बहुत अंदर तक जला देती है वह शिकायतें जो बयां नहीं की जा सकती…….
नीता शेखर,
आज गुलजार जी की वह पंक्ति याद आ रही है” सीने में धड़कता वह हिस्सा है उसी का तो यह किस्सा है” नियति काफी खूबसूरत थी, बिल्कुल अपने नाम के अनुसार दिल से भी बहुत अच्छी थी. आज नियति अपने मेडिकल की पढ़ाई खत्म करके घर आ गई थी. उसके पापा भी बरेली के बहुत नामी डॉक्टर थे. नियति उनकी इकलौती बेटी थी. उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गर्व होता था क्योंकि वह खूबसूरती के साथ-साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छी थी. नियति के पापा ने उसके आने की खुशी में रिश्तेदारों और डॉक्टर के परिवारों को आमंत्रित किया था. नियति के पड़ोस में भी एक परिवार रहता था. उन लोगों की उस परिवार से काफी घनिष्ठ मित्रता थी.
बचपन से ही नियति और उनके बेटे राज में काफी दोस्ती थी. बिल्कुल ऐसा जैसे भाई बहन लड़ते झगड़ते हैं. वह रोज घर आता था. नियति को भी पेंटिंग बनाने का शौक था. अभी उसकी इंटर्नशिप शुरू होने में दो-तीन महीने बाकी थे. वह शाम को रोज पेंटिंग बनाया करती थी. राज भी छत पर आ जाया करता था.
इसी बीच नियति की शादी ठीक हो गई. धूमधाम से उसकी सगाई हुई. सभी लोग सगाई में काफी खुश दिख रहे थे. उसकी शादी तय हो गई और अब हर दिन घर पर शादी की चर्चा होती रहती थी. तरह-तरह के प्लान बनाए जाते थे.
नियति काफी खुश थी. वो शाम को छत पर जाकर रोज ही पेंटिंग किया करती थी. राज भी लगभग रोज ही आ जाया करता था.
एक दिन शाम को अचानक छत से गोली चलने की आवाज आई. सभी दौड़ कर भागते हुए छत पर आए. वहां नियति खून से लथपथ गिरी हुई थी और उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
किसी को समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. जब तक राज को होश नहीं आ जाता तब तक पता करना बहुत ही मुश्किल लग रहा था. उनके यहां कोई बाहरी लोग तो कभी आते नहीं थे. जैसे ही राज को होश आया उसने अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया और सब को बताया कि वह नियति को बहुत ज्यादा प्यार करता था पर उसको बता नहीं पा रहा था. इसी बीच नियति की शादी ठीक हो गई. उसे लगता था कि कहीं नियति नाराज ना हो जाए, वह उसको खोना नहीं चाहता था. नियति की सगाई को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.
उसका आना-जाना रोज था. इसलिए उस पर कोई शक भी नहीं करता था. इसी ऊहापोह में उसके दिन कट रहे थे.
एक दिन उसने सोचा कि अपने दिल की बात नियति को बता दूं. उसने हिम्मत करके सारी बात नियति को बता दी पर नियति कुछ समझ नहीं पा रही थी. उसने उसे कभी उस नजर से देखा ही नहीं था. नियति ने साफ इंकार कर दिया. राज यह बर्दाश्त नहीं कर पाया. उसने सोचा की साथ जी नहीं सकते तो साथ मर ही जाते हैं. ऐसा सोचकर वह उस शाम को बिजली के पोल के सहारे नियति की छत पर चढ़ गया और उसे गोली मार दी और खुद भी उसने आत्महत्या कर ली. नियति ने तो वहीं दम तोड़ दिया.
एक सप्ताह तक राज अस्पताल में एडमिट रहा. उसके बाद उसकी स्थिति बिगड़ गयी और उसने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
जब नियति के परिवार वालों को सारी सच्चाई पता चली तो उन्होंने राज के परिवार वालों से सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए. यह कहानी नहीं हकीकत है. आज से करीब 30 साल पुरानी. नियति के पिताजी रिश्ते में हमारे फूफाजी लगते थे. आज भी बुआ फूफा जी जीवित है पर वह कभी नियति को भूल नहीं पाए और भूल भी नहीं सकते जो उनकी दुनिया थी. कभी-कभी बुआ को लगता है शायद नियति का नाम नियति नहीं रखना चाहिए था पर क्या नाम रखने से उसकी किस्मत बदल जाती. उसकी यही नियति थी. उसका इतना ही दिनों का साथ था. जाने वाले को कौन रोक पाया है और न रोक पाएगा.
इसलिए गुलजार कहते हैं- बहुत अंदर तक जला देती है वह शिकायतें जो बयां नहीं की जा सकती

