अक्षयपुरीश्वर मंदिर : यहां दोनों पत्नियों के संग होती है शनिदेव की पूजा
तमिलनाडु के पेरावोरानी के पास तंजावूर के विलनकुलम में अक्षयपुरीश्वर मंदिर है। ये मंदिर भगवान शनि के पैर टूटने की घटना से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर में शारीरिक रुप से परेशान और साढ़े साती में पैदा हुए लोग शनिदेव की विशेष पूजा के लिए आते हैं। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान शिव हैं। उन्हें ही श्री अक्षयपुरीश्वर कहा जाता है। उनके साथ उनकी शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा श्री अभिवृद्धि नायकी के रूप में की जाती है। साथ ही यहां शनिदेव की पूजा उनकी दोनों पत्नियों मंदा और ज्येष्ठा के साथ की जाती है। इन्हें यहां आदी बृहत शनेश्वर कहा जाता है।
इस मंदिर में साढ़े साती, ढय्या और शनि दोष से पीड़ित लोग पूजा करने आते हैं। इसके अलावा शारीरिक रूप से परेशान और वैवाहिक जीवन में दुखी लोग यहां विशेष पूजा और अनुष्ठान करवाते हैं। शनिदेव 8 अंक के स्वामी भी हैं, इसलिए यहां 8 बार 8 वस्तुओं के साथ पूजा करके बांए से दाई ओर 8 बार परिक्रमा भी की जाती है।
मंदिर के स्थान पर पहले बहुत सारे बिल्व वृक्ष थे। तमिल शब्द विलम का अर्थ बिल्व होता है और कुलम का अर्थ झुंड होता है। इसलिए इस स्थान का नाम विलमकुलम पड़ा।
ऐसे उलझ गया था शनिदेव का पैर
मंदिर क्षेत्र में बहुत सारे बिल्व वृक्ष होने से उनकी जड़ों में शनिदेव का पैर उलझ गया और वह यहां गिर गए थे। इससे उनके पैर में चोट आ गई और वह पंगु हो गए। अपनी इस व्याधि को दूर करने के लिए उन्होंने इसी स्थान पर भगवान शिवजी की पूजा की। तभी भोलेनाथ ने प्रकट होकर उन्हें विवाह और पैर ठीक होने का आशीर्वाद दिया। मान्यता है तब से ही इन परेशानियों से जुड़े लोग यहां विशेष पूजा-अर्चना करवाते हैं।
अक्षयपुरीश्वर मंदिर तमिल वास्तुकला के अनुसार बना है। माना जाता है कि इसे चोल शासक पराक्र पंड्यान ने बनवाया था। जो 1335 से 1365 ईस्वी के बीच बना है।