आखिर भगवान ने ही क्यों कराया यज्ञ का विध्वंस
गढ़वा। श्री रामलला मंदिर गढ़वा में तीसरे और चौथे दिन राम कथा का आयोजन किया गया। वृंदावन से पधारे विद्वान श्री कृष्णकांत जी महाराज ने बड़ा ही मार्मिक कथा का वर्णन करते हुए कहा कि यज्ञ मानव कल्याण के लिए किए जाते हैं। इससे प्राणियों में सद्भावना आती है एवं वे धर्म के मार्ग के मर्म को भी जान पाते हैं। मनुष्य का कर्तव्य, ईश्वर की आराधना, कलयुग में भगवान को प्राप्त करने की साधन यज्ञ से प्राप्त होता है। लेकिन खुद भगवान शंकर ने ही अपने दूत वीरभद्र को भेजकर राजा प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करा दिया। इसका मतलब क्या था? क्या भगवान शिव दक्ष की बढ़ती शक्ति से डर गए थे! क्या भगवान नहीं चाहते कि मानव सद्गति पर आगे बढ़े, मानव में ईश्वर के प्रति प्रेम बढ़े, मानव यह समझ सके कि उनका कर्तव्य क्या है ?
इस चर्चा में महाराज जी ने प्रसंग को आगे बढ़ते हुए कहा कि प्रजापति को जब दक्ष का पद मिला तो उन्होंने अपने सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में सभी देवी देवता आमंत्रित किए गए थे। जिसमें ब्रह्मा जी, विष्णु जी एवं शंकर जी को भी बुलाया गया था। जब दक्ष सभा स्थल यानी सम्मान स्थल पर पहुंचे तो सभी देवताओं ने अपने स्थान पर खड़ा होकर उनका अभिवादन किया। लेकिन भगवान शिव अपने स्थान पर ही बैठे रहे। यह देखकर प्रजापति दक्ष को काफी बुरा लगा और उनके मन में यह बात घर करने लगी कि खुद उनका दामाद ही उन्हें अपमानित कर दिया। क्योंकि प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से शिवजी की विवाह हुई थी। सम्मान समारोह समाप्त होने के पश्चात प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को बहुत भला-बुरा कहा, लेकिन भगवान शिव ने उनकी एक बात नहीं सुनी। क्योंकि उस समय वह अपनी पत्नी सती को अपने अन्तः मन से श्री राम कथा सुना रहे थे। उन्हें पता ही चला कि दक्ष क्या बोल रहे थे। शिव जी मां सती को कथा सुनाते हुए कैलाश पर्वत पर चले गए। भगवान शिव द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं देने पर दक्ष अपने आप को और अपमानित समझने लगे। उन्होंने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें भगवान शिव को अपमानित करने की पूरी योजना बनायी। यज्ञ का आमन्त्रण ब्रह्मांड के सभी देवी, देवताओं और प्रमुख लोगों को दिया, लेकिन भगवान शिव को उन्होंने नहीं बुलाया। यज्ञ होने की सूचना जब माता सती को मिली तो वह अपने पिता के घर जाने की जिद करने लगी। भगवान शिव ने कहा कि उन्हें आमंत्रण नहीं मिला है इसलिए हमें वहां नहीं जाना चाहिए। जब माता सती ने आमन्त्रण नहीं मिलने की जानकारी हासिल की तो प्रजापति दक्ष के सम्मान समारोह की सारी घटनाक्रम की जानकारी मिल गयी। तब सती ने अपने ईश्वर भगवान शिव से कहा कि आपको भी अपने स्थान पर खड़े हो जाना चाहिए था। भगवान शिव ने कहा कि तुम तो जानती हो देवी मैं तुम्हें उस समय श्री राम कथा सुन रहा था और मुझे पता ही नहीं चला कि प्रजापति दक्ष वहां कब आए। मैं राम कथा में अन्तरमग्न था और उसे बीच में रोकना नहीं चाहता था। इसलिए मैं अंतरध्यान होकर कथा सुना रहा था। अन्यथा मैं भी अपने स्थान पर खड़े हो जाता। माता सती ने शिव