38 वर्षीय मरीज में बायोरिसोर्वेबल स्टेंट सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित
रांची: एचइसी स्थित पारस अस्पताल में पूर्वी भारत का पहला बायोडिग्रेडेबल स्टेंट प्रत्यारोपण किया। पारस अस्पताल में एक 38 वर्षीय मरीज में बायोरिसोर्वेबल स्टेंट सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया गया। मरीज को सीने में गंभीर दर्द, उच्च रक्तचाप, सीने में तकलीफ और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के साथ- साथ उसे तीच दिल का दौरा भी आता था। कोरोनरी एंजियोग्राफी के बाद, उनकी एक धमनी में 100 प्रतिशत रुकावट और उनकी बायीं पूर्वकाल की अवरोही धमनी में रक्त का धक्का जमने का पता चला। मरीज के परिवार की सहमति से वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलोजिस्ट डॉ. महेश कुशवाहा ने पारंपरिक धातु स्टेंट के विपरीत बायोरिसोर्वेबल स्टेंट (बीआरएस) का उपयोग करने के लिए गैर-सर्जिकल प्रक्रिया को अपनाया और सफल इलाज किया। इस काम में उन्हें 40 मिनट लगे। मरीज को दो दिनों के अंदर छुट्टी दे दी गई।
इस संबंध में पारस अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. महेश कुशवाहा का कहना है कि मेडिकल वर्ल्ड में आनेवाला समय यामोरिसोर्वेबल स्टेंट का है। इलाज के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह एक बायोडिग्रेडेबल स्टेंट है जो तीन साल के भीतर घुल जाता है और हृदय की धमनी को उसकी सामान्य स्थिति में लाने में मदद करेगा। इस तकनीक में लंबे समय तक कोरोनरी धमनियों में कोई स्थायी धातु प्रत्यारोपण नहीं छोड़ती है जो कोरोनरी धमनी रोग के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है।
क्या होता है बायोरिसोर्वेबल स्टेंट ?
डा. महेश ने कहा कि प्राकृतिक रूप से घुलनशील सामग्री (जिसे पीएलएलए कहा जाता है) से बना स्टेंट लगाना साध्य विज्ञान में एक मील का पत्थर है। क्योंकि यह धमनी को धातु के आवरण में फंसने से मुक्त करता है। यह कोई विकास नहीं बल्कि एक क्रांति है, क्योंकि स्टेट तीन साल के भीतर घुल जाता है और धमनी को उसकी सामान्य स्थिति में वापस लाने में मदद करता है। मरीज की दवाओं पर निर्भरता कम होती है। डॉ. महेश ने कोरोनरी धमनी रोगों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। उनके अनुसार भारत में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। उन्होंने इस बीमारी को दूर रखने के लिए स्वस्थ आहार और सक्रिय जीवनशैली के महत्व पर जोर दिया।
पारस अस्पताल के निदेशक डॉ नीतेश कुमार ने कहा कि अब पारस अस्पताल में बायोरिसोर्वेबल स्टेंट लगाने की सुविधा प्रारंभ हो गयी है। इसके लिए मरीजों को कही बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। हृदय रोगी अब बहुत ही आसानी से अपना इलाज करा कर सामान्य जीवन जी सकते हैं। कम उम्र के हृदय रोगियों के लिए यह अच्छा उपचार विकल्प साबित हो सकता है। नवीनतम तकनीक का उपयोग करके मरीज का इलाज हो सकता है।
इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी में चौथी क्रांति घोषित
बायोरिसोर्वेबल स्कैफोल्ड्स (बीआरएस) को इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी में चौधी क्रांति के रूप में घोषित किया गया है क्योंकि वे कोरोनरी धमनी रोग के उपचार में एक बेहतरीन उदाहरण पेश करते हैं। बीआरएस में शारीरिक क्रिया विज्ञान को पुनर्संचालित करने की अद्वितीय क्षमता होती है। इस क्रिया में स्टेंट धीरे-धीरे घुल जाते हैं। बीआरएस एक छोटी जालीदार ट्यूब के समान उपकरण है जो अवरुद्ध हृदय वाहिका को खोलने और हृदय में रक्त के प्रवाह को बहाल करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।