बिहार में विधानसभा उपचुनाव में सिंपैथी वोट का रहा है अपना इतिहास, कहीं बोचहां में फिर वही कहानी न दुहराए
पटनाः बिहार विधानसभा के उपचुनाव में सिंपैथी वोट का अपना ही इतिहास रहा। इतिहास इस बाद भी वाह है कि विधायक के निधन के बाद जो भी उसके परिवार से खड़ा या विधायक जिल दल में थे, उसी दल से ताल ठोंकी, उसी के सिर पर जीत का सेहरा भी बंधा। कहीं बोचहां उपचुनाव में भी यही कहानी न दुहराए। वीआईपी पार्टी के विधायक मुसाफिर पासवान के निधन के बाद यहां चुनाव हो रहा है। उनके ही पुत्र अमर पासवान राजद की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। राजद ने उन्हें इसलिए भी टिकट दिया है कि उपचुनाव का ट्रेंड यही रहा है कि सिपैंथी वोट मायने रखता है।
केस नंबर वनः अगर 2020 के बाद हुए उपचुनाव पर नजर डालें तो दो उपचुनाव हुए। सहानुभूति वोट का लाभ जदयू को मिला। तारापुर सीट जदयू के विधायक मेवालाल चौधरी के निधन की वजह से खाली हुई थी। मेवालाल चौधरी की पत्नी नीता चौधरी का निधन मेवालाल चौधरी के निधन से पहले ही हो चुका था। वह भी जदयू की विधायक रही थीं। दोनों के निधन के बाद जदयू के राजीव कुमार सिंह ने राजद के अरुण कुमार साह को तारापुर उपचुनाव में हराया।
केस नंबर दोः कुशेश्वर स्थान में शशिभूषण हजारी के निधन से सीट खाली हुआ। कुशेश्वर स्थान में जदयू के उम्मीदवार अमन भूषण हजारी की जीत हुई। वे स्व. शशिभूषण हजारी के पुत्र हैं। यहां भी उसी सिपैंथी वोट का असर दिखा।
केस नंबर थ्रीः 2011 में दरौंदा की विधायक जगमातो देवी का निधन के बाद उपचुनाव हुआ । जदयू आतंक का पर्याय माने जाने वाले उनके पुत्र अजय सिंह को टिकट नहीं देना चाहती थी। लेकिन प्रस्ताव दिया गया कि अगर वे शादी कर लें तो पत्नी को टिकट दे दिया जाएगा। अजय सिंह ने कविता सिंह से शादी की। पितृपक्ष के समय शादी की गई। शादी के दूसरे ही दिन नीतीश कुमार की पार्टी ने कविता सिंह को टिकट दे दिया। जगमातो देवी से जुड़े सिपैंथी वोट का फायदा उनकी बहू कविता सिंह को मिला और वह चुनाव जीत गईं।