शनिदेव के जन्म की अद्भुत कथा, भद्रा है उनकी बहन

नौ ग्रहों के स्वामी और न्यायधीश शनिदेव को लेकर बहुत सी कथाएं हिंदु धर्म में मौजूद हैं। शनिदेव को भगवान शिव द्वारा नौ ग्रहों का स्वामी होने का वरदान द‍िए जाने की कथा भी प्रचल‍ित है।
सूर्यपुत्र शनि देव को न्याय और कर्मों का देवता माना जाता है। नौ ग्रहों के समूह में इन्हें सबसे क्रूर और गुस्सैल माना गया है। लेकिन ऐसा सभी के साथ नहीं होता। शनिदेव केवल उन्हीं लोगों को परेशान करते हैं, जिनके कर्म अच्छे नहीं होते। शनिदेव जिस पर मेहरबान होते हैं उसे धन धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं।
भगवान शिव ने शनिदेव को नौ ग्रहों में न्यायाधीश का कार्य सौंपा है। शनि महाराज की वैसे तो कई कथाएं हैं, लेकिन शनिदेव के जन्म की एक ऐसी अद्भुत कथा हैं, जिसे पढ़कर कोई भी पापों से मुक्ति पा सकता हैं।
हिंदू धर्म में शनि देव के जन्म की अनेकों कथाएं मौजूद है। जिसमें सबसे अधिक प्रचलित कथा स्कंध पुराण के काशीखंण्ड में मौजूद है। इसके अनुसार भगवान सूर्यदेव का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा के साथ हुआ। सूर्यदेव और संज्ञा से तीन पुत्र वैस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ। लेकिन संज्ञा सूर्यदेव के अत्यधिक तेज और तप सहन नहीं कर पाती थी। सूर्यदेव के तेजस्विता के कारण वह बहुत परेशान रहती थी। इस लिए संज्ञा ने निश्चय किया कि उन्हें तपस्या से अपने तेज को बढ़ाना होगा और तपोबल से भगवान सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। इसके लिए संज्ञा ने सोचा कि किसी एकांत जगह पर जाकर घोर तपस्या करना होगा।
इसलिए संज्ञा ने अपने तपोबल और शक्ति से अपने ही जैसी दिखने वाली छाया को उत्पन्न किया। जिसका नाम सुवर्णा रखा। इसके बाद संज्ञा ने छाया को अपने बच्चों की जिम्मेदारी सौंपा और उन्होंने तपस्या के लिए घने जंगल में शरण ले लिया। कुछ दिन बाद सूर्यदेव औऱ छाया के मिलन से तीन बच्चों मनु, शनिदेव और पुत्री भद्रा का जन्म हुआ। सभी जानते है कि भद्रा का साया पड़ना भी अशुभ माना जाता है।

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