बिजली बोड की चार कंपनियों की कुल संपत्ति 4000 करोड़, कर्जा 9000 करोड़ पार
रांचीः झारखंड में उजाला फैलाने वाल चार कंपनियों की कहानी भी अजीब है। चारों कंपनियों की जितनी संपत्ति है, उससे दुगना माथे पर कर्जा है। इस वजह से भी राज्य में अंधियारा छाया रहता है। वर्तमान में चार कंपनी ऊर्जा विकास निगम, उर्जा संचरण निगम, बिजली वितरण निगम और उर्जा उत्पादन निगम की कुल संपत्ति लगभग 4000 करोड़ की आंकी गई है. लेकिन कर्ज 9000 करोड़ से भी अधिक है इसमें टीवीएनएल, डीवीसी और अन्य बिजली बेचने वाली कंपनियों का बकाया है।
क्यों है कर्ज का बोझ
प्रदेश की बिजली व्यवस्था पूरी तरह से निजी और सेंट्रल सेक्टर पर टिकी हुई है। बिजली की कमी को पूरा करने के लिए निजी और सेंट्रल सेक्टर से हर दिन औसतन 660 से 700 मेगावाट बिजली ली जा रही है। चार साल पहले लगभग हर माह 360 से 380 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी जाती थी. अब हर माह लगभग 550 से 600 करोड़ रुपये की बिजली खरीदी जा रही है. डीवीसी का बकाया 4000 करोड़ से अधिक और टीवीएनएल का बकाया बढ़कर भी 4000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। अन्य बिजली कंपनियों का भी बकाया है।
ट्रांसमिशन लाइन नहीं, हर साल 204 करोड़ का भुगतान
ट्रांसमिशन लाइन नहीं होने के कारण हर साल बिजली सप्लाई के लिये दूसरे कंपनी00 को लगभग 204 करोड़ का भुगतान हो रहा है. हर महीने व्हीलिंग चार्ज के रूप में लगभग 17 करोड़ रुपये का भुगतान हो रहा है. ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण पूरा नहीं होने के कारण पीजीसीआइएल के ही लाइन से एनटीपीसी, पीटीसी और एनएचपीसी से बिजली ली जा रही है.
औने-पौने कीमत पर दी गई पीटीपीएस की संपत्ति
पीटीपीएस की संपत्ति एनटीपीसी को औने-पौने कीमत पर दे दी गई. इसके खिलाफ झारखंड राज्य पावर इंजीनियर्स एसोशिएसन ने भी सरकार को पत्र लिखा। एसोसिएशन का कहना है कि पीटीपीएस में मौजूद 100 करोड़ के स्क्रैप की कीमत सिर्फ 3.32 करोड़ लगाई गई है. पूर्व प्लांट की कीमत लगभग 2000 करोड़ थी, जिसे ज्वाइंट वेंचर के तहत 482 करोड़ में ही दे दिया गया. लगभग 1000 करोड़ के पतरातू डैम एनटीपीसी को प्लांट चलाने के लिये मुफ्त में दे दिया गया
कागजों में सिमट गया 14 हजार करोड़ का एक्शन प्लान
झारखंड में 24 घंटे बिजली देने का एक्शन प्लान कागजों में ही सिमट गया है. पूरा प्लान 14 हजार करोड़ रुपये का था। इस प्लान को केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय भी स्वीकृति दे चुका था. प्लान के मुताबिकपूरे प्रदेश में 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने की बात कही गई थी. इसका डीपीआर बनाने में एक करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च किये गये. इसके बाद इसे केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के पास स्वीकृति के लिये भेजा गया. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने इस प्लान को स्वीकृति भी दी.