चमत्कार! इस मंदिर में हर शनिवार पत्थर में बदल जाती हैं माता की मूर्ति

देहरादून स्थित मां संतला देवी का मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है। मंदिर में शनिवार को भक्तों का जमावड़ा लगता है, माना जाता है कि हर शनिवार को मां संतला देवी एक पत्थर की मूर्ति में परिवर्तित हो जाती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, 11वीं शताब्दी में नेपाल के राजा को पता चला कि उनकी पुत्री संतला देवी से एक मुगल सम्राट शादी करना चाहता है। यह जानकर संतला देवी नेपाल से पर्वतीय रास्तों से चलकर इस पर्वत पर किला बनाकर निवास करने लगीं। इस बात का पता चलने पर मुगलों ने किले पर हमला कर दिया।
जब संतला देवी और उनके भाई को अहसास हुआ कि वह मुगलों से लड़ने में सक्षम नहीं हैं तो संतला देवी ने हथियार फेंककर, ईश्वर की प्रार्थना शुरू की। अचानक एक प्रकाश उन पर चमका तो सारे मुगल सैनिक अंधे हो गए और वे संतला देवी पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गईं। बाद में किले के स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया।
देहरादून शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर माता संतला देवी मंदिर स्थित है। घंटाघर से गढ़ीकैंट होते हुए जैतनवाला तक जाने वाली बस सेवा का लाभ उठाकर यात्री मंदिर तक पहुंच सकते हैं। जैतनवाला से पंजाबीवाला अथवा संतोरगढ़ दो किलोमीटर दूर है। यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब डेढ़ किमी की पैदल चढ़ाई चढ़ना होती है।
यहां सच्चे मन से आने वाले भक्त की मनोकामना मां पूरी करती हैं। मंदिर में वर्षभर पूजा के लिए काफी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। नवरात्र में अधिक भीड़ रहती है। पहले दिन से हर दिन पूजा पाठ व हवन होता है।
निसंतान दंपतियों को माँ संतान सुख देती हैं
संतला देवी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ निसंतान दंपतियों को माँ संतान सुख से परिपूर्ण करती है। इस संदर्भ में संतला देवी की कहानी भी जुड़ी हुई है। मान्यता है कि 16वीं सदी में कुछ सैनिक यहां पूजा करने आते थे। उस समय एक अंग्रेजी अफसर विलियम्स सेक्सपीयर के कोई संतान नहीं थी। अपने सैनिकों से मंदिर के बारे में जानकारी मिलने के बाद उन्होंने ने विधि विधान से मंदिर में पूजा की। एक साल के भीतर बेटे के पिता बने। मान्यता है कि इसके बाद से लोग यहां संतान सुख की कामना से पहुंचते हैं। कहते हैं, यहाँ देवी माँ अपने भक्तों का पूरा ध्यान रखती है। यह मंदिर भाई बहीनों के प्यार और एकता का प्रतीक माना जाता है

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