प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के 54 वे पुण्य स्मृति दिवस बिश्व शान्ति दिवस के रूपमे मनाया*……

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरिय विश्वविद्यालय सिमराही बाजार के तत्वधान में विश्व शांति, सदभावना एवं भाईचारा विषय पर आज स्थानीय ओम शांति केंद्र के सभागार में भव्य स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया गया।

यह सार्वजनिक कार्यक्रम ब्रह्माकुमारीज संस्थान के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के 54 वे पुण्य तिथि के अवसर पर उनके द्वारा वैश्विक शांति, अमन और एकता हेतु की गई त्याग, तप और सेवाओं की स्मृति में आयोजित किया गया।
इस अवसर पर ब्रह्माकुमारीज संस्थान के सिमराही सेवा केंद्र प्रभारी बबीता दीदी,उप मुख्य पार्षद बिनीता देवी, मंजू पंसारी,रामचन्द्र जायसवाल( अधिवक्ता), योगेन्द्र जिघायसु,सुर्य नारायण भाई ,इंद्रदेव भाई,सौरभ कुमार, दरोगा भूपेंद्र प्रताप सिंह,ब्यबसायिक मानिस भगत,अरुण जयसवाल, सौरभ कुमार ,परमेश्वरी सिंह यादव ,विश्व हिंदू परिषद के पूर्व जिला अध्यक्ष अनिल कुमार महतो, डॉ वीरेंद्र प्रसाद साह, दरोगा भूपेंद्र प्रताप सिंह, , डॉक्टर रविंद्र भाई, सुरेंद्र भाई,आस्था बहन,चानंदनी बहन,ब्रह्माकुमार किशोर भाईजी इत्यादि ओने संगठित रूप में फूलमाला द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करके और दीपप्रज्वलन करके कार्यक्रम को शुभारंभ किया।

ब्रह्माकुमारीज संस्थान के स्थानीय सेवा केन्द्र प्रभारी राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी बबिता दीदी जी ने अपने उदबोधन देते हुए कहा कि पिताश्री ब्रह्मा बाबा का दैहिक जन्म हैदराबाद सिंध में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका शारीरिक नाम दादा लेखराज था ।उनके अलौकिक पिता निकट के गांव में एक स्कूल के मुख्य प्रध्यापक थे ।दादा लेखराज अपनी विशेष बौद्धिक प्रतिभा, व्यापारिक कुशलता, व्यवसायिक शिष्टता, अथक परिश्रम, श्रेष्ठ स्वभाव एवं जवाहरात की अचूक परख के बल पर सफल प्रसिद्ध जवाहरी बने। उनका मुख्य विशेषता व्यापार में पकके थे।बिपुल धन, संपत्ति औऱ मान प्रतिष्ठा पाकर भी उनके स्वभाव में नम्रता, मधुरता औऱ परोपकार के भावना बानी रहीं। उन्होंने किसी भी परिस्थिति में, किसी भी प्रलोभन के बस अपनी भक्ति ,भावना और धार्मिक नियमों को नहीं छोड़ा। वे प्रभावशाली व्यक्तित्व और मधुर स्वभाव ,राजकुलोचित व्यवहार, शिष्ठ मधुर स्वभाव और उज्जवल चरित्र के कारण उनका उच्च प्रतिष्ठा था ।दादा लेखराज स्वभाव से ही उदार चित और दानी थे।

बबीता दीदिजी ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज संस्था में जुड़े जुड़े हुए संपूर्ण अनुवाईयों के लिए जनवरी माह बहुत ही महत्वपूर्ण मना जाता हैं।जो सभी के लिए अंतर्मुखी एकांतवासी बनने का समय होता है ।यह समय कुछ प्रेरणा देकर जाता है ,और वरदान देकर चला जाता है। जो योगी इस समय का पूर्ण लाभ उठाते हैं ।वह स्मृति स्वरूप होकर कर्मातीत स्थिति की ओर बढ़ जाते हैं। कर्माअतीत अवस्था एक अत्यंत निराली परम आनंद युक्त, परमात्मा की समिपता की स्थिति है। तो हम सब भी पिताश्री के पद चिन्हों पर चलकर कर्मातीत स्थिति को प्राप्त करें । कर्मातीत स्थिति अर्थात राजयोग अभ्यास का लक्ष्य कर्मातीत होना है। राजयोग कर्मों में कुशलता लाकर कर्मों को दिव्य बना देता है। कर्मातीत अर्थात कर्मों से अतीत। पिछले 63 जन्मों में प्रत्येक आत्मा ने बिकर्मों का जो विपुल भंडार बनाया है ।उसे योगा अग्नि से भस्म करके विक्रम मुक्त होना ही कर्मातीत अवस्था है।

मुख्य अतिथि उप मुख्य पार्षद बिनीता देवी जी ने कहा की ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा हम सभि को शान्ति प्रदान करता हैं।अभी लोग शरीर पर तो ध्यान देते हैं। लेकिन इस शरीर को चलाने वाली आत्मा को बलिष्ठ और विकसित करने पर ध्यान नहीं देते। आत्मा को शक्तिशाली करने का उपाय राजयोग ,ध्यान का अभ्यास ही है ।उन्होंने कहा कि लोगों को आज शांति की बहुत जरूरी है।ब्रह्माकुमारी संस्था के सभी केंद्र शांति के स्तंभ है। जहां राजयोंग द्वारा परमात्मा के याद से शांति प्राप्त की जा सकती है।

उक्त कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी ने किया। मौके पर उप मुख्य पार्षद बिनीता देवी, मंजू पंसारी,रामचन्द्र जायसवाल( अधिवक्ता),योगेन्द्र जिघायसु,सुर्य नारायण भाई ,इंद्रदेव भाई,सौरभ कुमार, दरोगा भूपेंद्र प्रताप सिंह,ब्यबसायिक मानिस भगत, अरुण जयसवाल ,डॉ शशि भूषण चौधरी,अनील महतो,दीपक भाईजी, इंद्रदेव भाई, हरि भाई, बेचू भाई ,सत्यनारायण भाई, कृष्णा भाई ,रविंदर भाई, वीरेंद्र भाई ,नारायण भाई मधु देवी, ब्रह्माकुमार किशोर भाई जी, बबीता दीदी, मुद्रिका बहन , इत्यादि सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।

अन्त में ब्रह्माकुमार किशोर भाईजी जी ने सभी को धन्यवाद ज्ञापन करते अपने उदबोधन देते। हुए कहा सभी दुखों एवं समस्याओं का मूल देह अभिमान हैं।देहअभिमान के कारण ही काम, क्रोध, लोभ ,मोह ,अहंकार,ईर्ष्या, नफ़रत, आलस्य इत्यादि मनोविकार वश हो गया है। अतः इन पर विजय पाना जरूरी है। इसके लिए नित्य दिन राजयोग का अभ्यास करना जरूरी है। उन्होंने राजयोग की विधि बताते हुए कहा कि मन ,बुद्धि से परमात्मा को याद करना, उनके गुणों को गुणगान करना, अपने आचरण को श्रेष्ठ बनाना ,कर्मयोगी बनना ही राजयोग है। अंत में सभी को ब्रह्मा भोजन एवं प्रसाद वितरण करके कार्यक्रम संपन्न किया।

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