जी से कहा कि ठीक है जो हो गया सो हो गया। अब चलिए। वहां यज्ञ में हम लोग को चलना है। भगवान शिव ने कहा बिना आमन्त्रण मैं नहीं जा पाऊंगा। लेकिन सती बहुत जिद करके अपने पिता के घर नन्दी और भंगी के साथ पहुंच गई। जब सती ने वहां देखा कि ब्रह्मा जी, विष्णु जी के लिए तो कुर्सी लगी हुई है लेकिन शंकर जी के लिए कोई कुर्सी वहां नहीं लगी है। आगे बढ़ते ही उसकी बहनों ने उसे जलील और अपमानित करना शुरू कर दिया। उलाहना दिया कि तुम्हारे पति ने क्या करतूत यहां किया है। सती की मां ने उसे समझाया कि इस तरह की कोई बात नहीं है लेकिन यज्ञ में भगवान शंकर की खूब बेइज्जती की गई। नन्दी और भंगी की पिटाई कर दी गयी। मां सती अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकी और उन्होंने वहीं अपनी जान दे दी। शंकर जी के गणों ने कैलाश पर्वत पर पहुंचकर उन्हें सारी घटनाक्रम बताई। भगवान शंकर आने अन्तः मन से सब कुछ देख रहे थे। उन्होंने अपने जटा के एक बाल से अग्नि प्रज्ज्वलित कर वीरभद्र को अवतरित किया। उसे यज्ञ को विध्वंस करने के लिए भेजा। वीरभद्र ने यज्ञ में पहुंचकर अपना रूद्र रूप दिखलाया। इतना देखते हैं सारे देवता यज्ञ स्थल को छोड़कर अपने धाम को लौट गए। वीरभद्र यज्ञ को विध्वंस करने लगे। इसी बीच वीरभद्र और प्रजापति यश के बीच युद्ध होता है। वीरभद्र ने यक्ष की गर्दन को काटकर हवन कुंड में डाल देते हैं। इस तरह यज्ञ पूरी तरह से विध्वंस और अपवित्र हो गया। उसके बाद फिर भगवान शंकर ने सोचा कि दक्ष ने जो गलती की है उसकी सजा उसको मिल गई। सृष्टि के संचालन के लिए उन्हें फिर से पुनर्जीवित करना जरूरी है। भगवान शिव ने बकरी के सर को यक्ष के धड़ पर लगवा दिया। दक्ष को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने भगवान शिव से माफी मांगी। उसके बाद यक्ष के मुंह से डमडम की आवाज निकलने लगी। भगवान शिव ने इस डमडम की आवाज को सर्वाधिक प्रभावकारी बना दिया। इस डमडम की आवाज के साथ आराधना करने पर भगवान शिव भक्तों को जल्द ही प्राप्त हो जाते हैं। महाराज जी ने कहा उस यज्ञ का कोई महत्व नहीं, कोई आवश्यकता नहीं जिसका उद्देश्य किसी का अपमान करना हो। यज्ञ का महत्व बहुत व्यापक है। यज्ञ प्राणियों को भगवान से जोड़ने का सशक्त माध्यम है। मन और मस्तिष्क की बुराइयां यज्ञ कुंड में हवन कर दी जाती हैं और वहां से नए कोमल पत्तों की तरह प्राणियों को बुद्धि विवेक प्राप्त होता है। जिससे वे सद्गुणी होते हैं। सत्संग में आकर उन कथाओं को आत्महत्या करते हैं जिनके लिए उनके मन में पहले से कोई जगह नहीं बच पाती है। यज्ञ के महत्व को भगवान शिव ने हम सभी लोगों के लिए प्रतिस्थापित करते हुए यह संदेश दिया है कि यज्ञ आप कल्याण के लिए करें ना कि किसी के विनाश के लिए। किसी के अपमान के लिए।
श्री राम कथा के चौथे दिन महाराज जी ने श्रीराम की जन्मोत्सव को झांकी में माध्यम से बताया और समझाया। इस मौके पर स्रोताओं ने रामभजन में सम्पूर्ण गोता लगाया। नाच-गाकर भगवान के आगमन का जश्न मनाया। मौके पर श्री रामलला मन्दिर समिति के संरक्षक विश्वनाथ सिंह, अध्यक्ष अलखनाथ पांडेय, सुदर्शन सिंह सत्यनारायण दुबे, धनन्जय गोंड उर्फ डबल जी, धनन्जय ठाकुर, दिलीप कमलापुरी, मनीष कमलापुरी, मदन कमलापुरी सहित सैकड़ों सनातनी उपस्थित थे। इसकी जानकारी श्री रामलला मन्दिर समिति के सचिव धनंजय सिंह ने दी।
