गुजरात में बाजी मारने के बाद अब मध्यप्रदेश में सत्ता बरकरार रखने के लिए भाजपा की कवायद तेज

दिल्ली : गुजरात फतह करने के बाद भाजपा की नजर अब मध्यप्रदेश पर टिकी है। कमल को बचाने के लिए शीर्ष नेता इसपर अपनी तैयारी में जुट गए हैं। पार्टी नेतृत्व ने मध्य प्रदेश में सत्ता-संगठन से वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए तैयार प्लान की जानकारी मांगी है। दरअसल, पार्टी नेतृत्व भी मान रहा है कि भाजपा के लिए मिशन 2023 आसान नहीं है। मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस की सीटों में काफी कम अंतर है। तमाम दल-बदल के बाद भी सदन में भाजपा के पास 127 और कांग्रेस के पास 96 विधायक हैं। भाजपा के दो विधायकों की सदस्यता भी संकट में है।

कई चुनौतियों पर भाजपा आलाकमान की नजर
2018 के विस चुनाव में भी वोट शेयर देखें तो भाजपा को 41.6 प्रतिशत और कांग्रेस को 41.5 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि, 2020 में 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा के वोट शेयर में खासी बढ़ोतरी देखी गई थी, लेकिन मध्य प्रदेश में सियासी नब्ज टटोलते हुए भाजपा आलाकमान की नजर सत्ता विरोधी रुझान के साथ पार्टी के सामने कई अन्य चुनौतियां पर पड़ रही है। ऐसे में नेतृत्व पहले राज्य स्तर के नेताओं से उनकी कार्ययोजना जानना चाहता है कि आखिर वे किस रणनीति के तहत सरकार में बने रहने का दावा कर रहे हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया को दिया गया था मौका
मालूम हो कि साल 2018 में भाजपा मध्य प्रदेश में बहुमत पाने में सफल नहीं रही थी, लेकिन 2020 में कांग्रेस विधायकों द्वारा त्याग-पत्र देने के बाद सरकार बन पाई थी। ऐसे में उपचुनाव की सीटों पर भाजपा को अपने पुराने चेहरों को घर बिठाना पड़ा था और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए समर्थकों को मौका देना पड़ा था। फिलहाल सत्ता के समीकरणों के लिए सिंधिया समर्थकों को तवज्जो दिया जाता रहा, लेकिन अब 2023 के लिए पार्टी के पुराने चेहरे इन सीटों पर अपनी वापसी चाहते हैं। ऐसे में संगठन के सामने असंतोष का जोखिम हो सकता है। आलाकमान इस स्थिति से निपटने के उपायों पर भी तैयारी की जानकारी चाहता है।

तैयारियों पर आलाकमान ले रहा जानकारी
पार्टी चाहती है कि प्रदेश नेतृत्व अपना पूरा रोडमैप बताए कि वर्ष 2018 की परिस्थितियां और मौजूदा दौर में क्या अंतर आया है? आने वाले चुनाव में क्या चुनौतियां हैं, उनसे पार्टी कैसे निपटेगी? तब कई मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था, साथ ही कई मंत्रियों की सीट बेहद कांटेदार मुकाबले में बच सकी थी। कांग्रेस भले ही बहुमत के आंकड़े 116 तक नहीं पहुंच पाई थी, लेकिन भाजपा से आगे पहुंचने में सफल हो गई थी। क्या प्रदेश की भाजपा सरकार को लेकर एक बार फिर जनता के मन में ऐसी धारणा बन रही है? इस पर सत्ता-संगठन की तैयारी की जानकारी भी आलाकमान को चाहिए।

भाजपा के लिए ग्वालियर-चंबल में बढ़ी चुनाती
बीते महीनों में हुए नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा को ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में काफी नुकसान हुआ। ग्वालियर महापौर की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। इन परिणामों ने स्पष्ट संकेत दिए कि इस क्षेत्र में भाजपा के लिए चुनौतियां बढ़ी हैं। जिन क्षेत्रों में बेहतर परिणाम मिले हैं, वहां भाजपा की लहर बनाए रखने के साथ उन क्षेत्रों में वापसी की चुनौती बढ़ी है, जहां कमल नहीं खिल सका है। इन परिणामों के परिप्रेक्ष्य में आलाकमान ने तैयारियों के संबंध में जानकारी भी प्रदेश से मांगी गई है।

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