पूजा सिंघल की कहानी, उन अफसरों के लिए चेतावनी,जिन्हें उनके सियासी आका भी मंझधार में छोड़ देते हैं…
राघवेंद्र
रांची: आज पूजा सिंघल ईडी की कस्टडी में हताश है। तनाव की वजह से दिमाग की नसें फ़टी जा रही है। बार बार चक्कर आ रहा है। इमरजेंसी देखकर डॉक्टर आ रहे हैं और आराम करने की सलाह दे रहे हैं। करप्शन की अट्टालिका खड़ी करनेवाली सिंघल अपने बच्चों से मिलकर भावुक हो जा रही हैं।
यह सब इसलिए कि आज इन्हें कहीं से भी उम्मीद या मदद की रोशनी का कतरा नहीं दिख रहा। असहाय होने का बोध गहरा रहा है। जिन सियासी आकाओं के लिए,जिनके दमपर उन्होंने करप्शन के जंगल में छलांग लगा दी,वो खुद को बचाने में लगे हुए हैं।इन्हें क्या बचाएंगे !
पूजा सिंघल जैसे अफसरों की कहानी उन तमाम अधिकारियों के लिए सबक है, जो यह सोचकर गलतियां किये जाते हैं कि उनका आका एक न एक दिन उन्हें बचा ही लेगा। पर जब आका ही घिरा हो तो इन्हें कौन बचाए!
पूजा सिंघल की कहानी भ्रष्टाचार के उस वटवृक्ष की कहानी है, जिसके आसपास आज के दिन सन्नाटा है। कभी उनके आगे पीछे घूमने वाले उनका नाम लेने से भी बच रहे हैं। करप्शन के पैसे से खड़ी की गई पल्स हॉस्पिटल की हालत आप जाकर कभी देखिए।जहां हर दिन चहल-पहल थी, एंबुलेंस की आवाज़ थी। वहां आज वीरानी है।हर दिन पल्स में काम करने वाले कर्मी सुबह तैयार होकर अस्पताल पहुंचते हैं और दिन भर अस्पताल की सीढ़ियों पर गुजार देते हैं क्योंकि पल्स हॉस्पिटल में ताले लगे हैं।
पूजा सिंघल ने निश्चित रूप से करप्शन का सिंडिकेट खड़ा किया। जिसमें दर्जनों लोगों ने भ्रष्टाचार के पुल बनाए। जेएसएमडीसी जहां की ये चेयरमैन थी। वहां एक कॉन्ट्रैक्ट वर्कर को इन्होंने करोड़पति बना दिया। उस अनुबंधकर्मी अशोक कुमार ने गढ़वा में 8 एकड़ की माइनिंग लीज दे दी। इस तरह के दर्जनों किरदार हैं भ्रष्टाचार की महागाथा में,पर आज सभी चुप हैं। उनकी जुबान पर पूजा सिंघल का नाम नहीं आता इसलिए यह समझने की जरूरत है कि आपके पाप में सभी भागीदार होते हैं पर दंड आपको अकेले ही भोगना पड़ता है।
पूजा सिंघल निलंबित हो चुकी हैं,ईडी,हाइकोर्ट, एजी के बाद सीबीआई की वक्र दृष्टि भी इनपर पड़ने ही वाली है। बेईमानी की सारी कहानी खुल चुकी है। सारे डीएमओ के रैकेट से क्या होता था!कितने पैसे कहां कहां पहुंचाए जाते थे ! सब ईडी ने सीलबंद लिफाफे में उच्च न्यायालय को सौंप दिया है।
पूजा सिंघल मामले में यह भी हुआ कि कई किरदार करप्शन की गंगा में डुबकी ही नहीं लगाने लगे।वह एक्सटॉर्शन पर उतर आए। कमीशन तक का मामला तो सिस्टम का हिस्सा बन चुका है,पर जब आप एक्सटॉर्शन पर उतर जाएं तो कोई भी बर्दाश्त नहीं करता। वही इस केस में भी हुआ। पूजा सिंघल ने राजबाला वर्मा की तरह सबसे अशिष्टता से,धमकी भरे लहजे में बात करना शुरू कर दिया तो दुश्मनों की बड़ी फौज तैयार हो गई।