनेंगे और अगर वे फिजिक्स और केमिस्ट्री पढ़ेंगे, तो अब्दुल कलाम बनेंगे।
दरअसल, केंद्रीय मंत्री की यह टिप्पणी केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर के कार्यक्रम में दिए गए भाषण के बाद आई है। माहुरकर ने कहा था कि भारत को इस्लामी कट्टरवाद से लड़ना चाहिए, लेकिन सहिष्णु मुसलमानों को साथ लेकर चलना चाहिए। अपने शासन के दौरान मुगल राजा अकबर के हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए माहुरकर ने दावा किया कि छत्रपति शिवाजी ने इसको एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा था। उन्होंने कहा कि अकबर ने हिंदू-मुस्लिम एकताके लिए पूरी कोशिश की।
वहीं, केंद्रीय मंत्री बघेल ने माहुरकर की टिप्पणी को खारिज करते हुए अकबर के प्रयासों को महज ‘रणनीति’ करार दिया और आरोप लगाया कि मुगल बादशाह की जोधाबाई से शादी उनकी ‘राजनीतिक रणनीति’ का हिस्सा थी। उन्होंने कहा कि यह अकबर के दिल से नहीं निकला था, वरना चित्तौड़गढ़ का नरसंहार नहीं होता। उन्होंने कहा कि मुगल काल… औरंगजेब के कर्मों को देखें। कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि हम कैसे जीवित रहे। बघेल ने कहा कि भारत के बुरे दिन 1192 ईस्वी में शुरू हुए जब मोहम्मद गौरी ने राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान को हराया था।
बघेल ने धर्मांतरण का मुद्दा भी उठाते हूर आरोप लगाया कि देश में तलवार से ज्यादा गंडे ताबीज के जरिए लोगों को दूसरे धर्म में परिवर्तित कराया गया। उन्होंने कहा कि चाहे वह ख्वाजा ग़रीब नवाज़ साहब हों, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया या सलीम चिश्ती, आज भी हमारे समुदाय के लोग बड़ी संख्या में वहां बच्चे, नौकरी, चुनाव में टिकट, मंत्री पद, राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री बनने की मुराद लेकर जाते हैं।