आज उत्पन्ना एकादशी, व्रत करने से मिटते है पिछले जन्म के पाप, जानें कथा व पूजन-विधि
उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस साल यह व्रत 20 नवंबर को रखा जाएगा। ऐसी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्यों के पिछले जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। उत्पन्ना एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को संतान सुख, आरोग्य और जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है। इस साल उत्पन्ना एकादशी का व्रत बेहद खास रहने वाला है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार उत्पन्ना एकादशी पर एक नहीं बल्कि पांच-पांच शुभ योग बन रहे हैं।
व्रत का महत्व
व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का होता है। एकादशी का नियमित व्रत रखने से धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत आरोग्य, संतान प्राप्ति तथा मोक्ष के लिए किया जाने वाला व्रत है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत श्री हरि विष्णु से मनोकामना पूरी करवाने की शक्ति रखता है, इसलिए इसमें पूरे विधि-विधान से पूजा करें।
व्रत के नियम
उत्पन्ना एकादशी का व्रत दो तरह से रखा जाता है। निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत। निर्जल व्रत को स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए। अन्य लोगों को फलाहारी या जलीय व्रत रखना चाहिए। इस व्रत में दशमी को रात में भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी को सुबह श्री कृष्ण की पूजा की जाती है। इस व्रत में सिर्फ फलों का ही भोग लगाया जाता है। इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाता है।
पूजन विधि
एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद भगवान की पूजा करें, कथा सुनें। पूरे दिन व्रती को बुरे कर्म करने वाले, पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचें। जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए श्रीहरि से क्षमा मांगें। द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं। दान-दक्षिणा देकर अपने व्रत का समापन और पारण करें।
पौराणिक कथा
सतयुग में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस था जिसके पुत्र का नाम था मुर। महापराक्रमी और बलवान दैत्य मुर ने इंद्र, वरुण, यम, अग्नि, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सभी के स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। सभी देवता उससे पराजित हो चुके थे। अपनी व्यथा लेकर सभी कैलाशपति शिव की शरण में पहुंचे और सारा वृत्तांत कहा। देवों के देव महादेव ने देवताओं से इस परेशानी के निवारण के लिए जगत के पालनहार, कष्टों का नाश करने वाले भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहा।
10 हजार साल चला मुर-हरि के बीच युद्ध
मायावी मुर ने स्वर्गलोक पर अपना अधिकार जमा लिया था। सभी देवता उससे बचने के लिए भागे-भागे फिर रहे थे। भोलेनाथ की आज्ञा का पालन करते हुए देवतागण श्रीहरि विष्णु के पास पहुंचे और विस्तार से इंद्र से अपनी पीड़ा बताई। देवताओं को मुर बचाने का वचन देते हुए भगवान विष्णु रणभूमि में पहुंच गए। यहां मुर सेना सहित देवताओं से युद्ध कर रहा था। विष्णु जी को देखते ही उसने उन पर भी प्रहार किया। कहते हैं कि मुर-श्रीहरि के बीच ये युद्ध 10 हजार सालों तक चला था, विष्णु जी के बाण से मुर का शरीर छिन्न-भिन्न हो गया लेकिन वह हारा नहीं।
विष्णु जी का अंश है उत्पन्ना एकादशी
युद्ध करते हुए भगवान विष्णु थक गए और बद्रीकाश्रम गुफा में जाकर आराम करने लगें। दैत्य मुर भी विष्णु का पीछा करते करते वहां पहुंच गया। वह श्रीहरि पर वार करने ही वाला था कि तभी भगवान विष्णु के शरीर से कांतिमय रूप वाली देवी का जन्म हुआ। उस देवी ने राक्षस का वध कर दिया। भगवान विष्णु ने देवी से कहा कि आपका जन्म मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ है इसलिए आज से आपका नाम एकादशी होगा। इस दिन देवी एकादशी उत्पन्न हुई थी इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।जो एकादशी का व्रत करता है उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।