तोरपा और कर्रा प्रखंड में सिकल सेल अनीमिया जागरूकता शिविर सह कार्यशाला का आयोजन
खूंटी: जिले के तोरपा और कर्रा प्रखंड में उपायुक्त के निर्देश पर जनजातीय क्षेत्र में सिकल सेल एनीमिया जागरूकता शिविर सह कार्यशाला का आयोजन किया गया। ग्रामीण महिलाओं को इसके बारे में जानकारी दी गई। वहीं उपयुक्त शशि रंजन ने कहा कि जिले में 50 बेड का डे केयर सेंटर बनाया जाएगा। इसमें ससमय लोगों का उचित उपचार सुनिश्चित किया जा सकेगा।
लोगों को सिकल सेल की पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। आवश्यकता है बीमारी के संबंध में सीखने और इसके बचाव को लेकर अपने क्षेत्र के अन्य लोगों को भी जागरूक करने की।
उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर आगामी 25 अप्रैल को सिकल सेल अनीमिया जागरूकता शिविर सह कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा।
इसमें अधिक से अधिक संख्या में लोग आकर जांच कराएं और
समुदाय स्तर सिकल सेल अनीमिया की पहचान की जा सकेगी।
हमारे शरीर में रक्त कोशिकाएं होती हैं जिनके द्वारा रक्त का प्रवाह होता है इन रक्त कोशिकाओं में लाल रक्त कणिकाएं भी होती हैं। जिनका आकर गोल होता है। इनकी औसत उम्र 120 दिन होती है। शरीर में इनका निर्माण लगातार चलता रहता है। इन लाल रक्त कणिकाओं में एक प्रोटीन पाया जाता है जिसे हीमोग्लोबिन (Hb) कहते है। इसी हीमोग्लोबिन के द्वारा आक्सीजन शरीर के सभी अंगों तक पहुँचती है।
सिकल सेल रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करते हैं लेकिन सिकल सेल अनीमिया की स्थिति में लाल रक्त कणिकार्ये विकृत हो जाती हैं, उनका आकार अर्ध चंद्राकार या हंसिये जैसे हो जाता है। इसके कारण लाल रक्त कणिकाएं (RBCS) रक्त कोशिकाओं में आड़ी-तिरछी इकट्ठी होकर फंस जाती हैं।
इनकी औसत उम्र केवल 10-20 दिन की ही होती है। इसका परिणाम यह होता है की शरीर के अंगों तक आक्सीजन नहीं पहुचं पाने के कारण अंग कमजोर और क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। यह बीमारी उम्र बढ़ने के साथ और खतरनाक एवं जानलेवा साबित होती है।
पूरे विश्व में सिकल सेल रोग से करोड़ों लोग प्रभावित हैं, एवं खासकर उन लोगों में यह रोग अधिक पाया जाता है, जिनके पूर्वज उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र के निवासी थे: पश्चिमी गोलार्द्ध क्षेत्र (दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन और मध्य अमेरिका) सऊदी अरब भारत के कुछ अन्य राज्यों और भूमध्यसागरीय देशों जैसे- तुर्की, ग्रीस और इटली.
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के अनुसार, झारखण्ड में सिकल सेल एनीमिया की सबसे अधिक प्रसार दर है, जिसमें अनुमानित 15-20% आबादी में वह पाया जाता है।
सामान्यतः सिकल सेल रोग आदिवासी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग में बहुतायत में पाया जाता है।
डीसी ने कहा कि प्रत्येक पंचायत स्तर पर बल्ड डोनेशन कैंप आयोजित किए जाएंगे। इससे ब्लड डोनेशन को बढ़ावा मिलेगा और समय पर बल्ड की आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सकता है। साथ ही सिकल सेल के उपचार की दिशा में भी बेहतर प्रयास किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि ड्रेगन फ्रूट की खेती किसी एक किसान के द्वारा शुरू की गई थी। अब खूंटी जिला ड्रेगन फ्रूट कैपिटल बनने की दिशा में अग्रसर है। एक एकड़ में ड्रेगन फ्रूट की खेती से किसान लाखों की आमदनी कर सकते हैं। इसी प्रकार एक एकड़ में नींबू की खेती से भी किसान सीधे रूप से लाभान्वित होंगे। किसानों को इसे लेकर विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जोड़ा जाएगा।
पिरामल संस्था के प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण दिया। इससे सिकल सेल अनीमिया को लेकर जिले में समुदाय आधारित स्क्रीनिंग, सिकलसेल बीमारी की जागरूकता और रेफरल की दिशा में कार्य किए जायेंगे।
कार्यशाला के दौरान सिकल सेल जांच व बीमारी से संबंधित आवश्यक जानकारी साझा की गई।