पंचायत चुनाव के पहले चरण में मतदाताओं में दिखा उत्साह, लेकिन इस चुनाव के बाद गावों का कितना होगा भला..
गांव-गांव द्वार-द्वार वोट की भीख मांगते फिर इसीलिए तो नहीं घूम रहे हुजूर…?
— अरूण कुमार सिंह
शनिवार को पंचायत चुनाव का पहला चरण संपन्न हुआ । इस चरण में गांव की सरकार बनवाने का उत्साह मतदाताओं में दिखा । पलामू में, पहले चरण में, 65.43% मतदान हुआ । चुनाव शांतिपूर्ण रहा । पहले चरण में, दोपहर तीन बजे तक पलामू के उंटारी रोड में 65.84%, पीपरा में 68.86%, हैदरनगर में 60.16%, मोहम्मदगंज में 60.30%, हुसैनाबाद में 67% और हरिहरगंज में 70.4% मतदान हुआ ।
क्या हुआ था पिछले पांच वर्षों में, कितने सक्रिय रहे थे गांव की सरकार के नुमाईंदे ?
पलामू में, पंचायती राज का कार्यकाल पिछले पांच वर्षों में बड़ी भयावह रहा । गावों के विकास के नाम पर आये सरकारी रूपयों की लूट होती रही और गांव के सरकार के नुमाईंदे या तो चुप रहे या फिर लूट में शामिल रहे । आरोपी पूजा सिंघल के कार्यकाल से शुरू हुआ मनरेगा में भ्रष्टाचार बढ़कर यहां तक आ गया कि मनरेगा की हर योजनाओं में करीब 47% की वसूली होने लगी । वसूली के लिए वेंडर (आपूर्तिकर्ता) चुने गये । इनका चुनाव इस आधार पर होता था कि कौन आपूर्तिकर्ता, साहेब से लेकर जनप्रतिनिधियों तक को कितना अधिक वसूलकर देता है ! इस गणित को ऐसे समझिये । छतरपुर अनुमंडल मुख्यालय है । लेकिन छतरपुर की मनरेगा योजनाओं में वस्तु आपूर्ति के लिए नौडीहा बाजार का एक ऐसा आपूर्तिकर्ता चुना गया जिसका जमीन पर कोई दुकान ही नहीं है । इस तरह से मनरेगा की योजनायें धरातल पर उतरते उतरते ही हवा में उड़ गयीं । इस पूरे प्रकरण पर वार्ड सदस्य से लेकर मुखिया जी तक चुप रहे ।
14 वें -15 वें वित्त में 25-30% की लेवी वसूल की गयी । करीब 30% योजनायें धरातल पर उतरी नहीं और पैसे की निकासी हो गयी । नल-जल योजना के तहत पानी देने की योजनाओं में भी भारी लूट हुई । योजना की स्वीकृति से ही पहले कमीशनखोरी का खेल शुरू हो जाता था । पीएम आवास में नाम जुड़वाने के लिए पहले लाभुकों से पंचायत स्वयंसेवकों ने प्रति आवास हजार से लेकर पांच हजार रूपये तक वसूली की । एक एक परिवार को तीन तीन आवास आबंटित किये गये । जब आवास निर्माण में भुगतान की बारी आयी तो फिर जमकर बंदरबांट हुआ । यहां भी वार्ड सदस्य से लेकर मुखिया जी तक की चुप्पी बनी रही । जनता त्राहिमाम् करती रही और पंचायत प्रतिनिधि मुर्गा उड़ाते रहे । कमाई का खेल इतना जबरदस्त था कि यूट्यूबरों ने मीडिया का माइक लेकर एक एक जनप्रतिनिधियों से हजारों हजार रूपये वसूले ।
क्या इस बार बदलेगी तस्वीर ?
पंचायत चुनाव के दौरान उक्त स्थितियों पर दर्जनों मतदाताओं से बात हुई । हमने जानना चाहा कि इस बार आप जिन्हें चुनना चाहते हैं, क्या वे गांव की तस्वीर और तकदीर बदल पायेंगे ? अधिकतर मतदाताओं का जवाब चौंकाने वाला था । मतदाताओं का कहना था कि इस बार भी अधिकतर वैसे लोग ही चुनाव लड़ रहे हैं जिन्हें समाज, गांव, यहां के लोगों और विकास से कभी कोई मतलब रहा ही नहीं । चुनाव जीतने के बाद ऐसे लोगों से क्या और कितनी उम्मीद की जाए जो चुनाव को धंधा मानकर लड़ रहे हैं ? इसके बाद दूसरी स्थिति लगभग हर जगह पर यह है कि लगभग हर जगह पर नए और पुराने पंचायत प्रतिनिधि चुनाव लड़ रहे हैं । बेहतरीन उम्मीदवारों के अभाव में मतदाताओं को इन्हीं सांपनाथों और नागनाथों में से किसी एक को चुनने की मजबूरी है ।
तो, या तो प्रतिनिधियों के चयन में बेहद सावधानी बरतिये, चुनाव को बिल्कुल स्वच्छ रहने दीजिये या फिर से कपार पीटने को तैयार रहिये । राग मल्हार गाईये और भ्रष्टाचार की दर्जनों नदियों के बीच एक और बजबजाती नदी के उद्गम का इंतजार कीजिए !