झारखंड कैडर के आइएफएस अफसर बाघ के साथ अब गिद्धों को नहीं बचा पा रहे, 250 से भी कम हो गई है झारखंड में गिद्धों की संख्या
रांचीः झारखंड कैडर के आइएफएस अफसर जानवरों और पक्षियों के संरक्षण में विफल रहे हैं। बाघों के संरक्षण में करोड़ों खर्च हो गए, लेकिन विभाग को अब तक नहीं मालूम है कि राज्य़ में कितने बाघ हैं। भालू की संख्या घट गई। विभिन्न पक्षियों की संख्या घटती जा रही है। वन विभाग का वाइल्ड लाइफ विंग इस मामले में पूरी तरह से कमजोर दिखता नजर आ रहा है। अब वह दिन दूर नहीं जब बच्चों को गिद्धो की सिर्फ कहानियां सुनने को ही मिलेंगीं। राज्य में गिद्धों की संख्या 250 भी नहीं है। पहले इसकी संख्या 350 बताई जा रही थी। अब राज्य में सिर्फ 248 गिद्ध ही बचे हैं। ये गिद्ध हजारीबाग इलाके के अलावा चौपारण, बरही, कोडरमा और खूंटी में ही दिखाई दिए हैं। 1990 से गिद्धों की संख्या में कभी इजाफा नहीं हुआ। लगातार इनकी संख्या में कमी आती गई। हजारीबाग को प्रोवीजनल वल्चर सेफ जोन बनाया गया। हजारीबाग और इसके 100 किलोमीटर के दायरे में गिद्धों को संरक्षित करने का अभियान चला। मगर गिद्धों के मरने का सिलसिला जारी था। इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क ने मरे हुए गिद्धों का पोस्टमार्टम कराया। इसमें पता चला कि गिद्धों की मौत के पीछे मवेशियों को दी जाने वाली डिक्लोफेनेक समेत अन्य दवाएं जिम्मेदार हैं।
झारखंड में गिद्ध प्रजनन केंद्र भी नहीं हो सका शुरू
केंद्रीय वन विभाग के आंकड़ों की माने तो देश में 40 साल पहले चार करोड़ से अधिक गिद्ध थे। आत दो लाख से भी कम गिद्ध रह गए हैं। झारखंड में गिद्ध प्रजनन केंद्र रांची से 30 किमी की दूरी पर मुटा में बनाया गया है. लेकिन यह धरा का धरा ही रह गया। अब तक गिद्ध प्रजनन केन्द्र शुरू नहीं किया जा सका है।
दवा पर भी प्रतिबंध नहीं
गिद्धों की मौत की मुख्य वजह पशुओं को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनेक है. पशुओं के उपचार में डाइक्लोफेनेक दवा के इस्तेमाल पर सरकार की ओर से प्रतिबंध लगा हुआ है. लेकिन आज भी पशुओ के उपचार में इस दवा का उपयोग किया जा रहा है। इसका मुख्य कारण बताया जा रहा है कि पशुओं को दर्द नाशक के रूप में एक दवा डाइक्लोफिनेक दी जाती है और इस दवाई को खाने के बाद यदि किसी पशु की मौत हो जाती है तो उसका मांस खाने से गिद्ध मर जाते हैं मृत पशुओं के मांस खाने वाले गिद्धों की किडनी और लीवर को गंभीर नुकसान पहुंचता है जिससे वे मौत के शिकार हो जाते हैं । डाइक्लोफेनेक की वजह से ही देशभर से 99 फीसदी गिद्ध विलुप्त हो चुके हैं. भारत सरकार ने गिद्धों के प्रजनन के लिये बहुर्मुखी योजना कार्यान्वित की है. जिसके तहत एक्ससीटू संरक्षण कार्यक्रम में जंगलों में गिद्धों की जनसंख्या साल 2030 तक स्वत: स्थापित करने की है. इसके पहले चरण में कैप्टिव ब्रीडिंग (संरक्षित प्रजनन) द्वारा गिद्ध जनसंख्या बढ़ाने का प्रस्ताव है.
गिद्धों की कमी की भरपाई
यूटा यूनिवर्सटी के ईवान बेचली का कहना है कि सड़ा गला मांस खाने वाले गिद्धों की संख्या कम हो रही है. इसकी जगह दूसरे मुर्दाखोरों जीवों से जरूर ले रहे हैं. लेकिन यह गिद्धों की कम होने की भरपाई के लिए काफी साबित नहीं हो रहा है. इस वजह से आ रहा अंतर एक समस्या बनता जा रहा है. यह अध्ययन वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इसे यूटा यनिवर्सिटी के साथ नेशनल साइंस फाउंडेशन, हॉकवॉच इंटरनेशनल, द प्रेगराइन फंड, और नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी ने वित्तीय सहायता दी है. पिछले कुछ दशकों में गिद्धों की जनसंख्या में भारी कमी देखने को मिल रही है जिससे कई तरह के समस्याएं भी सामने आ रही हैं