खेतों में धान की फूटती दुधमुही गंध
खेतों में धान की फूटती दुधमुंही गंध सूचित कर रही है कि सितम्बर आ पहुँचा है, सावन में नैहर आयी नदी अब अपना आँचल समेट रही है। ताल का जल थिर हो गया है। सितम्बर की साँझ और मोहक हो चली है।ललछिमहे सांझी बादल दिशाओं के आगे ऐसे झुके हैं जैसे पनिहारिन के सामने कोई प्यास अंजुरी होंठो से लगाए झुक गया हो। पोखर की तली में उठते सिंदूरी बुलबुले सूरज के छौने से लगते हैं, जल का रंग लाल और पीत होते होते प्रेम में बदल गया है। लगता है ताल ने बादलों को कसकर गले लगा लिया हो।बजड़ी, तिल, पटसन और पेड़ी वाली ऊख के खेतों को देख कर करेजा जुड़ा जाता है। बँसवारी के उस पार बड़े ताल में डूबता सूरज धीरे धीरे पूरे गाँव को सोने में सान देता है। चारों तरफ पकती हरियाली देखकर ऐसा लग रहा कि किसी ने बंदनवार लगा दिए हैं, रसोई में बनते पकवानों की महक, घृत होम की संझा और मक्के के खेत मे सुनहली होती बालियां त्योहारों के सिलसिले शुरू होने का प्रतीक गढ़ रहे हैं। रातरानी हरसिंगार के फूलों की तरह हृदय भी मदिर होने को उद्यत हैं।समृद्ध प्रकृति हर तरफ समृद्धता बिखेर रही। क्षितिज पार से खंजन के आने का संदेशा है। मिलन हमेशा मधुर होता है। सितम्बर बरखा और शरद की संधिकाल का साक्षी है। इस उल्लास को महसूस करिये। इस मधुरता को अंतस के हर बिंदु पर धारण करिये।
प्रस्तुति – अनमोल कुमार