पाँचवीं पीढ़ी को आशीर्वाद देकर 101 वर्ष की आयु में अंतिम बिदाई ली बदरी देवी
फारबिसगंज: प्रखंड के मधुबनी अम्हारा गांव में 101 वर्षीया बदरी देवी का निधन आज समूचे गांव और परिवार में शोक की लहर छोड़ गई। स्व. जयंती बहरदार की धर्मपत्नी, बदरी देवी ने अपने जीवनकाल में पाँच पीढ़ियों को आशीर्वाद दिया और समाज में अपनी उपस्थिति से एक मिसाल कायम की। उनका जन्म 1924 में हुआ था, और उन्होंने अपने जीवन को सरलता, तप और महादेव की पूजा में समर्पित किया।
बदरी देवी का जीवन संघर्ष और समर्पण का प्रतीक था। अपने 101 वर्षों के जीवन में उन्होंने न केवल परिवार की देखभाल की, बल्कि समाज में समानता, न्याय और आध्यात्मिकता की दिशा में भी अपना योगदान दिया। वे महादेव की परम भक्त थीं और हमेशा उनका जिक्र परिवार और गांववालों के बीच करती रहती थीं। उनके बड़े पुत्र नारायण बहरदार ने भावुक होकर कहा, “माँ हमेशा कहती थीं, ‘अब वो हवा कहाँ, न पानी बचा, जमीन का पानी और आँखों का पानी सब खत्म हो गए, तो आने वाली पीढ़ियों को कैसे देख पाएंगे?’ माँ का दिल महादेव के प्रति गहरी श्रद्धा से भरा हुआ था, वे हमेशा उनकी पूजा और उपदेश में रत रहती थीं।”
उनके पोते, गणेश कुमार, जो वर्तमान में देश की रक्षा में तैनात हैं, ने बताया, “दादी के शब्द आज भी कानों में गूंज रहे हैं, वह हमेशा कहती थीं, ‘देखिह देश पर कोनो आँच नै आबै।’ उनका प्यार और आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ रहेगा।”
स्व. बदरी देवी के निधन के बाद उनके अंतिम दर्शन के लिए गांवभर से लोग उमड़ पड़े। उनका परिवार और गांववाले गहरे शोक में डूबे हुए हैं। बदरी देवी के परिवार में दो पुत्र, तीन बेटियाँ, दो पोती, चार पोते, सात नाती और चार नतनी हैं, जिनके बीच उन्होंने अपने जीवन का अधिकतर समय बिताया।
उनकी मृत्यु के बाद, उनके नतिन जमाय भोला बहरदार, अदयानंद बहरदार, सुनील बहरदार, रियांस कुमार, बेटियाँ यशोदा देवी, लक्ष्मी देवी, गुडिया देवी, और अन्य परिवारजन के साथ-साथ समाज के प्रमुख सदस्य जैसे मुखिया प्रदीप मंडल, चेयरमैन रजानंद बहरदार, बासुदेव बहरदार, बजरंग बहरदार, कबीर बहरदार, महेन्द्र चौधरी, विधानंद मंडल, बलराम सिंह, राजेंद्र बैठा सरपंच और अन्य गांववाले भी शोक व्यक्त करने के लिए पहुंचे।
बदरी देवी का जीवन सभी के लिए एक प्रेरणा बना रहेगा, और उनके आशीर्वाद से जुड़ी यादें आने वाली पीढ़ियों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी। उनका प्रेम, संघर्ष और समाज के प्रति समर्पण ने न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे गांव को एक नया दृष्टिकोण और शक्ति प्रदान की। उनके बिना यह गांव कभी पूरी तरह से खाली नहीं होगा, और उनके द्वारा बताए गए जीवन के मूल्य हमेशा लोगों के साथ रहेंगे।