बढ़ती जनसंख्या के दुष्प्रभाव और दुष्परिणाम

पटना धरती के विनष्ट होने के लिए गिनाए गए कारणों में सामान्य रूप से जो कारक सबसे ज्यादा प्रत्यक्ष है, उनमें जनसंख्या का बढ़ना सबसे ज्यादा तीव्र और सर्वोपरि है इसकी विकरालता को अभी तक ठीक से आंका नहीं गया है। विश्व विनाश का यह प्रमुख रंगमंच है।

महात्मा गाँधी जी ने सबसे पहले इंगित किया था कि बिल्कुल लालच न करना और संतति – बिग्रह करना भारत के चिन्तन का प्रस्थान बिन्दु (Paradigm ) है, धरती पर सभी तरह के जीवों में मनुष्य के लिए लालच और उपयोग की विलासिता मूल कारण है कि यह धरती का विनाश करके ही रहेंगी ? आज सबके लिए सबसे पहले यही प्रमुख चिन्ता होनी चाहिए। चिन्ता ही नही अपितु कर्म चिन्तन होना चाहिए। मेरा फोकस इसी बिन्दु पर केन्द्रित है, भारतीय जीवन दृष्टि में प्रकृति का मर्यादित दोहन करना सिखाया गया है, शोषण नही । संयमी व्यक्तियों के लिए प्राकृतिक संपदा हमेशा परिपूर्ण रहेगी तथा आनेवाले पीढीयों के लिए भी उपलब्ध रहेगी । प्रकृति के पास इसके लिए पर्याप्त संसाधन हैं, यदि जनसंख्या संयमित रहे ?

अधिकारों के ऊपर बिता दी गई पूर्ति अपरिहार्य है। इसके लिए बढ़ते हुए खर्चों की समस्या केवल अविकसित देशों की ही नहीं हैं, अपितु विकसित देशों की भी है। विकसित देशों के ग्रोथ की भी सीमा समक्षते है। बढ़ती जनसंख्या के लिए सम्पोषित भोजन सबसे बड़ी आफत है। ऊँचे मानकों, उद्योगों, उत्पादनों की खपत शिक्षा राजस्तर से की समस्याएँ पैदा होगी। ग्रोथ कभी रूकेगी नहीं विलासिता का जीवन कहाँ से आएगी जमीन सभी चाहते हैं। फिर इनके लिए जगह कहाँ मिलेगी। पर्यावरण असंतुलन से बर्फ पिघल रही है, समुद्रतल बढ़ रहा है। सबसे बड़ी चिन्ता इसी पर ध्यान देने की है।

इसका एक ही उपाय है- एक या दो सीमित संताने, प्रजनन की प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता, आहार, निद्रा, मैथुन के बिना जीवन निरर्थक है। उपयोग को खत्म करना मुश्किल है। आत्म संयम ही रास्ता हैं, फिलहाल में अपनी इस टिपणी को इसलिए महत्वपूर्ण मान रहा हूँ कि इस और सबसे कम ध्यान दिया गया है। कानून से संतति – निग्रह नहीं हो सकता । भारतीय जीवन का संयम ही इसमें कारगर हो सकता है। विकास के लिए लगातार जनसंख्या भी चाहिए। सादगी चाहिए। शरीर जीवन के लिए जितना जरूरी है वह सीमित जनसंख्या से ही होगा। यही मेरी टिप्पणी का फोकस है जिसे जन-जन तक पहुँचाने का आन्दोलन जरूरी है। भारतीय दर्शन, सीता की शिक्षाएँ ही बचा सकती है पृथ्वी को विनष्ट होने से मेरी टिप्पणी का यह देव श्रुति वाक्य है। वक्तव्य के रूप में मैं इसे एक छोटे अवसर पर कह रहा हूँ। यह व्यापक हो तभी सारा नजरीया उल्लास, जीवन बचेगा।

इस प्रेस वार्ता में जनसंख्या समाधान फाउण्डेशन के मान्नीय अधिकरीयो का मंतव्य ।

मा० अनिल चौधरी- राष्ट्रीय अध्यक्ष

जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने पर जोर दिया और कहा कि हवा, पानी और जमीन सीमित है तो उनका उपभोग करने वालों की भी संख्या सीमित होनी चाहिए, अन्यथा कभी विभिषिका का कारक न हो जाए इस लिए इस देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू होना चाहिए जो कि सभी वर्ग पे समानता से लागू हो।

मा० श्रीमति ममता सहगल राष्ट्रीय संयोजिका —

समाज का एक वर्ग औरतो को सन्त्ति उत्पत्ति के लिए एक मशीन की तरह समझता है और उस विचार के पुरजोर समर्थन मे रहता है। सूरषा की भांति जनसंख्या अनियंत्रीत हो रही है जिसके कारण कई प्रकार की प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदा को खुला निमंत्रण मिल रहा है इसलिए हमारी (जनसंख्या नियंत्रण फाउण्डेशन) की मांग है कि देश में जल्द से जल्द जनसंख्या नियंत्रण लागू हो जो की सभी वर्ग तथा समप्रदाय पे समान रूप से लागू हो।

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