बिहार का साइड इफेक्टः बिहार में मिले झटके से कैसे उबरेगी भाजपा

भाजपा 15 साल से ज्यादा वक्त तक नीतीश कुमार के साथ सत्ता में रही
बिहार के सीएम नीतीश कुमार हमेशा बड़े भाई के रोल में ही रहे

पटनाः भाजपा बिहार में मिले झटके से कैसे उबरेगी। क्या वह अपने दम पर वापसी कर पायेगी और अगर करेगी तो कैसे। बिहार की सियासत में 2005 से 2013 और फिर 2017 से अगस्त 2022 तक भले ही नीतीश कुमार भाजपा के समर्थन से सीएम बने हों, लेकिन वह हमेशा बड़े भाई के रोल में ही रहे। साल 2020 के चुनाव में भाजपा ने ज्यादा सीटें जीतीं, लेकिन फिर भी नीतीश को बड़े भाई के पद से हटा नहीं सकी। अगर देखा जाये तो भाजपा अभी तक नीतीश कुमार के नाम पर ही बिहार में अपनी राजनीति करती रही है। इसके कारण वह बिहार में अपना सियासी आधार नहीं खड़ा कर सकी, अपनी लीडरशिप नहीं खड़ी कर सकी। यह भी सच है कि बिहार भाजपा के पास न ही नीतीश जैसा चेहरा है, न ही लालू यादव की तरह समाजवाद का सिंबल और न ही तेजस्वी की तरह तेजतर्रार युवा नेता। मतलब भाजपा के पास भले ही पीएम मोदी का नाम हो, लेकिन राज्य में सीएम का चेहरा नहीं है। बिहार में भाजपा करीब 15 साल से ज्यादा वक्त तक नीतीश कुमार के साथ सत्ता में रही, लेकिन उसके फैसले दिल्ली से ही होते रहे। कौन डिप्टी सीएम बनेगा, किसे क्या विभाग मिलेगा, ये सारे फैसले दिल्ली से हुए। यहां तक कि सुशील मोदी जैसे मंझे नेता को बिहार से हटा कर दिल्ली बुला लिया गया। सुशील मोदी नीतीश कुमार की हर चाल से बखूबी वाकिफ थे। उनके न रहने का खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ा। बिहार के बारे में दिल्ली को ही फैसला करना था, लेकिन दिल्ली शायद बिहार की बदलती हवा को वक्त रहते भांप नहीं पाया। वह इस मुगालते में रहा, कि नीतीश जायेंगे तो जायेंगे कहां!
हालांकि इन सबके बीच एक चीज भाजपा के पक्ष में दिखती है, वह है मौका। भाजपा अब अपने नेताओं को उभारने के लिए आजाद है। अब वह बिहार में बेहिचक हिंदुत्व के मुद्दे को जोर-शोर से उठा सकता है। बिहार में साल 2025 में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में खुद को मजबूत करने और अकेले आगे बढ़ने के लिए भाजपा के पास अभी तीन साल का वक्त है। वैसे अब भाजपा जहां पहुंच गयी है, उससे आगे बढ़ना तो दूर, उस जगह पर कायम रहना ही उसके सामने असली चैलेंज है। लेकिन जो भाजपा नीतीश को आगे बढ़ा सकती है, वह अपना नेता भी तैयार कर सकती है। अभी बिहार में राजनीति कई घाटों से गुजरनेवाली है। महागठबंधन सरकार कैसे चलती है, उस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। नीतीश भले कह रहे हैं कि हम रहें या न रहें, लेकिन इतना तय है कि 2014 वाले 2024 में नहीं रहेंगे, लेकिन स्थिति ऐसी नहीं है। विपक्ष को भले लग रहा है कि वह 2024 के भाजपा के चुनावी मुद्दों की हवा निकला देगा। लेकिन क्या जो मुद्दे आज विपक्ष को दिखाई पड़ रहे हैं या भाजपा दिखाने की कोशिश कर रही है, वे मुद्दे उस वक्त होंगे या देश का पूरा माहौल ही बदल जायेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *