भाजपा ने मंत्री राधा कृष्ण किशोर द्वारा लिखे पत्र पर सीएम के 72 घंटे बाद तक की चुप्पी पर उठाए सवाल

रांची: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने मंत्री राधा कृष्ण किशोर के द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को लिखकर पत्र पर 72 घंटे के बाद भी चुप्पी पर सवाल उठाया है। प्रतुल ने कहा कि मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने स्पष्ट कहा कि प्रदेश में जो अनुसूचित जाति के लोग हैं उनकी स्थिति आदिम जनजाति से भी बदतर है।प्रतुल ने कहा इस स्वीकारोक्ति से दो चीजें स्पष्ट हो गई।एक की अनुसूचित जाति की स्थिति मौजूदा सरकार अपने साढे 5 वर्षों के कार्यकाल में ठीक नहीं कर पायी ।दूसरा कुछ ऐसी ही स्थिति इन्होंने आदिम जनजाति की भी बना कर रख दी है।

प्रतुल ने कहा कि हेमंत सरकार अपने आप को आदिवासी मूलवासी और दबे कुचले लोग की सरकार होने का दावा करती है। लेकिन अब इन्हीं की सरकार के मंत्री इनको शीशा दिखा रहे हैं।बता रहे हैं कि अनुसूचित जाति और आदिम जनजाति की स्थिति इस सरकार में बहुत खराब है। भाजपा सरकार ने 2018 के अंत में अनुसूचित जाति आयोग का गठन किया था ।उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के कारण कम समय मिला। लेकिन हेमंत सोरेन सरकार ने पिछले साढे 5 वर्षों से सत्ता में रहने के बावजूद इस आयोग का गठन नहीं किया।यह इस जाति समूह के प्रति हेमंत सरकार की नकारात्मक सोच दिखाता है। कमोबेश यही स्थिति अनुसूचित जाति और आदिम जनजाति की भी है।मंत्री जी के पत्र से ये स्पष्ट है कि आदिम जनजाति एक पैमाना बन गया है पिछड़ेपन का। तभी मंत्री जी भी पिछड़ेपन की तुलना आदिम जनजाति से कर रहे हैं।कहा कि भाजपा की सरकार में शुरू की गई डाकिया योजना और पहाड़िया बटालियन से अच्छी शुरुआत हुई थी। लेकिन इस सरकार ने आदिम जनजाति के उत्थान के लिए कोई कार्य नहीं किया ।

प्रतुल ने कहा हेमंत सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जनजाति भी उपेक्षा की शिकार हो रही है। धर्मांतरण करने वाली शक्तियां लगातार सक्रिय हैं और बड़े पैमाने पर अनुसूचित जनजाति के लोगों का धर्मांतरण करने का प्रयास जारी है।इस सरकार को पिछड़ा विरोधी भी सरकार कहा जाता है क्योंकि उन्होंने पंचायत चुनाव बिना पिछड़ों को आरक्षण दिए कर लिया था। अब भी पिछड़ा वर्ग आयोग अध्यक्ष विहीन है और स्थानीय निकाय चुनाव करने वाला आयोग के अध्यक्ष भी नहीं है।

प्रतुल ने कहा कि अगर पुराना नैतिकता का दौर होता तो अपने कैबिनेट के मंत्री द्वारा इतने संगीन आरोप लगाने पर मुख्यमंत्री इस्तीफा दे देते थे lया ऐसे आरोप लगाने वाले मंत्री का इस्तीफा ले लेते थे। लेकिन यह सरकार मुद्दों को दबा कर तब तक बैठती है जब तक वह मुद्दा ठंडा नहीं हो जाता। मंत्री जी के पत्र पर सरकार की चुप्पी प्रदेश में अनुसूचित जाति और आदिम जनजाति की बदहाल स्थिति पर मौन सहमति है।

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