जानें कब है होली और होलिका दहन, 17 मार्च को भद्रा 1:01 रात्रि बीतने के उपरांत होलिका दहन होगा
रांचीः होली फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के रात्रि में होलिका दहन किया जाता है। दिन भर चतुर्दशी हो, और रात्रि में पूर्णिमा लग रहा हो तो उसी दिन होलिका दहन करना चाहिए। दूसरे दिन यदि दिन भर पूर्णिमा है और रात को पूर्णिमा नहीं है, तो उस दिन होलिका दहन नही करना चाहिए। जब रात्रि में पूर्णिमा मिले तो भद्रा को छोड़कर होलिका दहन करना चाहिए चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में सूर्योदय हो उसी दिन होली मनाया जाता है। इससे बच्चे बूढ़े नर नारी सभी बड़े उत्साह से मनाते हैं। इस राष्ट्रीय त्योहार में वर्ण अथवा जाति भेद का कोई भी स्थान नहीं है। फाल्गुन पूर्णिमा को सायंकाल के बाद भद्रा रहित लग्न में होलिका का दहन किया जाता है। इस साल गुरुवार यानी 17 मार्च को भद्रा 1:01 रात्रि बीतने के उपरांत होलिका दहन होगा।
ऐसी मान्यता है कि भद्रा नक्षत्र में होलिका दहन जलाने से अशुभ परिणाम सामने आते हैं। इसलिए भद्रा को छोड़कर के होलिका दहन करना चाहिए। भद्रा में होलिका दहन करने से देश में विद्रोह अराजकता आदि माहौल बन जाता है।
इस अवसर पर लड़कियों घास फूस का ढेर लगाकर होली का पूजन करके उसमें आग लगाई जाती है। प्रतिपदा चतुर्दशी भद्रा तथा दिन में होलिका दहन का विधान नहीं है। होलिका दहन के बाद होली का भस्म दूसरे दिन शरीर में धारण करना चाहिए। वैदि काल से इस पर्व को नवान्नेष्टिट यज्ञ कहा जाता है
यह त्यौहार नई फसल के आने का सूचक है। इस दिन खेत के अधकच्चे तथा अध्पके अन को यज्ञ मे फसल को हवन करके प्रसाद लेने का विधान है। उस अन को होला कहते हैं। इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा।
प्रमुख तौर पर होलिका दहन त्यौहार प्रहलाद से संबंधित है। प्रहलाद हिरण्यकश्यप का पुत्र और विष्णु भक्त था हिरण कश्यप और प्रहलाद को विष्णु पूजन से मना करता था। उसके विष्णु भक्ति को न छोड़ने पर राक्षस राज हिरण कश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक उपाय किए पर उनका बाल भी बांका ना हुआ हिरण कश्यप की बहन होलिका को अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण कश्यप ने उस वरदान का लाभ उठाकर लकड़ियों के ढेर में आग लगवाई और प्रहलाद को बहन की गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करने की आज्ञा दी। होलिका ने वैसा ही किया देव योग से प्रहलाद तो बच गया पर होलिका जलकर भस्म हो गई। अतः भक्त प्रहलाद की स्मृति तथा असुरों के नष्ट होने की खुशी में यह पर्व को मनाते हैं। ऐसा मान्यता है कि इस पर्व में पर्व का संबंध काम दहन से है जब शंकर जी ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था तभी से इस त्यौहार का प्रचलन हुआ फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से पूर्णिमा पर्यंत 8 दिन पहले से होलकाष्टक मनाया जाता है।
17.03.2022 गुरुवार, भद्रा 1:01 रात्रि बीतने के उपरांत होलिका दहन
18.03.2022 शुक्रवार, फाल्गुन पूर्णिमा 12:51 दिन तक रहेगा
19.03.2022 शनिवार, बसंतोउत्सव होलीका विभूति धारण, एवं सर्वत्र होली