पुलिया के ध्वस्त होने से घटिया निर्माण की खुली पोल
फोटो 3-ध्वस्त पुलिया
भवनाथपुर। टाउनशिप से करमाही के बीच पिलुवाही महुआ के समीप बनी पुलिया के ध्वस्त होने से घटिया निर्माण की पोल खुल गई। टाउनशिप से करमाही तक करीब 3.25 किलोमीटर सड़क का निर्माण वर्ष 2016-17 में ग्रामीण विकास विभाग से 1.96 करोड़ की लागत से कराया गया था। सड़क का शिलान्यास विधायक भानु प्रताप शाही ने कराया था। तब संवेदक को चेताया था कि सड़क का निर्माण गुणवत्ता पूर्ण होना चाहिए। लेकिन विभाग और संवेदक की मिली भगत से आठ वर्ष के भीतर ही पुलिया ध्वस्त हो गया जिससे घटिया निर्माण कार्य से इंकार नहीं किया जा सकता है। पुलिया के ध्वस्त होने से करमाही, फुलवार सहित दो गांवों के करीब एक हजार आबादी को आवागमन में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। गर्मी के मौसम में आवागमन में असुविधा तो नहीं होगी किन्तु जैसे ही बरसात का मौसम आएगा चार पहिया वाहन को जाने में परेशानी होगी। इस संबंध में कनीय अभियंता संजीव कुमार ने बताया कि ओवरलोड वाहन के गुजरने से पुलिया ध्वस्त हुआ है। निरीक्षण के बाद साफ साफ कह पायेंगे।
धुरकी पुलिस ने फरार अभियुक्त के घर चिपकाया इश्तेहार
फोटो 6-इश्तेहार चिपकाती पुलिस
धुरकी। माननीय न्यायालय के निर्देश पर वरीय पुलिस पदाधिकारी के आदेश पर धुरकी थाना प्रभारी उपेंद्र कुमार व सब इंस्पेक्टर बिक्कू कुमार रजक दल-बल के साथ एक नामजद आरोपी के घर ढोल नगाड़े बाजे के साथ आत्मसमर्पण करने के लिए विधिवत रूप से इश्तेहार चिपकाया है। इस संबंध में जानकारी देते हुए थाना प्रभारी उपेंद्र कुमार ने बताया कि पांच वर्षो से फरार चल रहे थाना क्षेत्र अंतर्गत मिरचैया गांव के बिचकटवा टोला निवासी आलम अंसारी पिता अली मोहम्मद अंसारी के विरुद्ध धुरकी थाना कांड संख्या 157/19 दिनांक 6 अक्टूबर 2019 धारा 302/34 भादवि के तहत मामला दर्ज है। थाना प्रभारी ने कहा कि फरार चल रहे प्राथमिक अभियुक्त के घर पुलिस ने इश्तेहार चिपकाकर चेतवानी दिया है कि न्यायालय अथवा पुलिस के समक्ष अविलंब आत्मसमर्पण करें। अन्यथा पुलिस द्वारा कुर्की जब्ती की कार्रवाई की जायेगी।
20 साल से फरार वारंटी गिरफ्तार
फोटो 7-गिरफ्तार जीतेंद्र कोरवा
धुरकी। पुलिस ने 20 साल से फरार चल रहे वारंटी को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में गढ़वा जेल भेज दिया है। जानकारी देते हुए थाना प्रभारी उपेंद्र कुमार ने बताया कि पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर आगामी लोकसभा के मद्देनजर क्षेत्र में समकालीन अभियान के क्रम में करीब 20 साल से फरार वारंटी थाना क्षेत्र अंतर्गत फाटपानी गांव निवासी जीतेंद्र कोरवा पिता मोती कोरवा को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत जेल भेज दिया गया है। थाना प्रभारी ने बताया कि क्षेत्र में अवैध कारोबार हो या वारंटी तथा अपराधी को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा नहीं जायेगा, पुलिस निश्चित रूप से कार्रवाई करेगी। छापामारी अभियान में धुरकी थाना के एएसआई शैलेंद्र कुमार यादव, संजय सिंह एवं पुलिस बल के जवान मौजूद थे।