रघुवर की वापसी से सत्ता से और दूर हो जायेगी भाजपा : डॉ. सूरज मंडल
गोड्डा । पूर्व सांसद, पूर्व जैक उपाध्यक्ष और झारखण्ड मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष डॉ. सूरज मंडल ने कहा है कि उड़ीसा के राज्यपाल के पद से रघुवर दास के इस्तीफा देने के बाद अब उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज़ है लेकिन यदि रघुवर दास की भारतीय जनता पार्टी में वापसी होती है तो इससे भाजपा, झारखण्ड की सत्ता से ही नहीं बल्कि लोगों की नज़रों से भी और दूर चली जायेगी।
डॉ. मंडल ने कहा कि झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी ने जिस प्रकार से मूलवासियों की उपेक्षा की और झारखण्ड के लोगों को आपस में लड़वाने का काम किया था उसके कारण ही भाजपा को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। डॉ. मंडल ने कहा कि 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद यदि रघुवर दास, बाबूलाल मरांडी द्वारा की गयी गलतियों में सुधार करते हुए यहाँ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिये उस 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को लागू कर देते जिसे श्री मरांडी ने घटाकर 14 प्रतिशत कर दिया था तो आज तस्वीर दूसरी होती। उन्होंने कहा कि, इसी प्रकार से बाबूलाल मरांडी द्वारा जिस प्रकार से अपने मुख्यमंत्रित्व काल में 10 जिलों में पंचायती राज में आदिवासियों के लिए शत आरक्षण का प्रावधान किया गया, उसमें भी सुधार नहीं किया गया और रघुवर दास के कार्यकाल में भी ओबीसी समुदाय की कोई मांग पूरी नहीं हुई।
डॉ. मंडल ने कहा कि 2024 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी रघुवर दास की झारखण्ड भाजपा में वापसी की खबरें उड़ती रही और उसका खामियाजा भी भाजपा को उठाना पड़ा।
डॉ. मंडल ने कहा कि उन्होंने विधानसभा चुनाव से बहुत पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को ज़मीनी स्थिति की जानकारी देते हुए झारखण्ड विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र भाजपा की नीतियों में बदलाव का सुझाव दिया था। लेकिन उनकी बातों को नहीं माना गया और आज झारखण्ड भाजपा को यह दिन देखना पड़ रहा है जबकि झारखण्ड के लोगों का उसी सरकार से वास्ता पड़ा है जिससे वह पिछले पाँच साल से परेशान है।
डॉ. मंडल ने कहा कि रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व के दौरान अमर कुमार बाउरी की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति बनायी गयी थी जिसे झारखण्ड की स्थानीयता के मामले में अपना निर्णय करना था। तब उक्त समिति ने झारखण्ड में खतियान के आधार पर स्थानीयता के निर्धारण की बात कही थी। लेकिन श्री दास ने उस समिति के फैसले को पलटकर 1986 को स्थानीयता का आधार घोषित कर दिया जिसका 2019 में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में बहुत अधिक योगदान रहा और स्थिति इतनी विकट थी कि न केवल मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं श्री दास बल्कि, तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा अध्यक्ष भी चुनाव हार गए और कुल मिलाकर भाजपा को ही खामियाजा उठाना पड़ा।
डॉ. मंडल ने कहा कि रघुवर दास के भाजपा में आने की चर्चा से ही झारखण्ड के लोगों में बहुत अधिक बेचैनी है और सही अर्थों में कोई भी नहीं चाहता कि श्री दास पुनः झारखण्ड भाजपा का हिस्सा बने। उन्होंने कहा कि यदि श्री दास को लोगों की सेवा करने की इतनी अधिक अपेक्षा है तो उन्हें अपने प्रदेश छत्तीसगढ़ चले जाना चाहिए। डॉ. मंडल ने कहा कि झारखण्ड की परंपरा के अनुकूल यदि खतियानी को स्थानीयता का आधार नहीं बनाया गया तो इसका जमीनी स्तर पर तीव्र विरोध होगा और इसके परिणाम स्वरुप भाजपा सत्ता से और दूर खिसक जायेगी। डॉ. मंडल ने कहा कि टेल्को के क्वार्टर में रहनेवाला कोई भी व्यक्ति कभी भी झारखण्ड का खतियानी नहीं हो सकता और यह वैसी कड़वी सच्चाई है जिसे सभी को मान लेना ही चाहिये। डॉ. मंडल ने कहा कि प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के समय से अबतक अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की जिस प्रकार से उपेक्षा हुई है वह वर्तमान परिवेश में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अन्य प्रदेशों से झारखण्ड में आकर अनेक लोग अपना खुला खेल खेल रहे हैं जो झारखण्ड और यहाँ रहनेवाले लोगों के हित में नहीं है। डॉ. मंडल ने प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से अपील की कि यदि झारखण्ड में भाजपा की सत्ता में वापसी करते हुए राज्यहित और यहाँ के लोगों के हित में काम करना है तो उसे सबसे पहले ज़मीनी हक़ीक़त के अनुरूप उन कुछ नेताओं से परहेज करने की जरूरत है जिसे झारखण्ड के मूलवासी पसंद नहीं करते।