मैथिली कविता संग्रह “असमाहि हमर हाथ” का लोकार्पण

रांची: मैथिली कविता संग्रह “असमाहि हमर हाथ” का लोकार्पण किया गया।यह किताब प्रतिरोधी कविताओं का प्रतिनिधि स्वर है। साथ ही काव्य संग्रह का संबंध रांची से भी जुड़ा है।असमाहि हमर हाथ’ एक विस्फोटक कविता संग्रह है। जिसके प्रकाशन के तुरंत बाद मैथिली के पारंपरिक रचनाकारों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और इस पुस्तक की भूमिका लिखने वाले प्रगतिशील कवि जीवकान्त सहित कवि द्वय गंगानाथ गंगेश और उपेंद्र के खिलाफ अनर्गल प्रलाप शुरू हो गया था। लेकिन जीवकान्त अपनी बात पर अडिग रहे। यह बात रांची के हरमू स्थित मिथिला दलान पर शुक्रवार को आयोजित गंगानाथ गंगेश और उपेंद्र के संयुक्त मैथिली काव्य संग्रह ‘असमाहि हमर हाथ’ के दूसरे संस्करण का लोकार्पण करते हुए साहित्य अकादेमी में मैथिली परामर्श दातृ समिति के सदस्य प्रमोद कुमार झा ने कही।
असमाहि हमर हाथ मैथिली की प्रतिरोधी कविता का प्रतिनिधि स्वर है, जिसकी भूमिका लिखकर जीवकांत ने बहुत ही साहसिक कार्य किया। बेशक उन्हें वर्षों तक परंपरावादियों का कोपभाजन बनना पड़ा, लेकिन मैथिली काव्य साहित्य के समक्ष दो प्रतिरोधी स्वर प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई।
वरिष्ठ कवि केदार कानन ने इस पुस्तक की अंतर्कथा बताते हुए कहा कि जब पहली बार इस काव्य संग्रह का प्रकाशन हुआ था, तो परंपरावादियों ने इसका खूब विरोध किया और इन कवियों की रचनाओं का प्रकाशन लगभग बंद हो गया। उपेंद्र जब अपनी रचनाएं किसी पत्रिका में भेजते तो उन्हें छापना तो दूर, उन्हें रचना लौटाई भी नहीं जाती थी और कोई जवाब भी नहीं दिया जाता था। परंपरावादी कुल के संपादक लोग उसे दबाकर बैठ जाते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि उपेंद्र हिंदी में लिखने लगे और मैथिली एक सुतीक्ष्ण कवि की रचनाशीलता से वंचित रह गई।
आज उपेंद्र इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन किसुन संकल्प लोक के माध्यम से इस संग्रह के पुनर्प्रकाशन के जरिये गंगानाथ झा गंगेश ने अपने दिवंगत मित्र कवि उपेंद्र के साथ-साथ अपने मेंटर जीवकान्त को भी श्रद्धांजलि दी है। यह बहुत ही संतोष की बात है और इसके लिए कवि गंगानाथ गंगेश बधाई के पात्र हैं।
इस काव्य संग्रह का एक संबंध रांची से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि 1970 में जब यह संग्रह पहली बार प्रकाशित हुआ था, तो रांची के कवियों पर इसका इतना प्रभाव पड़ा कि 1972 में सोमदेव की भूमिका के साथ चार कवियों का संयुक्त काव्य संग्रह धुरी का प्रकाशन हुआ। यही नहीं सोमदेव के संपादन में मैथिली के अग्निजीवी पीढ़ी के कवियों का संकलन भी इसी संग्रह के प्रभाव में प्रकाशित हुआ था।
गोष्ठी में उपस्थित डा नरेन्द्र झा ने कहा कि नयी पीढ़ी के रचनाकारों को इस किताब से अवश्य गुजरना चाहिए। वहीं डा कृष्णमोहन झा मोहन ने कहा कि नयी पीढ़ी के लिए यह जरूरी किताब है, इसका प्रभाव समकालीन लेखन में अवश्य दिखेगा। कथाकार सुस्मिता पाठक ने इस किताब के पुनर्पाठ और पुनर्प्रकाशन को ऐतिहासिक बताया।
इस लोकार्पण गोष्ठी में शहर के गणमान्य साहित्यकारों के साथ बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों की भीड़ जुटी थी। अंत में अमरनाथ झा ने आए हुए अतिथियों और साहित्य प्रेमियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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